गुजरात दंगो की जांच के लिए नियुक्त विशेष जांच दल के सामने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश होना था किन्तु वह जांच दल के सामने उपस्थित नहीं हुए। फरवरी 2002 में गुजरात में हजारों अल्पसंख्यकों का नरसंहार धर्म के आधार पर किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायलय ने जाकिया की शिकायत पर विशेष जांच दल नियुक्त किया था। जाकिया का आरोप था कि मोदी व उनकी सरकार के मंत्री पुलिस व प्रशासनिक अधिकारीयों से मिलकर गुजरात में दंगे भड़काए थे और कत्लेआम कराया था। जब संविधानिक पदों के ऊपर बैठे हुए लोग इस तरह का कृत्य करेंगे और जांच एजेंसियों के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे तो किसी साधारण आदमी से क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन अगर साधारण व्यक्ति को जांच एजेंसी के सामने उपस्थित होना होता और वह उपस्थित नहीं हुआ होता तो उसे होमगार्ड के जवान डंडे बाजी कर के उपस्थित होने के लिए मजबूर कर देते। हमारे लोकतंत्र में नरेंद्र मोदी, राज ठाकरे, बाल ठाकरे जैसे कानून तोडक, संविधान तोडक व्यक्तियों का कोई इलाज नहीं है। यह लोग संविधान व न्याय से ऊपर के व्यक्ति हैं । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो लगता है कसम खा ली है कि संविधान व लोकतान्त्रिक मूल्यों से उनका कोई लेना देना नहीं है ।
सुमन
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क्या वामपंथी नक्सलवादी नेता कानून को मानता है या उसका सम्मान करता है, नहीं अधिकतर राजनेताओं के लिए भी कानून बस एक खिलौना है जिसके साथ वे दिन-रात खेलते रहते हैं.
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