शाम की सुहानी हवा से मन में शांति पाने के लिए गेट के बाहर वाली चाय की छोटी सी दुकान पर जैसे ही पहुंचा और अभी दुकानदार को चाय के लिए बोलते हुए जैसे ही बैठने की कोशिश कर ही रहा था की अचानक ही रोड पर एक तेज़ रफ़्तार से बाइक जाने की आवाज़ सुनाई पड़ी मैंने मुड कर तुरंत देखा की वो बइक किसी स्कूटी का पीछा कर रही थी और कुछ दूर आगे जाने पर दोनों गाड़ियाँ रुक गई फिर कुछ तेज़ आवाज़ में बात होने लगी अब आवाज़ सुन आस पास के तथा आने जाने वाले लोग इक्कठा होने लगे अब चूकी लड़की और लड़कों की बात थी तो मेरे साथ कुछ और लोग जो दुकान पर बैठे थे हम सब आगे उधर की ओर बढे! तब तक गंगाराम का मोबाइल बजा और वो किसी से बात करने लगा, क्या सोच रहे है गंगाराम कौन है अरे ये तो मेरा बहुत ही पुराना मित्र है और कल अचानक ही बहुत दिनों के बाद मिल गया फिर हमलोग बगल में एक चाय की दुकान पर बैठ कर चाय की चुस्की लेने के साथ-साथ एक दुसरे का हाल चाल पूछने लगे! गंगाराम के हाथ में अख़बार था जिसमे एक न्यूज़ पर गंगाराम अचानक ही हँसते हुए ये कहानी मुझसे कहने लगा था! अब चुकी कहानी अभी अधूरी थी तो फोने रखते ही मैंने उससे कहा की हाँ गंगाराम तुम कोई कहानी कह रहे थे तो अरे यार ये कहानी नहीं है ये तो सच्ची और आँखों देखि घटना है यार अखबार के एक समाचार(बहु बेटियों का घर से निकलना दुस्वार किया है मनचले युवकों ने)की ओर इशारा करते हुए बोला की दरअसल ये घटना मुझे इसी पर याद आ गयी! फिर वहां क्या हुआ पूछने पर आगे बोला की जैसे ही हम लोग वहां पहुंचे तो देखा की बात तेज़ आवाज़ में हो रही थी और लड़कियों के साथ कुछ और दबंग लोग उन लड़कों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे थे आखिर ऐसी घटना में बिना कुछ जाने बुझे अक्सर कुछ लोंगो को महिलावों,लड़कियों या फिर सिर्फ एक पक्छ का साथ देते ही देखा जाता है और सिर्फ एक ही आवाज़ सुनाई पद रही थी-स्टुपिड घर में माँ-बहन नहीं है क्या……………………., फिर लड़के बिचारे चुप-चाप अपनी गलती को दूंधने में लगे हुए थे की आखिर उन्होंने किया क्या है,की इतने में चाय की दुकान पर काफी देर से बैठ कर सारे प्रकरण को देख रहे प्रहलाद चाचा की आवाज़ अचानक ही निकल पड़ी बेटों तुम क्या सोच रहे हो की?यही न की तुम्हारी क्या गलती है और वो ये है की तुम लड़के हो आज समाज सिर्फ लडको को ही दोष देना जनता है जाओ तुम लोग यंहा से चले जाओ यंहा तुम्हारी कोई सुनने वाला नहीं है बेटा, अभी तो तुम लोगों को सिर्फ जबरदस्ती जलील ही किया जा रहा है कुछ देर और रुके तो शायद मार और फिर पुलिस की भी कार्यवाही शहनी पड़े,और ये लोग जो इन लड़कियों या फिर इनकी आवाज़ को देख कर तुम लोगों पर चिल्ला रहे है इनसे पूछता हूँ की इनको पता भी है की माज़रा क्या है और इसमें असली में गलती किसकी है इन जबरदस्ती इस्तुपिड बनाये जा रहे नवयुवकों की या फिर इन भोली भाली तथा सुन्दर दिख रही लड़कियों की जिन्होंने कपडे तो पहने हैं लेकिन ये पता नहीं की वो कितने जगह से फटा है,जो इन युवकों को तो माँ और बहन की याद जरुर दिला रही है लेकिन पता नहीं खुद भी इसका मतलब जानती है की नहीं,तथा अपने दोनों बूढ़े हो चुके हाथों को लड़कियों के सामने जोड़े रिक्वेस्ट कर बोलने लगे की बे टा “पांव पड़ते तुम्हारे जमी पे नहीं, तुम उडी जा रही हो पवन की तरह, अरे तुमको होगी नहीं भाइयों की कमी, पहले खुद चलना तो शिखो बहन की तरह” तथा तेज़ी से अपनाये जा रहे पश्चिमी देशो के पहनावे,सभ्यता और खान-पान हो रहे इनके दुष्प्रभावों और समाज में प्रतिदिन घट रही इस प्रकार की अनेको घटनाओं से खिन्न प्रहलाद चाचा अपने मन की भड़ास को निकलते हुए पता नहीं क्या क्या बोलते हुए वापस चाय की दुकान पर आकर बैठ गए! फिर हमने चाचा से पूछा की चाचा आखिर यंहा हुआ क्या था और गलती किसकी थी तो उन्होंने बताया की की ये लड़के अभी जैसे ही अपनी धीमी रफ़्तार वाली बाइक को इधर मोड़ ही रहे थे की अचनक ही स्कूटी को इन लड़कियों के द्वारा जान -बुझ कर इनके आगे लाकर धीमा किया गया था जिससे दिस्बलेंस हुई बाइक पे स्वर एक लड़का गिरने के तरह हुआ बावजूद इसके भी इन लड़कों ने कुछ नहीं बोला इसके बाद इन स्कूटी पे सवार सभ्य और भोली-भाली स्कूटी के मालकिनो के द्वारा बोला गया कि हें आये है बाइक चलाने कंट्रोल तो होता नहीं………………. बोल कर स्लेटर को तेज़ कर रेशमी बाल को ऊपर सवारते हुए निकल पड़ी,इतना होने के बाद इन बद्द्त्मिज़ कहे जाने वाले लड़कों की बाइक ने इनको आगे जाके रोका और इनसे सवाल जबाब करने लगे! अब आप ही बताओ न कि इसमें किसकी गलती है अरे ये सही बात है कि हर लड़का या हर लड़की एक जैसे नहीं हैं और अधिकतर इस प्रकार कि घटनाओ के जिम्मेदार मन चले युवक होते है जिनके द्वारा सही में भोली भाली और इज्जतदार बहु बेटियों पर हाथ डालने कि कोशिश कि जाती है जो हर हाल में एक अच्छे समाज के लिए गलत है लेकिन कहीं ना कहीं बेटा ये तो हमें मानना ही पड़ेगा कि कहीं लड़कों कि गलती होती है तो कही पर इसकी जिम्मेदार अपने को भोली और रेस्पेक्ट्फुल बताने वाली ये लड़कियां भी! पर आज तो सिर्फ दोषी लडको को ही हमारा समाज मानता है ना, ठीक है लड़कों को दोषी मानना चाहिए और सजाये भी मिलनी चाहिए लेकिन कही न कही एक अच्छे समाज के लिए इन लड़कियों या महिलावो को भी इस बारे में सोचना चाहिए कि कैसे एक अच्छे समाज का निर्माण हो सकता है और भाइयों ये तो सभी जानते हैं कि अच्छे ब्यवहार से सभी का दिल जीता जा सकता है चाहे कोई मनचला हो या फिर कुछ और, एक रोचक कहानी जैसी बात को सुनाते हुए गंगाराम लम्बी संश लेते हुए दुकानदार से बोला की ला यार एक एक कप चाय और पिला दे ये तो समाज है यहाँ तो…………………..भी शायद अंत में इसी निष्कर्ष पर पहुंचा था की इस जैसी कुछ घटना के जिम्मेदार एक वर्ग ही नहीं! और फिर कहने लगा की यार इस लिए सबको अपने ब्यवहार के अनुरूप ही दूसरों से अपेक्छा करनी चाहिए एक अच्छे और साफ सुथरे समाज के निर्माण की जिम्मेदारी हमी सभी भाई,बहन,माओं की है जिसके लिए सभी को अपने बय्व्हार को एक सही तरीके से प्रेषित करने की आवश्यकता है………………. को बोलते हुए गंगाराम की आंखे साफ कह रही थी की वो आज हो रही समाज में ऐसी घटनाओं से किस प्रकार दुखी था!
आपने बहुत अच्छा लिखा है समाज के निर्माण में स्त्री चरित्र बहुत ही उत्तरदायी है जिस तरह हर लडका बुरा नही होता उस तरह सभी लडकियां भी एक जैसी नही होती पर मुख्य वजह परिवार में दिये जाने वाले संस्कार है चाहे वह लडका है या लडकी।
ReplyDeleteअरे तुमको होगी नहीं भाइयों की कमी, पहले खुद चलना तो शिखो बहन की तरह” मगर यदि भाई ही लफंगा हुया तो क्या सीखेगी? ये संस्कार परिवार मे दोनो को एक जैसे देने पडेंगे। जब हम पूरी व्यवस्था मे एक का दोश निकाल कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं तभी समाज मे ऐसी बुराईयाँ बढती हैं। धन्यवाद।
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