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“इन तेज हवाओं में दिया बुझता ना तो क्या करता,
दिल की राहों मे अजनबी बनता ना तो क्या करता,
जब कश्ती टूट गयी हो और जिन्दगी बे-साहिल हो;
तो खुदा से एक तूफां की दुआ करता ना तो क्या करता,
क्या बताऊँ तुम्हे सांप निकले हैं आस्तीनों से;
इस दुनिया में साए से लिपटता ना तो क्या करता,
पास कुछ भी ना रहा बस टूटे खवाबों के सिवा;
इन खिलोनों से “गमेदिल” बहलता ना तो क्या करता?
Manish Singh "गमेदिल"
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