23.2.10

आदमी है सबसे बड़ा डिस्पोजेबल......!!

आदमी है सबसे बड़ा डिस्पोजेबल........!!

इधर देख रहा हूँ कि देश में कई स्थानों पर प्लास्टिक थैलियों के खिलाफ जन-आन्दोलन वैगरह चल रहे है,और लाखों-करोड़ों-अरबों लोगों द्वारा प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली यह चीज़ प्रदुषण का कारण बन चुकी है और यह सही भी है कि हमने अपने द्वारा इसका बे-इन्तेहाँ दू-रुपयोग करके अपने चारों तरफ प्लास्टिक थैलियों के कूड़े का इक सैलाब-सा बना दिया है जिसकी आग में हम खुद तक जले जा रहे हैं,यह आदमी की ही खूबी है कि पहले अपने दिमाग की बुद्दिमता द्वारा किसी चीज़ का आविष्कार करता है फिर उसका बेतरह उपयोग करता करता है,और अपने द्वारा किये जाने वाले इस कृत्या के कारण वह इस उपयोग को वह दरअसल कु या दुरूपयोग में परिणत कर देता है खुद ही तो पहले सुविधा वसूलता है फिर उसी सुविधा के कु-परिणाम भी भुगतता है लेकिन मज़ा यह है कि सुविधा तो वह अकेले भुगतता है लेकिन उस सुविधा के बाद उत्त्पन्न होने वाली समस्याओं को धरती के सभी प्राणियों को भोगना पड़ता है !!
आदमी ने अपने जन्म-काल से ही लाखों-करोड़ों चीज़ों का आविष्कार किया है और उन सभी आविष्कारों का उपभोग करता नहीं अघाता !!हरेक चीज़ का आविष्कार उसकी मेहनत को कम कर देता है गोया हरेक आविष्कार से आदमी का एक और हाथ बढ़ जाता है....इस प्रकार आदमी के हज़ारों-लाखों-करोड़ों हाथ हो गए हैं,उन हाथों से होने वाले उपभोगों की संख्या भी उसी अनुपात में बढती भी जा रही हैं....और आदमी है कि फिर भी एक-के-बाद-एक चीज़ों को जन्म दिए जा रहा है और परिणाम यह है कि आदमी के चारों तरफ अरबों-अरब चीज़ों का एक न ख़त्म होने वाला साम्राज्य खडा हो गया है जिसे मेट पाना तो शायद अब भगवान् के बस का भी नहीं !!
और प्लास्टिक का आविष्कार तो जैसे एक अमर चीज़ के रूप में होने के लिए ही हुआ है,यह अब इस धरती वह चीज़ है,जो जैसे कभी ख़त्म ही नहीं होने को है !!बड़े मज़े लिए हैं आदमी ने इस प्लास्टिक नाम की चीज़ के और अब यही प्लास्टिक उसके जी का जंजाल बन गयी है जिसे उसे ना तो निगलते ही बनता है और ना ही उगलते,कभी सुविधा के रूप में इजाद की गयी यह वस्तु आज एक बड़ा भयानक कोढ़ बन गयी है धरती के shareer पर !!और यह कोड भारत जैसे ढूल-मूल देशों में और भी भयानक है जहां के लोगों को सफाई से शायद बेहद खाज होती है !!अपने घर और व्यापारिक-स्थल का कूड़ा-करकट सड़क या अन्य सार्वजनिक स्थान पर फ़ेंक देना या बिखरा देना अपनी शान समझते हैं और किसी के द्वारा इस बात पर टोक दिए जाने को अपनी शान की तौहीन...!!
सच तो यह है कि आदमी के अन्य सभी आविष्कारों की भांति प्लास्टिक भी एक बेहद उपयोगी चीज़ है मगर इसके उपयोग के पश्चात इसे अन्य चीज़ों के भांति कूड़े के रूप में फेंक दिया जाना किसी अन्य कूड़े की अपेख्षा घातक-मारक और बेहद प्रदुषण-कारक होता है और इसी बात के प्रति सजग नहीं है एक आम भारतीय !! कम-से-कम प्लास्टिक की थैलियों के प्रति यह जागरूकता बेहद ज़रूरी ही नहीं बल्कि आज की अनिवार्यता बन गयी है और आदमी इसे तुरत-की-तुरत समझ ले इसी में उसके साथ धरती के सभी प्राणियों की भलाई है वर्ना कभी-ना नष्ट होने वाले प्लास्टिक के कूड़े के ढेर में वह जल्द ही दबकर मर जाएगा....!!
सच तो यह भी है आदमी नामक यह जीव धरती पर सामानों का जो बेतरह पहाड़ पैदा किये जा रहा है उसे तत्काल भले फायदा होता हो किन्तु पर्यावरण के लिए यह बड़ा भयानक साबित होता है,हो रहा है!!और ऊपर वाले की पैदा की हुई चीज़ें तो एक प्राकृतिक सर्किल को जन्म देती हैं मगर आदमी द्वारा बनायी जाती चीज़ें अपने निर्माण-काल से-उपयोग-और फ़ेंक दिए जाने तक धरती को प्रदुषण-ही-प्रदुषण देती हैं...और यहाँ तक कि आदमी ने तो अन्तिक्षा को प्रदूषित कर डाला है..और किये ही जा रहा है और लिए तत्काल ही लगाम देना अनिवार्य है इस नाते यह कह देना भी समीचीन जान पड़ता है कि आदमी खुद भी अपने जन्मकाल से लेकर मरने तक धरती को प्रदुषण-ही-प्रदुषण प्रदान करता है इस करके तो धरती पर सबसे महान दिस्बोजेबल आदमी खुद है और इसलिए आदमी को ही क्यों ना धरती से डिस्पोज कर दिया जाए.....ना रहेगा बांस-ना बजेगी बांसुरी....!!

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