एक सांसद सदन में लगभग दस-बारह लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है| जनता उसे अपना प्रतिनिधि इसलिए बनाती है कि वह उनकी आवाज बनकर सदन में बोलेगा और उनके दुःख-दर्द में सहभागी बनेगा| किन्तु, शुक्रवार के दिन सांसदों ने अपने वेतन-भत्तों में बढोतरी के मुद्दे को लेकर संसद में जो आचरण किया और संसदीय कार्य को ठप किया उससे संसदीय गरिमा तो शर्मसार हुई ही लेकिन इससे यह भी प्रतीत होता है कि इन जनप्रतिनिधियों को जनता के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं है| इन्हें अपनी सुख-सुविधाओं के अलावा किसी और की कोई चिंता-फिक्र है ही नहीं| उल्लेखनीय है कि सांसदों का वेतन 16 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपए कर दिया गया है साथ ही कार्यालय भत्ता और संसदीय क्षेत्र भत्ता भी 20-20 हजार से बढ़ाकर 40-40 हजार रुपए कर दिया गया है| इस प्रकार अब एक सांसद को प्रतिमाह 56 हजार के स्थान पर 1 लाख 30 हजार रुपए मिलेंगे, इसके अलावा 15 माह का एरियर भी मिलेगा| लेकिन, ये बढोतरी इन सांसद महानुभावों को नाकाफी लगी| इनका कहना है कि वेतन बढ़ाने की सिफारिश करने वाली संसदीय समिति ने जब वेतन 80 हजार रुपए करने की सिफारिश की थी तो फिर सरकार को इसे लागू करने में क्या परेशानी है| इनका यह भी कहना है कि इन्हें प्रतिमाह जो वेतन मिलता है वह सरकारी सचिव स्तर के कर्मचारी को मिलनेवाले वेतन से भी कम है| सचिव स्तर के कर्मचारी का मासिक वेतन 80 हजार रुपए है तो इनका वेतन कम-से-कम 80 हजार 1 रुपए होना चाहिए|
इससे पहले इन सांसदों ने वेतन-भत्ते बढ़वाने की मांग उठाते समय भी लोकसभा में काफी हो-हल्ला किया था और संसदीय कार्य में बाधा पहुंचाई थी| लगता है हो-हल्ला और जूतमपैजार हमारी संसद की नियती बन गयी है| लेकिन इस मुद्दे पर सभी दलों के सांसदों की एकता आश्चर्यचकित करने वाली थी| जनहित और देश के विकास से जुड़े मसलों पर भले ही ये पक्ष-विपक्ष में खड़े होकर बोलते हों तथा संसदीय कार्य में बाधा पहुंचाते हों लेकिन, अपनी सुख-सुविधाओं में बढोतरी के इस मुद्दे का सभी दलों के सांसदों ने राजनीतिक विचारधारा को दरकिनार कर स्वागत किया| भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे का खुलकर समर्थन नहीं किया लेकिन भाजपा सांसदों ने इसका विरोध भी नहीं किया और वे इस मुद्दे पर मौन रहे, इससे यही लगता है कि उनकी भी आंतरिक इच्छा यही थी|
माना कि सांसदों का वेतन मात्र 16 हजार रुपए था, लेकिन उन्हें प्रतिमाह वेतन के अतिरिक्त वाहन भत्ता, संसद सत्र में भाग लेने पर मिलने वाले भत्ते, सरकारी आवास, टेलीफोन, बिजली-पानी की सुविधा और दूसरी सुविधाओं को जोड़ा जाए तो एक सांसद पर 3 से 4 लाख रुपए खर्च प्रतिमाह आता था जो अब वेतन में तीन गुना बढोतरी होने पर और भी बढ़ जाएगा | सांसद रेल और हवाई जहाज में मनमानी यात्रा करते हैं| उन्हें खान-पान से सम्बंधित वस्तुएं भी रियायती दरों पर उपलब्ध कराई जाती है| लेकिन इन सबका कोई हिसाब-किताब नहीं है वे तो केवल यही राग आलापते रहे कि उनका वेतन सरकारी बाबुओं से भी कम है लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये पब्लिक है ये सब जानती है आपको क्या मिलता है और आप क्या बता रहे हो|
जनता के प्रतिनिधि अपनी तुलना सरकारी कर्मचारियों से करें इससे ज्यादा शर्मनाक बात दूसरी और क्या होगी| उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकारी बाबुओं को लगभग गुलामों की तरह काम करना पड़ता है| सरकारी आदेशों का पालन करना होता है और यदि कोई त्रुटि हो जाए तो उन्हें इसका भी खामियाजा दण्डित और प्रताड़ित होकर भुगतना पड़ता है जबकि एक सांसद पर किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं होती और वे अपना जीवन जन-सेवा की आड़ में खूब ऐशोआराम से व्यतीत करते हैं | इतना ही नहीं सरकारी मुलाजिमों को 30 से 35 साल की सेवा के बाद पेंशन मिलती है जबकि अपने यहां तो कोई एक दिन के लिए भी सांसद रहे तो वह शेष जीवन भर के लिए पेंशन का हक़दार बन जाता है| यह बात अलग है कि समय के अनुरूप सांसदों के लिए भी कम-ज्यादा पेंशन निर्धारित है|
बढ़ती महंगाई के हिसाब से सांसदों के भी वेतन-भत्ते किसी एक सीमा तक बढे तो इसमें किसी को कोई तकलीफ नहीं है, बढ़ने भी चाहिए क्योंकि महंगाई उन्हें भी प्रभावित करती है, लेकिन महंगाई से त्रस्त जनता को दरकिनार कर सरकार सांसदों का वेतन आननफानन में 16 हजार से बढाकर सीधे 50 हजार रूपए करदे, यह अनुचित है| सरकार को उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए था जो सुबह से शाम तक बोझा ढोते हैं और शाम को जो मिलता है उसीसे अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं| वरना इस महंगाई में कौन नहीं चाहता कि उसकी आमदनी बढे लेकिन जनता इन सांसदों की तरह अपनी भाग्य विधाता खुद नहीं इसलिए वह चाह कर भी अपनी आमदनी नहीं बढा सकती|
अंत में मैं इन सांसदों से यही निवेदन करना चाहुंगा कि बीती ताहि बिसारदे की तर्ज पर जो हुआ उसे तो भूल जाएं और भविष्य में दुबारा कभी ऐसा आचरण न करने की प्रतिज्ञा लें जिससे संसद की गरिमा भी बनी रहे और जनता में भी यह सन्देश न जाए कि उनके प्रतिनिधि जिनसे उन्होंने त्याग और बलिदान से ओतप्रोत राजनीति की अपेक्षा की थी, वे इतने स्वार्थ लोलुप बन गए हैं कि उनको स्वहित के सामने सबकुछ गौण दिखता है|
ये देश एक दुर्भाग्य की और बढ़ रहा है , नेताओ को चुनने वाली जनता को सडा अनाज भी उबलब्ध नहीं हो पा रहा है जबकि नेता अपना वेतन पांच गुना बढ़ाना चाहते है ............. इसका नुकसान देश को ही उठाना पड़ेगा ..
ReplyDeletesir kare bhi kya.... jahan ek or ye sansad mahgai ke naam par jamkar naatak kar rhe the. unme se kisi ne bhi aaj is baat ka virod nhi kiya ki mahgai se jujhti desh ki janta par or bakh na dale....
ReplyDeleteGREAT INDIA..... Abhi or cahiye....
sir kare bhi kya.... jahan ek or ye sansad mahgai ke naam par jamkar naatak kar rhe the. unme se kisi ne bhi aaj is baat ka virod nhi kiya ki mahgai se jujhti desh ki janta par or bakh na dale....
ReplyDeleteGREAT INDIA..... Abhi or cahiye....
Abh ek naya bahana nai justification hai.....Unko apne kshetra ke gareeb logo ki arthik sahayata bhee karnee hoti hai....hamare saansad to shaayad karte hai ya nahi.....mai to bahut logo ki arthik sahayata karta hu....kaya mujh jaise logo ko bhee Bharat sarkar kuchh anudaan degee...ya jo sarkari karamchari daan punya ka kaarya karte hai...unko bhee special package milna chahiye....inko to sharam bhee nahi aatee...!
ReplyDeleteपता नहीं कब .... टेक्स भरने वाली जनता को इनके बारे में कानून बनाने का अधिकार मिलेगा.
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