घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं।
प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥
पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
शब्दों में अब वह जोश नहीं,आवेश नहीं मैं पाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
प्रशंसा के अल्फ़ाजों में ,खुद की लेखनी को पाता हूं॥
पथिक बना गन्तव्य को देख, लालच को अब अपनाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
शब्दों में अब वह जोश नहीं,आवेश नहीं मैं पाता हूं।
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
वाह-वाह और बहुत खूब से मन को हर्षित कर पाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
कविता जीवन का श्रोत कहां, इसे हसीं का पात्र बनाता हूं|
घूम गया जो चक्र, उसी की ओर देखता जाता हूं||
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