दीदी....
जब में धरती पे आया था
माँ-पापा के साथ मेरे सिर पर
तुम्हारा भी साया था
बचपन की हर वो याद आज भी ताजा है
हमारा लड़ना, झगड़ना और
बाद में तुम्हारा मुझे मनाना
खेल-खेल में जब मैं रो पड़ता
तुम डर जाती, घबरा जाती थी
आँखों में तुम्हारे भी आंसुओं की बुँदे लहरा पड़ती थी
इसलिए नहीं कि तुम्हे डांट पड़ेगी
परन्तु इसलिए कि मुझे तकलीफ हुई थी
तुमने हमेशा मेरे बारे में सोंचा
तुम्हारी अंगुलियाँ पकड़ मैं स्कूल जाता था
और समय की करवट ऐसी हुई
उन्ही अँगुलियों को छोड़ कर तुम चली गयी
तुम भले हमें छोड़ कर
अपने घर चली गयी
पर मुझे मालूम है
हम आज भी तुम्हारे दिल में मौजूद है
मैं आज भी चाहता हूँ
समय का पहिया उल्टा चले
हम फिर बचपन में लौट चले
उसी तरह लड़े, झगडे, प्यार करें
मैं तुमसे कह नहीं पाता
पर सच ये है कि
मैं तुम्हे खुद से ज्यादा चाहता हूँ
तुम्हारी हर राखी को मैंने
अपने ह्रदय में गहरे कैद कर रखा है
अकेलेपन में भी तुम्हे पास पाता हूँ
दीदी... तुम मेरी माँ तो नहीं
पर माँ के बाद तुम्हारा ही स्थान है
मेरे जीवन में हर पल यही दुआ करता हूँ कि
मेरी हर खुशियाँ तुम्हारी हो
और तेरे सारे गम मेरे अन्दर समा जायें
दीदी... जब तुम विदा हो रही थी
मेरी आँखों में एक बूँद आंसू नहीं थे
पर मेरा दिल जार-जार रो रहा था
जब भी तुम मुस्कुराती हो
मुझे लगता है मैंने दुनिया जीत ली हो
और मैं हमेशा दुनिया जीतना चाहता हूँ
दीदी... मैं तुम्हे खुश और सिर्फ खुश देखना चाहता हूँ....
जीजाजी....
गंभीरता की चादर ओढें
सूरज की तपन है आपमें
नदियों की चंचलता साथ लिए
समुन्दर सा विस्तार है आपमें
पर्वतों की विशालता
और आकाश की उंचाइयां है आपमें
बरगद के जड़ो जितनी
ह्रदय की गहराइयाँ है आपमें
खुदा को तो देखा नहीं मैंने
पर खुदा का अक्स है आपमें
दुनिया से अलग तो नहीं आप
पर एक दुनिया समायी है आपमें
आप रिश्तों की मजबूती है
और हर रिश्ते की इमानदारी है आपमें
आप सिर्फ आप है
फिर भी कई रूप समाई है आपमें...
No comments:
Post a Comment