अखिलेश उपाध्याय
शरद पूर्णिमा भारतीय इतिहास में पुरातन समय से चला आ रहा एक मात्र ऐसा उत्साव् है जो सचमुच प्रकृति का एक अनुपम तोहफा है. यह वास्तव में अमृत की तरह पवित्र है. शरद महोत्सव को लेकर लोगो ने सभी तैयारियाकर ली है तथा बाजार में दूध तथा मावा की खपत भी बढ़ गई है.
शरद पूर्णिमा के गूढ़ रहस्य के बारे में पंडित अमरनाथ शास्त्री ने बताया की भारतीय सनातन संस्कृति में अबाध गति से चले आ रहे व्रत त्यौहार पर्व हमारे लिए आनंद ही नहीं प्रेरणा एवं भाईचारे का सन्देश लेकर आते है. केवल भारतीय संस्कृति ही वह जीवंत संस्कृति है जिसमे पर्व,व्रत, त्यौहार आनंददायक ही नहीं बल्कि - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः का सन्देश देता है.
आश्विन के अंत में आनंद का पर्व शरद पूर्णिमा जिसे अमृत प्रशन पर्व भी कहते है. मर्केंडेय पुराण में तीन प्रकार की रात्रियो का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार कालरात्रि , महारात्र्ही व मोहरात्रि है. जिसमे मोहरात्रि का मतलब यह काल विशेष आनंद प्राप्त कर स्वयं को भूलने का है. यह वह संधिकाल है जहा वर्षा ऋतू का समापन और शरद ऋतू प्रारंभ कहा जाता है. इस मोहरात्रि को शरद पूर्णिमा की रात्रि कहा जाता है जिसमे आधी वर्षा तो नहीं होती किन्तु शीतल फुहारे होती है. इस रात सागर में ज्वार भाता आता है तब सागर की लहरेआसमान छूती है. मानो वे अपने प्रियतम से मिलने आतुर है. अतः यह पर्व प्रेम का प्रतीक है.
भागवत महापुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ रास हुआ था, इस रति में सभी लोग खुले आसमान के नीचे शरद पूर्णिमा की शीतल बयार एवं पूर्ण चन्द्र की शीतल चांदनी में प्रकृति के अनुपम रूप का नजारा देखते है. यदि यह स्थान प्राकृतिक रमणीय स्थल हो तो बात ही कुछ अलग हो और इसका आनंद ही कुछ अलग होता है. इसी आनंद का भरपूर फायदा उठाने के लिए प्रकृति प्रेमी इस दिन नदी, तालाब, सागर और जहा प्राकृतिक सौन्दर्य की भरमार हो वहा पर पहुचकर पूरी रात आनंद लेने से नहीं चूकते. खासकर मसूरी, दार्जिलिंग, वृन्दावन,भेडाघाट , पचमढी, महाबलेश्वर आदि सुरम्य पार्वतीं क्षेत्र शरद पूर्णिमा के दिन पर्यटकों के साक्षी है.
शरद पूर्णिमा का महत्व क्यों
कहते है इस रति को अधिपति देव इन्द्र ने भगवान का गोपियों के साथ रास लीया पर आस्मांस से अमृत बरसाया था और वे गोपिया अमर होकर भगवान श्रीकृष्ण के साथ एकाकार हो गई थी. तभी से इस रात की याद में आज भी जब तक आकाश के पूर्ण चंद की छाया दूध में न दिखाई दे यह पर्व एक प्रकार से भगवान् इन्द्रदेव की आराधना का भी होता है ताकि वर्षाकाल में उनके द्वारा की गई बरसात से खेतो में अन्न , पर्वतो, जंगलो में प्रचुर मात्रा में घास व वनस्पति हो. इसी कामना के साथ हम शरद पूर्णिमा की रात्रि इन्द्र भगवान का पूजन करके उन्हें धन्यवाद देते है और मध्यरात्रि तक खुले आसमान के नीचे दूध उबालते है ताकि प्रसाद रुपी उस दूध में जिसे हम अमृत समझकर लेते है जिसकेपीछे यही भावना होती है की शायद आकाश से बरसने वाली अमृत की बूंदे हमें प्राप्त हो.
बहुत बढिया जानकारी उपलब्ध करवायी……………आभार्।
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