जम्मू-कश्मीर के लेह में बीते ५ अगस्त को हुए बादल फटने के हादसे को जांजगीर-चाम्पा के मजदूर भुलाये नहीं भूल पा रहे हैं। लेह कमाने-खाने गए मजदूरों की आँखों में अब भी वह दर्द और दहशत कायम है। जिन्दगी तबाह कर देने वाले हादसे के बारे में मजदूर यादकर सिहर उठते हैं। जांजगीर-चाम्पा जिले से लेह वैसे तो सैकड़ों मजदूर हर बरस कमाने-खाने जाते हैं, लेकिन इस साल लेह के हादसे ने उनके कई अपनों से जुदा कर दिया। इस दर्दनाक हादसे में किसी ने अपनी मांखो दिया तो किसी ने अपनी पत्नी को। किसी के परिवार ही इस खौफनाक घटना में प्रभावित हो गया। इस हादसे को हुए दो माह से अधिक हो गए गए हैं, लेकिन मजदूरों की आँखों में व मंजर अब भी समाया हुआ है। जिसे याद कर ही वे लोग सिहर उठते हैं। लेह की बादल फटने की घटना में वैसे तो दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत की जानकारी उन मजदूरों के परिजन और लौटने वाले मजदूर दे रहे हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने जिले से महज १६ मज्दोरों की मौत होने की पुष्टि की है। इन्हें सरकार ने १ लाख रूपये आर्थिक मदद भी दे दिया है, लेकिन उन मजदूरों के बारे में अब तक पहल होती नहीं दिखाई दे रही है, जो हादसे के बाद से लापता हैं। जांजगीर जिला प्रशासन ने ४० मजदूरों के लापता होने की जानकारी दी है, जिनमें अधिकांश बच्चे हैं। लेह के हादसे में करीब ५० से ज्यादा मजदूर और उनके परिवार के लोग घायल हुए थे, इनमें से केवल २६ मजदूरों को हाल ही में ७-७ हजार की आर्थिक मदद दी गई। लेकिन न तो जम्मू-कश्मीर सरकार को उन लापता मजदूरों और उनके बच्चों की चिंता है और ना ही छात्तिस्स्गढ़ की सरकार को। ऐसे में लेह हादसे के बाद प्रभावित परिवार के लोगों के सामने अपने जख्म लेकर सिसकने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। जो ओग लापता हैं, उनके परिवार वाले उन्हें अपने से अलग होना, मानकर उनकी चित्रों के सामने स्व तक लिख दिया है, लेकिन सरकार तो केवल पुष्टिके बाद ही आर्थिक मदद देने के पक्ष में है। इन विपरीत परिस्थिति में उन परिवारों की बेचारगी समझी जा सकती है, जिनके घर का चिराग भी अब जिन्दा नहीं है, जो घर को संभालता था।
जांजगीर-चाम्पा जिले से लेह में केवल २ सौ मजदूर कमाने-खाने जाने की जानकारी जिया प्रशासन की ओर से आई थी, लेकिन जो मजदूर यहाँ से लेह गए थे, उनकी माने तो जिले से जाने वाले मजदूरों की संख्या ५ सौ से ज्यादा थी, उनका तो यहाँ तक कहाँ है की हादसे में ५० से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इस बात पर मुहर भी इसलिए लगता है क्योंकि जम्मू-कश्मीर सरकार ने १६ मजदूरों की मौत की पुष्टि की है, वहीँ ४० मजदूर लापता बताये जा रहे हैं।
यहाँ सोचने वाली बात यह भी है की जब लेह में घटना होने की जानकारी आई तो जिला प्रशासन के पास इसकी जानकारी नहीं थी की जिले से कहाँ-कहाँ मजदूर कमाने-खाने गए हैं। इसे विडम्बना ना कहें तो और क्या कहें, क्योंकि घटना के बाद पूरा प्रशासन सकता में था तथा कोई जानकारों कहीं से नहीं मिल रही थी। इस हादसे के बाद जिला प्रशासन के साथ छत्तीसगढ़ सरकार को भी सबक लेनी चाहिए।
जांजगीर-चाम्पा जिले से लेह में केवल २ सौ मजदूर कमाने-खाने जाने की जानकारी जिया प्रशासन की ओर से आई थी, लेकिन जो मजदूर यहाँ से लेह गए थे, उनकी माने तो जिले से जाने वाले मजदूरों की संख्या ५ सौ से ज्यादा थी, उनका तो यहाँ तक कहाँ है की हादसे में ५० से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इस बात पर मुहर भी इसलिए लगता है क्योंकि जम्मू-कश्मीर सरकार ने १६ मजदूरों की मौत की पुष्टि की है, वहीँ ४० मजदूर लापता बताये जा रहे हैं।
यहाँ सोचने वाली बात यह भी है की जब लेह में घटना होने की जानकारी आई तो जिला प्रशासन के पास इसकी जानकारी नहीं थी की जिले से कहाँ-कहाँ मजदूर कमाने-खाने गए हैं। इसे विडम्बना ना कहें तो और क्या कहें, क्योंकि घटना के बाद पूरा प्रशासन सकता में था तथा कोई जानकारों कहीं से नहीं मिल रही थी। इस हादसे के बाद जिला प्रशासन के साथ छत्तीसगढ़ सरकार को भी सबक लेनी चाहिए।
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