31.1.10

मुंबई आखिर किसकी है?

नस्ली हिंसा, भेदभाव दूसरे देश में ही नहीं बल्कि परंपरा वाले हमारे देश में भी है. नफ़रत का भाव भी कुछ इस तरह की इंसानीयत भी सरमा जाये. धरम और जातिगत राजनीती करते आ रहे बाल ठाकरे ने साहरुख खान. मुकेश अम्बानी और सचिन को अपने निशाने पर लिया है. ये तीनो ही अपने पेशे के बादशाह है. खान को तो यह तक कहा की यदि उनके दिल मे पाकिस्तानी आवाम के लिये जियादा लगाव है तो वो कराची जाकर बस जाये. अम्बानी को भी नसीहत दी गई की वह मुंबई और मराठी पर तिरछी नज़र न रखे. ठाकरे की नज़र मे वह बोरा गए है. ठाकरे की सेना के कथित गुंडे लगातार तोड़फोड़ कर रहे है. बावजूद इसके सरकार भयानक ढंग से खामोस है. राज ठाकरे भी पिछले दिनों बहुत गुल खिला चुके है. मुंबई से बाहर वाले लोगों को जमकर पीटा गया था. ठाकरे को अब भला कोन समझाए की मुंबई किसी के पिताजी की जागीर नहीं बल्कि हर हिन्दुस्तानी की है. नफरत फेलाने वाला बयान देकर ठाकरे केवल मुंबई की ही राजनीती कर सकते है, देश के किसी और हिस्से मे नहीं. कडवी हकीकत तो ये है है कि बूढ़ा शेर हो या नेता दोनों ही कभी नहीं चाहते कि उनका राज खत्म हो. ठाकरे साहब को तो जंगल का राजा बहुत अच्छा लगता है. इसका सुबूत वह खुद ही देते है. कभी उनके बडे सिंघासन को देखो- उसके ऊपर और लेफ्ट- राईट शेर के सिर लगे है. हाथी भी है. बहरहाल मुंबई आखिर किसकी है? इसका तर्क सांगत जवाब भले ही किसी के पास न हो, लेकिन ये मुद्दा जल्द खत्म होने वाला नहीं है.

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