अरविन्द शर्मा
यहां सपने बिकते हैं, आसूं भी टपकते हैं, लेकिन इनकी कीमत....। यह सवाल इसलिए उठ रहा हैं, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से अखबारों में इसी तरह के विज्ञापन नजर आ रहे हैं। कोई बेहतर फ्यूचर बनाने का दाव कर रहा है तो कोई यहां तक कह रहा है कि हमारे बिना आपका कॅरिअर बनना मुश्किल है। बस, इनकी कीमत चुकानी होगी। कीमत भी एक लाख रुपए से शुरू होती है। अब ऐसे में दूसरा सवाल यह भी उठता है कि केंद्र सरकार किस दम पर 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का दावा कर रही है। शिक्षा के नाम पर खुल रहे इन लूट के अड्डों का कड़वा सच दिल्ली से लेकर राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार हर राज्य में कई बार नजर आ चुका है। ताजा मामला राजस्थान के सवाईमाधोपुर का है। 100 करोड़ से अधिक की छात्रवृत्तियां ऐसे कॉलेजों को बांटी गई जो या तो है या नहीं, या फिर ऐसे कॉलेजों को, जिनमें चार सालों से एक भी छात्र पढऩे नहीं आ रहा। देखा जाए तो यह खेल सरकार के आला अफसरों की मिलीभगत से चलना मुश्किल है।
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सरकार को यह समझना चाहिए की रोज़-रोज़ नयी-नयी योजनाएँ निकालने से बेहतर यह होगा की जो योजनाएँ चल रही हैं वो सही रूप से लागू की जाएँ। और जहाँ तक मुफ्त शिक्षा की बात है तो यह सिर्फ एक दिखावा भर है, इसकी सच्चाई सभी को मालूम है मुझे बताने की जरूरत नहीं होगी।
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