कोई बुराई कब हमारी आदत और फिर लत बन जाती है हमें पता नहीं चलता। अफसोस तब होता है जब परिवार और समाज में इसके कारण हमारी फजीहत होने लगती है। बुराई से दोस्ती में अंधेरा मददगार होता है और बुराइयों के अंधेरे से बाहर लाने के लिए दिन का उजाला फें्रडशिप निभाता है। बुराई से जब मुक्ति के लिए मन छटपटाने लगे तो कल नहीं तत्काल निर्णय का साहस दिखाएं। बुराई अपनाई जाती है चोरी-छुपे लेकिन जब उसे छोड़ें तो खूब प्रचार करें। ऐसा करने पर आसपास के लोग सख्त नजर रखेंगे, ये सारे पहरेदार ही आपके संकल्प की सफलता में सहायक बनेंगे।
जब भी सारे मित्र होटल में लंच या डिनर का प्रोग्राम बनाते इन्हीं में से एक मित्र आदत के मुताबिक नॉनवेज का आर्डर देना नहीं भूलते थे। अभी जब हम सब लंच के लिए मिलें तो उन्होंने मीनू कार्ड हाथ में लेने के साथ ही अपने लिए शाकाहारी डिश का ऑर्डर नोट कराया। बाकी मित्र हैरत में थे, उनसे कारण पूछें, इससे पहले खुद उन्होंने ही घोषणा भरे लहजे में कहा मैंने नॉनवेज छोड़ दिया है। बात यही खत्म नहीं हुई, वे सभी मित्रों के पास गए और सभी को व्यक्तिगत रूप से अपनी यह आदत छोडऩे की उत्साह के साथ जानकारी दी।मित्रों ने आश्चर्य व्यक्त करने के साथ बधाई तो दी, साथ ही शंका जाहिर की कि अपने इस संकल्प पर अमल सख्ती से कर सकोगे? उनका जवाब भी अनूठा था, एक सप्ताह से तो अपने संकल्प पर डटे रहने में कोई दिक्कत नहीं आई। कभी, किसी मोड़ पर डगमगाने लगूं तो आप सब मित्र हो तो सही रोकने के लिए। बाकी साथियों ने जब पूछा कि अचानक यह निर्णय क्यों लेना पड़ा, उन्होंने जो कु छ कहा उसका आशय यही था कि आखिर ये सब भी तो जीव हैं, इन्हें भी तो जीने का हक है।
नॉनवेज छोडऩा अच्छा है या वेज होना अच्छा यह बहस का विषय हो सकता है लेकिन मुद्दे की बात यह है कि सार्वजनिक रूप से अपनी कोई बुरी आदत को न सिर्फ स्वीकारना, बल्कि अपने दोस्तों को यह दायित्व सांैपना कि राह से भटकने की स्थिति बने तो दोस्त अपना दायित्व पूरा करें, बड़ी बात है।
हमारी आदत तो यह है कि हम अपनी अच्छाइयों को तो बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और यह अपेक्षा भी रहती है कि लोग हमारी तारीफ भी करें। हर वक्त यह सतर्कता भी बरतते हैं कि हमारी बुरी आदतें या तो लोगों को पता नहीं चले या पता चल भी जाए तो हम दूसरों की बुराइयों से तुलना करके अपनी बुराई को छोटा बताने का रास्ता निकाल लें। समाज में अपनी हैसियत की खातिर हममें से ज्यादातर लोग दोहरी जिंदगी जीने लगे हैं। इसी कारण हम अच्छाइयों का बखान करना और बुराइयों पर पर्दा डाले रखना चाहते हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि लोगों को हमारी खामियां तलाशने में अधिक दिलचस्पी रहती है। यही कारण है कि हमारी छोटी सी गलती भी घूम फिरकर पहाड़ की तरह हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती है। बुरी आदत को सार्वजनिक रूप से स्वीकारना तो बहुत हिम्मत का काम है, हालत तो यह है कि अपनी किसी बात से सामने वाले का दिल दुखने पर हम तो माफी मांगने का साहस भी नहीं दिखा पाते।
संगत का असर हमारे आचरण में भी झलकता है। अच्छे दोस्तों का साथ होगा तो बुरी आदतें पास आने में घबराएंगी लेकिन साथ खराब होगा तो हमारी अच्छी बात में भी खराबी तलाशी जाएगी। इसलिए जब स्कूल से बेटा अपना खराब रिपोर्ट लेकर आता है तो ज्यादातर पेरेंट्स क्लास टीचर से यही रिक्वेस्ट करते नजर आते हैं कि इसे अगली बैंच पर बैठाएं। अगली बैंच में कोई जादू नहीं होता लेकिन इस बैंच के लिए टीचर जिन स्टूडेंट का चयन करते हैं उनके कारण इसका महत्व बढ़ जाता है। किसी बुराई से छुटकारे के लिए अपने दोस्तों पर जिम्मेदारी डालना यानी उन्हें कोई अन्य बुराई छोडऩे के लिए प्रेरित करना भी है। फंडा सीधा सा है कि जब दोस्त बुराई छोड़ सकता है तो हम क्यों नहीं।
किसी अच्छे काम को करने के लिए हम दिन तय नहीं करते तो कोई बुरी आदत भी एक झटके में ही छोड़ी जा सकती है। हम कल के चक्कर में रोज आज की सीढिय़ों पर बुराइयों का थैला कंधे पर लादे चढ़ते जाते हैं, यह बोझ भारी तब लगता है जब हम जिंदगी का आधे से ज्यादा सफर पूरा कर चुके होते हैं। तब हमें अपनी कमजोरी का अहसास होता भी है तो उससे मुक्ति पाने की छटपटाहट में बाकी बचा वक्त भी गुजार देते हैं। शाकाहारी बनना चाहते हैं, शराब, सिगरेट या ड्रग्स की आदत से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इसके लिए दोस्त हौसला बढ़ा सकते हैं, परिजन चट्टान की तरह आपके साथ खड़े रह सकते हैं, मनोचिकित्सक आपको आसान तरीके बता सकते हैं लेकिन इस सबसे पहले आपको अपनी मजबूत इच्छा शक्ति दर्शाना होगी, शुरूआत खुद को ही करना होगी। बुराई कोई सी भी हो उसे अंधेरे कमरे में ही गले लगाया जाता है लेकिन उजाला होता ही इसलिए है कि काले धब्बे फीके पड़ जाएं। किसी भी बुराई से पीछा छुड़ाने की ठाने तो खूब प्रचार करें क्योंकि बाजारवाद का नियम भी है, जितना ज्यादा प्रचार सफलता भी उतनी अधिक। जब हम खुद लोगों को बुराई छोडऩे की जानकारी देंगे तो मन पर हावी बोझ भी कपास जैसा हल्का हो जाएगा।
वाह! बेहतरीन रचना, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteजब आत्मविश्वास की कमी हो .. कोई काम हम कल पर टाल देते हैं .. बहुत अच्छा आलेख है !!
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