(उपदेश सक्सेना)
अजमल आमिर कसाब को 26/11 मामले में दोषी क़रार देना कोई बहुत बड़ी खबर नहीं है, उसका गुनाह इतना वीभत्स था कि इससे कम कुछ होना नहीं था अब इंतज़ार है उसे सज़ा मिलने का. इस घटनाक्रम में बड़ी खबर यह थी कि उसके इसी मामले में सहयोगी रहे दो अन्य आरोपियों को अदालत ने दोषी नहीं माना है. वैसे कानून के फैसलों पर टीका-टिप्पणी नहीं की जा सकती, मगर फहीम अंसारी और सबाउद्दीन को निर्दोष क़रार दिए जाने से मुंबई पुलिस और पूरा जांच तंत्र सवालों के घेरे में आ गया है. यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है, क्योंकि पहली बार किसी आतंकवादी वारदात का फैसला महज़ डेढ़ साल की अदालती कार्रवाई के बाद ही आ गया है. न्यायपालिका के प्रति जनता के बढ़ते भरोसे के बीच अब अन्य आतंकवादी हमलों के मामलों की सुनवाई और फैसलों में जल्दी की आशा की जा सकती है. वैसे यह भी संतोष की बात है कि फहीम अंसारी और सबाउद्दीन उत्तरप्रदेश के रामपुर में 2008 में सीआरपीएफ कैम्प पर हमले के मामले में मुख्या आरोपी हैं, इसके अलावा इन दोनों ने २००५ में भी एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया था. उप्र पुलिस इन्हें वहाँ लाकर इन पर मुकदमा चलाएगी.
कसाब का दोष इतना बड़ा है कि अदालत को अपना फैसला सुनाने में दो दिन से ज्यादा का वक्त लग रहा है. पाकिस्तान के आतंकी रहनुमाओं को अब बगलें झाँकने के अलावा कोई तरीका नहीं सूझ रहा होगा. जब-जब भारत ने अपने अंश रहे इस राष्ट्र को आतंकवाद को पनाह न देने की शिक्षा दी तब-तब पाकिस्तान ने मासूमियत से अपने पाक-साफ़ होने की दुहाई दी है. जब हम सबूत देते हैं कि दाउद इब्राहीम को उसने शरण दे रखी है, तब वह इससे साफ़ इनकार करता आया है. पुरानी कहावत है कि शरीर का कोई अंग सड़ने पर उसे काटना नहीं चाहिए, आज के दौर में उचित नहीं है. यदि पकिस्तान जैसे सड़ चुके शरीर के अंग को 1947 में काटकर अलग नहीं किया जाता तो आज भारत का शरीर सड़ने लगता, पूरा देश नंगे-भूखों-अशिक्षितों-भिखारियों-बेरोजगारों-अपराधियों का गढ़ बन गया होता. कसाब तो पाकिस्तानी हांडी का एक चावल का दाना है, आतंकवाद की आग में यह चावल की हांडी खुद जलने लगी है, कसाब को फांसी से बड़ी कोई सज़ा हो तो वह सुनाना चाहिए.
bahut khoob
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