“पुराने पत्र
पुराने मित्र
और
पुरानी यादे
कभी पुरानी नही हो पाती है
इनमे हर बार एक खास नयापन होता है
अपनेपन की भीनी-भीनी सुगन्ध के साथ
कभी यू ही बिना किसी विशेष कारण की उदासी
और बिना वजह का हास्य- विनोद
इनके गम्भीर साक्षी होते है
ये पुराने पत्र
जिनमे घुली होती है
अपनेपन की मिठास
अधिकार के साथ शिकवे-शिकायत
और सबसे बडी बात
एक सहज स्वाभाविकता मन को मन से जोडने की
बिना किसी औपचारिक मानसिक भूमिका के
कभी पीडा तो कभी महत्वकाक्षाओ
के ये सांझे दस्तावेज
हमेशा विकट अवसाद के क्षणो मे
एक इंच मुस्कान लाने की स्थाई क्षमता रखते है
हम आज जब
दूनियादारी से पीडित होकर
अशांत/असहज जीने के आदी से हो गये है
तब इन पत्रो की विषय-विस्तु
समय के उतार चढाव को नकार कर
एक विचित्र गर्व से भर देती है अपने मित्र चयन पर
मन होता है नियति को धन्यवाद भेजने का...
और अतीत से जुडी हर यादे
अपने साथ दूर तक ले जाती है
जहा सिर्फ हम और हमारे अतीत की यादो का कारवा
उदासी की गर्द को उडाता हुआ
बेपरवाह निकल पडता है
अपनो के बीच से
अपनो तक
और आज जब बहुत से
पुराने मित्र अपरिहार्य कारणो से
लौकिक रुप से सम्पर्क मे नही है
तब ये पत्र/यादे ही है
कि उनके साथ न होने का अहसास
टीस की बजाए
बोझिल और औपचारिक दूनिया मे
बिना स्वार्थ के उर्जा देता है
और खिन्न चेहरे पर
एक इंच मुस्कान लाने का अवसर
और
शायद उन्हे भी...”
डा.अजीत
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