अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
19.2.10
फाल्गुन में प्यारा लागे
फाल्गुन में प्यारा लागे मोहे मोरा सजना, उसके बिना री सखी काहे का सजना। ---- कानों में मिश्री घोले चंग का बजना, घुंघरू ना बजते देखो बिन मेरे सजना। ---- रंगों के इस मौसम में भाए कोई रंग ना, फाल्गुन बे रंग रहा री आये ना सजना।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 20.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/