ये दौलत भी ले लो...
ये शोहरत भी ले लो..
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी
किसी शायर की ये मशहूर ग़ज़ल बचपन की चाह को बखूबी बयां करती है. बचपन जिसकी आगोश में खुशियों की बेल खिलती है ...जिसकी एक मुस्कराहट दिल को सुकून पहुंचती है. मासूम बचपन की ठिठोली, शरारते घर परिवार माँ बाप को जीने का एक नया हौसला, नयी उम्मीद , नए सपने देती है.बच्चे भगवन का रूप होते हैं, इनकी दिल को छू लेने वाली बात , उनके दिल में सबके लिए प्यार की भावना का होना है. बच्चे किसी भी देश समाज , परिवार का भविष्य होते हैं या यूँ कहे की ये आगे चलाकर एक सुन्दर समाज की स्थापना करते हैं.जहाँ एक तरफ मासूम बचपन को सजोने, बच्चों के विकास के लिए अनेकों काम किये जा रहे हैं, उनकी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य के लिए माँ बाप फिक्रमंद हैं वहीँ कुछ जगहों पर बचपन की मासूमियत खोती जा रही है .खामोश होती इस बचपन की वजह क्या है.
आज समाज में मासूम बचपन कहीं गुम होता जा रहा है ...खोती जा रही है बच्चों के होठों से मुस्कराहट। इस मासूम विरासत को डुबोने के पीछे सबसे बड़ा हाथ है बाल मजदूरी का॥
बाल मजदूरी आज के समाज में बड़ी तेजी के साथ बढती जा रही है.और बनती जा रही है एक अभिशाप ....आखिर क्या वजह है की कलम चलने वाले हाथ आज कूड़ा बटोरने को मजबूर हैं ..जिन कन्धों पर स्कूल बैग होना चाहिए वे आज दूसरो का बोझ धो रहे हैं...जिस बचपन को खिलखिलाना चाहिए उस चेहरे पर परेशानी , आंसू और चिंता की लकीरें हैं .आखिर क्या वजह है मासूमियत के छीन जाने की .बचपन के बेजार होने की ... दिन प्रतिदिन बल मजदूरों की संख्या बढ़ते जाने की?
बाल मजदूरी आज एक महामारी के रूप में फैलता जा रहा है..अगर आंकडों नज़र डालें तो पुरे विश्व भर में ५ से १४ वर्ष की उम्र के लगभग १ करोड़ ५८ लाख
बाल मजदुर हैं और यह संख्या दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है. इस संख्या में ६१ प्रतिशत बाल मजदुर एशिया, ३२ प्रतिशत अफ्रीका से और ७ प्रतिशत बाल मजदुर लैटिन अमेरिका से हैं. भारत में २००१ की जनगणना के अनुसार २ करोड़ २६ लाख बच्चों में से ६५ लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते वहीँ १९९१ में बाल मजदूरों की संख्या ११ लाख ५९ हज़ार थी जो २००१ में बढ़कर १२ लाख ६६ हज़ार हो गयी है. बाल मजदूरी की बढती समस्या..... दयनीय हालातों के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार ??? गरीबी...शिक्षा की कमी या समाज .......कहीं न कहीं इसके पीछे जागरूकता ...सामाजिक शोषण...अव्यवस्थित श्रम को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है..बाल मजदूरी के बढ़ते हालातों के पीछे किसका है हाथ ?? समाज के दलालों का या सरकारी नीतियों की कमियां?? हम किसे ठहराएँ जिम्मेदार ???
बाल मजदूरी की बढती समस्या को देखते हुए भारतीय संविधान में २६ जनवरी १९५० से ही कई कानूनों को जगह दी गयी है. जहाँ संविधान के अनुच्छेद १४ के अनुसार १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना प्रतिबंधित है वहीँ अनुच्छेद ४५ १० वर्ष तक के बच्चों को आवश्यक शिक्षा का प्रावधान करता है जबकि अनुच्छेद ३९ बच्चों के स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए बनाया गया है फिर भी आज बाल मजदूरों की संख्या में दिन प्रतिदिन बढोत्तरी होती ही जा रही है.इसे भारतीय संविधान की अवहेलना कहें या सरकारी तंत्र की कमी जो बाल मजदूरी को रोकने में असफल होती जा रही है. आखिर इन अनदेखियों, असफलताओं की मूल वजह क्या है जो बाल श्रम जैसे घिनौने अपराध को बढ़ावा दे रही है. आखिर कौन है इन सब का जिम्मेदार ?????
कहीं न कहीं जाने अन्जाने हम किसी न किसी रूप में उन मासूम चेहरों की मासूमियत, मुस्कराहट की छीन रहे हैं. एक अच्छे , सुंदर समाज का ख्वाब जो हमने देखा था उसे अंधेरों में डुबोते जा रहे हैं. विश्व के महान कवी विल्लियम वोर्ड्सवोर्थने कहा है की " एक बच्चा , एक महान व्यक्ति का पिता हो सकता है ".फिर भी हम इस अपराध को रोकने का प्रयास नहीं कर रहे . हम दिन प्रतिदिन बच्चों की मासूमियत को चुराते जा रहे हैं .. एक महान दार्शनिक का कहना है कि " सबसे बुरा चोर वो है जो बच्चों के खेलने के समय और उनकी मुस्कराहट को छीन लेता है.".आज हमें ये सोचना है कि बाल मजदूरी जैसे घिनौने....संगीन अपराध को कैसे रोकें??हमें सोचना है कि हम क्या चाहते हैं ?? मासूम बचपन कि खिलखिलाहट या बेगाना बचपन..???
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