30.1.11

लग रहा है यूँ लाजबाब कोई

लग रहा है यूँ लाजबाब कोई,
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।
चौदवीं रात बादलों में छुपा
झांकता है ज्यों माहताब कोई ।
मखमली दूब पे पसरता ज्यों
सुबह- सुबह का आफताब कोई ।
मेरी आँखों में यूँ उतरता है
दिल में ज्यों मचलता हो ख्वाब कोई ।
लग रहा है यूँ लाजबाब कोई
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।

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