कटनी 31 जुलाई
देश भक्ति जन सेवा का नारा देने वाली कटनी जिले की पुलिस बेहद रिश्वतखोर है. जिले के थानों में बिना रिश्वत लिए छोटा सा भी काम कराना बेहद मुश्किल है, यदि किसी के खिलाफ कोई झूठी शिकायत भी करता है तो यह तो निश्चित है की उसपर केस बने या न बने लिकिन उसे अपनी जेब जरूर ढीली करनी पड़ती है. चार पांच हज़ार में बड़ा से बड़ा मामला रफा दफा हो जाता है,
अब जबकि छोटी छोटी बाते भी बिना ऍफ़ आई आर के पूरी नहीं होती तो निश्चित है आपकी मजबूरी के लिए खाखी वर्दी वाले बैठे है पैसा बसूलने के लिए. आपका सिम कार्ड खो जाए, बैंक की पास बुक खो गो गई हो या ड्राइविंग लाइसेंस गलती से कही गिर गया हो तो आपको स्थानीय थाने में ऍफ़ आई आर दर्ज कराना आवश्यक हो गया है. आपकी खोई हुई बस्तु मिले या न मिले लेकिन उसकी सूचना पुलिस को देना अनिवार्य कर दिया गया है. जब भी ऐसे व्यक्ति थाने जाते है तो उनसे बिना झिझक सरकारी फीस की तरह रूपये मागे जाते है. जब कोई रुपया देना अपने अधिकारों का हनन समझता है और एक सरकारी कर्मचारी को उसका कर्त्तव्य याद दिलाता है तो उससे कहा जाता है की नोटरी का हलफनामा बनवाकर लगाओ.
जबकि हलफनामा मांगने का कई नियम नहीं है, झंझटो से बचने के लिए लोग बुझे मन से खाखी वर्दी वाले यमदूत को चाय पान के नाम पर 100 -50 रूपये देने के लिए विवश हो जाते है,
इसमें पुलिस कर्मी अच्छी खासी कमाई कर रहे है, इसमें माहिर बहुत से पुलिसकर्मी प्रार्थना पत्र पर मोहर ठोक कर चिड़िया बना देते है. शिकायत कर्मी आश्वस्त हो जाता है और फिर वे उसको फाड़कर फेक देते है. जबकि प्रार्थना पत्र का जीडी में दाखिल करना तथा रिसीविंग स्थान पर जीडी नंबर दर्ज करना चाहिए.
बेचारा छोटा सा सिपाही करे भी तो क्या करे क्योकि हर थाने से एसपी कार्यालय को हफ्ता जो पहुचना होता है और एस पी भी क्या करे उसको भी ऊपर मत्री संत्री और उच्चधिकारियो को नजराना पेश करना होता है,
राजे-रजवाड़े तो ख़त्म हो गए लेकिन आज भी सामंतवाद हिंदुस्तान की नसों में दौड़ रहा है तभी तो सरकारी तंत्र में बैठे जनता के सेवक वास्तव में गद्दी में बैठे उन राजाओं और उनके सिपहसालारो के गुलाम है जो इनके द्वारा जनता का खून चूस रहे है. हिंदुस्तान में कहने को लोकतंत्र है. शिकायत करने पर गरीब की शिकायत कूड़ेदान में डाल दी जाती है या उसे इतना भटकाया जाता है की वह स्वयं थक हार कर बैठ जाता है.
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