22.10.10

डा-निशंक-बने-उत्तराखण्ड के ‘रेसक्यू मैन‘ मुख्यमंत्री

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पीडितों की जान बचाना बनाया अपना मकसद
खराब मौसम का जोखिम लेकर पहुंचाते रहे पीडितों तक
क्षतिग्रस्त मार्ग, मूसलाधार बारिश नहीं बनी पग बाधा

राजेन्द्र जोशी

देहरादून । देश केे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को जैसे मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है ठीक वैसे ही उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा0 निशंक को प्रदेशवासी रेसक्यू मैन के रूप में जानने लगे हैं। यह नाम उन्हे मिला प्रदेश में आपदा के दौरान राज्य के प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को उनके गंतव्यों तक पहुंचाने पर, इन क्षेत्रों में आपदा की मार से घायल हुए लोगों को अस्पताल पहुंचाने पर। विगत सौ सालों के इतिहास में पहली बार उŸाराखण्ड में इतनी भीषण तबाही देखी गई। जन, धन लहलहाती फसलें, खेत खलिहान व दुधारू गाय-भैंस पलक झपकते ही प्राकृतिक तांडव की भेंट चढ गए। प्रदेश के अवस्थापन विकास का सारा ढांचा चरमरा गया, हजारों-हजार किलोमीटर सडकें विद्युत लाइन, पेयजल लाइनें ध्वस्त हो गई। विकास की राह में निर्वाध गति से आगे बढते नवोदित राज्य उŸाराखण्ड पर मानों किसी की नजर लग गई। संकट की इस घडी में जब किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था तब प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की साक्रियता ने दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों में एक नव जीवन का संचार किया। मुख्यमंत्री ने जहां एक ही दिन में 6-7 जनपदों का सघन व तूफानी दौरा किया वहीं दुर्गम व क्षतिग्रस्त राहों की बाधाओं को पार करते हुए कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर एक नया रिकार्ड भी कायम किया। आज किसी गांव में तबाही की खबर आती तो मुख्यमंत्री उसी क्षण वहां नजर आते। हवाई मार्ग, सडक मार्ग, पैदल जहां जैसे भी तत्काल पहुंचा जा सके मुख्यमंत्री डा. निशंक बिना समय गवांएं पीडित परिवारों के दुख बांटते नजर आए। इस प्राकृतिक आपदा के दुष्प्रभाव को कम करने में डा. निशंक की सक्रियता ने जहां अहम भूमिका निभाई वहीं उनकी त्वरित निर्णयात्मक क्षमता ने मौत के आगोश में समा रहे लोगों को जीवन दान भी दिया। प्रदेश की लगभग सारी सड़कें जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गई थी। प्रभावित इलाकों तक पहुंचना बहुत ही दुश्कर हो चुका था। मौसम किसी भी तरह साथ नहीं दे रहा था।लगातार हो रही झमाझम मूसलाधार बारिश ने पीडितों तक पहुंचने के सारे रास्ते अवरूद्ध कर दिए थे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने खराब मौसम की परवाह किए बगैर प्रभावित लोगों तक पहुंचने की यथासंभव कोशिश की इन्हीं कोशिशों के चलते कई बार उनके हेलीकाप्टर को आपातकालीन लैंडिगं भी करनी पड़ी। विपरीत मौसम मंे डा. निशंक ने जान जोखिम में डालकर आपदा पीडितों की आंखों के आसूं पोंछकर उनके दर्द को कम करने की लगातार कोशिश की। आपदा में अपने परिजनों को खो चुके लोगों को ढांढस बाधंते हुए डा. निशंक प्रभावित लोगों के बीच पहुंचते तो कई बार खुद अपने आंसू रोक नहीं पाए लोगों के असहस दुख को देखकर उनकी आंखें छलछला जाती लेकिन तत्समय ही वे अपने आप काबू पाते हुए पीडितों को ढांढस बांधते नजर आए। भीषण तबाही ने जहां कई लोगों का जीवन लील लिया वहीं जिंदा बचे लोगों की उम्मीदें राहत के लिए राज्य सरकार पर टिकी थी, प्रदेश के सह्रदय व संवेदनशील मुख्यमंत्री डा. निशंक ने आपदा की इस घडी में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और आपदा पीडितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए आपदा ग्रस्त क्षेत्र अल्मोडा, नैनीताल, टिहरी, हरिद्वार, पिथौरागढ, पौडी, चमोली आदि जनपदों के प्रभावित स्थानों का स्थलीय निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री निशंक जहां खुद प्रभावित इलाकों का लगातार दौरा करते रहे वहीं उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को आपदाग्रस्त क्षेत्रों में हुए नुकसान का आकलन करने व प्रभावितों को राहत व पुनर्वास के कड़े निर्देश दिए। वीडियों कान्फ्रेसिंग के जरिए राहत व पुनर्वास कार्यों की लगातार समीक्षा करते रहे। कपकोट सुमगढ में हुई हदय विदारक तबाही के मंजर ने मुख्यमंत्री डा. निशंक के अन्तस तक को झकझोर दिया उन्होंने स्वयं जहां अपने सार्वजनिक जीवन के इतिहास में इतनी विभत्स व लोमहर्षक घटना उन्होंने पहली बार देखी। रूह कंपा देने वाली इस भीषण आपदा में 18 मासूम बच्चों को अपनी जान गवानी पडी, जिन मासूमांे को दुनियादारी के बारे में अभी कुछ पता ही न था वे जिंदा दफन हो गए। डा. निशंक विपरित व विषम परिस्थितियों में कई किलोमीटर पैदल चलकर घटनास्थल तक पहुंचे और अपने मासूम नौनिहालों को आपदा में खो चुके लोगों के जख्मांे पर मरहम लगाने की कोशिश की। प्राकृतिक आपदा में घायल लोगों को हेलीकाप्टर से देहरादून लाया गया, मुख्यमंत्री जब किसी प्रभावित क्षेत्र में जाते वहां से किसी घायल का जीवन खतरे में देख उसे हेलीकाप्टर में अपने साथ बिठाकर देहरादून ले आते उŸारकाशी जनपद नैटवाड़ के 22 वर्षीय आहाराम, पुरोला के 65 वर्षीय लालचंद, वहीं काण्डियाल गांव के 4 वर्षीय बालक धर्मेन्द्र समेत दर्जनों लोग अन्तिम सांसें गिन रहे थे उन्हें मुख्यमंत्री डा. निशंक ने अपनी सक्रियता के चलते नया जीवन दिया। 18 सितम्बर 2010 को प्रदेश में दैवीय आपदा से हुए भारी नुकसान को देखते हुए मुख्यमंत्री ने तत्काल जिलाधिकारियों और शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। 19 सितम्बर 2010 को रविवार होने के बावजूद मुख्यमंत्री सचिवालय पहुंचे और शासन के शीर्ष अधिकारियों के साथ आपातकालीन बैठक की। वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारियों के साथ आपात स्थिति की समीक्षा करते रहे। प्रदेश जब प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा था तब मुख्यमंत्री डा. निशंक पल-पल की स्थितियों पर नजर रखे हुए थे वे प्रभावितों तक पहुंचने का यत्न करते रहे शायद ही कोई ऐसा दिन बचा हो जिस दिन उन्होंने कुमाऊं, गढवाल के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा न किया हो। अल्मोडा में प्रकृति के कहर को देखकर मुख्यमंत्री अपने आसंू नहीं रोक पाए प्रभावित गांवों का दौरा कर मुख्यमंत्री ने पीडितों के दुख दर्द को साझा करने की कोशिश की। मुख्यमंत्री ने कहा हमारा मकसद हर हाल मंे जीवन को बचाना है। बाड़ी-बाल्टा क्षेत्र में जहां 13 लोग मौत के आगोश में समा गए थे वहां के लोगों से मिलने मुख्यमंत्री पैदल गए और अतिवृष्टि व भूस्खलन से हुई क्षति को देखा गांव वासियों से मुलाकात कर उनका दर्द जाना। अल्मोडा जिले में प्राकृतिक आपदा में 33 से अधिक लोग काल कवलित हो गए थे देवली में 6, बाडी-बाल्टा में 13, पिल्खा में 4, जोस्याणा में 2, नौला मंे 2, असगोली कडा 1, सदीलैण (सल्ट) 1। तिमिला चनौली (भिकियासैण) 1। स्पोंतरा (भिकियासैण) 2। शव मिले, इन गांवों मंे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने पैदल जाकर लोगों के असहस दुख में शरीक होने की कोशिश की। कई प्रभावित क्षेत्रों में मुख्यमंत्री स्थानीय जनप्रतिनिधियों से पहले पहुंच गए। टिहरी बांध की झील का जलस्तर 820 मीटर से उपर बिना शासन की अनुमति से भरे जाने पर मुख्यमंत्री ने टीएचडीसी अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई उन्होंने चिन्यालीसौड़ के डूबने के लिए टीएचडीसी अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने टीएचडीसी के सीएमडी समेत शीर्ष अधिकारियों को सचिवालय स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में तलब कर उनसे पूछा। लोगों की जान पर खेलने की इजाजत टीएचडीसी को किसने दी? 42 वर्ग किमी में फैली विशालकाय टिहरी बांध झील का जलस्तर आर एल 825 तक भरा जिससे भागीरथी घाटी में भारी संख्या में लोगों के खेत, खलिहान, मकान, दुकान आदि को भारी क्षति हुई। मुख्यमंत्री ने पुनर्वास अधिकारियों की गलत सूचना पर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही के निर्देश दिए। इस प्राकृतिक आपदा में निर्दोष, मासूूूम लोगों को जहां अपनी जान गंवानी पड़ी वहीं हजारों घायलों को तत्काल उपचार देकर मौत के भयावह व विभित्स आंकडों को बढने से रोका गया, मुख्यमंत्री डा. निशंक की सक्रियता, तेजी, त्वरित निर्णयात्मक क्षमता, तीक्षण मेधा से जहां असहाय घायल लोगों को पुनर्जन्म मिला वहीं मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व की सह्रदयता संवेदनशील व जोखिमांे से लडने की इच्छा शक्ति ने उन्हें पीडित लोगों को संकट मोचक बना दिया। पीडितों के बहुमूल्य जीवन बचाने का मकसद लेकर मुख्यमंत्री हर सुबह प्रभावित क्षेत्र में जाते और किसी की सांस उखडने से बचा लेते। प्राकृतिक आपदा के तांडव में यह ‘रेसक्यू मैन‘ मुख्यमंत्री अपनी जान की परवाह किए बगैर खराब मौसम व क्षतिग्रस्त सडकों की पग बाधाओं को पार करते हुए पीडितों के बीच पहुंचता रहा।

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