भाजपा का कमान संघ के निर्देशानुसार एक युवा के हाथों में सौप दिया गया वह भी उस समय जब भाजपा में अंतर्कलह चरम पर है । जब पार्टी में केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक केवल बयानबाजी का बोलबाला है । सभी एक दुसरे पर छितकसी कर रहे है । ऐसे समय पर संजीवनी के स्थान पर एक और समस्या खड़ा हो गया ।कांग्रेस के राहुल में मुकाबला करने के लिए यह मराठी मानुस कितना कारगर साबित होगा । क्या हिंदी भाषी प्रदेशों में भाजपा की खोई जनाधार वापस आ पायेगी या वही आया राम गया राम साबित होगा । क्या भाजपा के धुरंधर इन्हें पचा पायेगे । क्या संघ का यह प्रयोग भाजपा को उचाई पर ले जाने में सफल होगा। आज नितिन गडकरी के विचारो से आडवानी जिस प्रकार दुखी हुए इससे तो लगता है की सायद आडवानी जी यही सोच रहे होगे को क्या इसी दिन के लिए भाजपा को सीचा था । इससे तो लगता है की भाजपा में अटल के बाद आडवानी युग का भी अंत हो गया ।
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ReplyDeleteभाजपा में अटल के बाद आडवानी युग का भी अंत हो गया!...
ReplyDeleteEsa nahi kaha ja sakta...