अक्षय तृतीया के दिन बिना मुहूर्त के विवाह आयोजित किये जाते हैं. १९५४ में बने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह के लिए युवक-युवतियों की आयु क्रमशः २१ और १८ वर्ष तय की गई है, मगर देश भर में बल विवाह के लिए बदनाम राजस्थान विधानसभा के आधे से ज्यादा “माननीय” इस तय उम्र सीमा के पहले ही विवाह बंधन में बांध चुके हैं. यह सभी विवाह के मामले स्पेशल मैरिज एक्ट लागू होने के बाद के हैं.राजस्थान की १३ वीं विधानसभा की सम्पूर्ण जानकारी विधानसभा की वेबसाइट पर दर्ज़ है. विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्रसिंह शेखावत स्वयं बालविवाह के शिकार हैं. इस मामले में कोई राजनीति नहीं है और कांग्रेस-भाजपा के सदस्य इसमें बराबर के हक़दार बने हैं. वेबसाइट के अनुसार २०० सदस्यों की विधानसभा में १८४ में से ८२ सदस्यों के बालविवाह हुए हैं, शेष १६ सदस्यों के बारे में कोई जानकारी दर्ज़ नहीं है. सरकार के ३५ मंत्रियों और संसदीय सचिवों में से १३ के विवाह बाल्यअवस्था में हुए हैं. विधानसभा की तरह ही कांग्रेस का यहाँ भी बहुमत है. कांग्रेस के ४७ विधायकों का बालविवाह हुआ है वहीँ भाजपा के २६ सदस्य इस श्रेणी में आते हैं. यह उस राज्य के आंकडें हैं जो कि बालविवाह के लिए सदियों से बदनाम रहा है.
बात यहीं तक सीमित नहीं है. जब विधायक बालविवाह में आगे हैं तो सांसद भला क्योंकर पीछे रहें. लोकसभा की वेबसाइट के अनुसार कुल ५४३ सदस्यों में से ६४ सदस्यों के बालविवाह हुए हैं. इनमें कुछ केंद्रीय मंत्री और कुछ पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं. एमके अलागिरी, एस.जयपाल रेड्डी, प्रफुल्ल पटेल, शिबू सोरेन, कल्याणसिंह, बाबूलाल मरांडी, के. चंद्रशेखर राव आदि ऐसे ही कुछ नाम हैं. मजे की बात यह है कि कई सांसदों का विवाह ९ या १० साल की उम्र में हो चुका है. कई महिला सांसद भी इस सूची में शुमार हैं.इस सूची में सबसे ज्यादा नाम १९ नाम उत्तरप्रदेश से हैं जबकि दूसरी पायदान पर बिहार का नाम आता है जहाँ के ११ सांसदों का बालविवाह हुआ है. अब यदि इस अक्षय तृतीया पर कहीं बालविवाह हों तो बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं करें क्योंकि क़ानून बनाने वाले ही उसका पालन नहीं करते, मुंह में राम, बगल में छुरी......
बाल विवाह अभिशाप है । सांसदो के पास पत्नियों के विकल्प हैं । पारिवारिक टूटन का यह कुप्रथा बड़ा कारण है ।
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