वाराणसी, जिस गंगा के एक बूंद मात्र से मन निर्मल और तन पावन हो जाता हो, पवित्रता ही जिसकी पहचान हो और करोड़ो-करोड़ लोगों की अटूट आस्था टिकी हो काशी में अब वह अब अपनी पहचान को लेकर जूझती नजर आ रही है। उसे अपने मौलिक जल से विहीन कर दूषित नदियों व नालों के हवाले कर दिए जाने से उसका अमृत तत्व समाप्त होता जा रहा है। कहने का मतलब यह कि पश्चिमी नहर को गंगाजल और गंगा के हिस्से में दूषित नदियों के पानी का निर्णय तकरीबन 23 सौ किलोमीटर लंबी अमृतवाहिनी को मैला ढोने वाली नदी बनाने की ही कोशिश है। काशी में सूखती-सिकुड़ती गंगा और दूषित होते जल को देखते हुए बीएचयू के गंगा अन्वेषण केंद्र ने गंगा के अपस्ट्रीम (हरिद्वार) और डाउनस्ट्रीम (वाराणसी) में गंगाजल की क्वालिटी और क्वांटीटी का तुलनात्मक अध्ययन किया। पाया कि वाराणसी में जो जल दिखाई दे रहा है वह गंगाजल नहीं वरन नालों व छोटी-छोटी नदियों का प्रदूषित अवजल है। इसी को शोधित कर गंगाजल बनाने की तमाम कोशिशें की जा रही है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक गंगा अपने अपस्ट्रीम (हरिद्वार) में ही वेग शून्य हैं। मतलब यह कि इसका मौलिक जल हरिद्वार से ही गंगा की मुख्यधारा में नहीं के बराबर है। कानपुर, इलाहाबाद होते हुए वाराणसी में जो जल आ रहा है वह भूमिगत जल है या फिर विभिन्न नालों, छोटी-छोटी नदियों का प्रदूषित जल। इसी के साथ यह भी साफ हो जाता है कि गंगा निर्मलीकरण संबंधी जो भी कार्य किए जा रहे हैं वह विभिन्न नालों, कल-कारखानों व छोटी-छोटी दूषित नदियों से संकलित जल को ही शोधित कर इसी के हवाले करने जैसा उपक्रम मात्र हैं। गंगा अन्वेषण केंद्र के कोआर्डिनेटर प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि पश्चिमी गंगा नहर जो हरि की पौड़ी से होकर गुजरती है, अपने वेग और आयतन के हिसाब से घुलित आक्सीजन की मात्रा 9 पीपीएम (पार्ट पर मिलीग्राम) और बीओडी लोड जीरो की जगह अधिकतम 2-4 पीपीएम रखती है। वहीं भीमगौड़ा से महज एक किलोमीटर आगे डाउनस्ट्रीम में गंगा के पानी में घुलित आक्सीजन 6 पीपीएम और बीओडी लोग बढ़ कर 4 पीपीएम हो जाता है। वजह भी साफ है, नदी विज्ञान के अनुसार जहां-जहां नदी का वेग कम होगा वहां के जल में आक्सीजन की मात्रा (डीओ) कम होती जाएगी और बीओडी लोड बढ़ता जाएगा। हरिद्वार के बाद डाउनस्ट्रीम में गंगा इसी वेगविहीनता की शिकार है। वह कानपुर में विभिन्न अवसादों को लेती हुई जब वाराणसी में पहुंचती है तो इसमें घुलित आक्सीजन की मात्रा घट कर 3-4 पीपीएम और बीओडी लोड बढ़ कर 10 पीपीएम के ऊपर हो जाता है। इससे यह सत्यापित होता है कि हरिद्वार के बाद से ही गंगा की अविरलता और निर्मलता को ग्रहण लग जा रहा है। यही वजह है कि सैकड़ो करोड़ खर्च के बाद भी गंगा मैली ही नहीं और मैली होती जा रही हैं।
23.1.11
काशी में गंगा तो हैं पर वो बात नहीं !
वाराणसी, जिस गंगा के एक बूंद मात्र से मन निर्मल और तन पावन हो जाता हो, पवित्रता ही जिसकी पहचान हो और करोड़ो-करोड़ लोगों की अटूट आस्था टिकी हो काशी में अब वह अब अपनी पहचान को लेकर जूझती नजर आ रही है। उसे अपने मौलिक जल से विहीन कर दूषित नदियों व नालों के हवाले कर दिए जाने से उसका अमृत तत्व समाप्त होता जा रहा है। कहने का मतलब यह कि पश्चिमी नहर को गंगाजल और गंगा के हिस्से में दूषित नदियों के पानी का निर्णय तकरीबन 23 सौ किलोमीटर लंबी अमृतवाहिनी को मैला ढोने वाली नदी बनाने की ही कोशिश है। काशी में सूखती-सिकुड़ती गंगा और दूषित होते जल को देखते हुए बीएचयू के गंगा अन्वेषण केंद्र ने गंगा के अपस्ट्रीम (हरिद्वार) और डाउनस्ट्रीम (वाराणसी) में गंगाजल की क्वालिटी और क्वांटीटी का तुलनात्मक अध्ययन किया। पाया कि वाराणसी में जो जल दिखाई दे रहा है वह गंगाजल नहीं वरन नालों व छोटी-छोटी नदियों का प्रदूषित अवजल है। इसी को शोधित कर गंगाजल बनाने की तमाम कोशिशें की जा रही है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक गंगा अपने अपस्ट्रीम (हरिद्वार) में ही वेग शून्य हैं। मतलब यह कि इसका मौलिक जल हरिद्वार से ही गंगा की मुख्यधारा में नहीं के बराबर है। कानपुर, इलाहाबाद होते हुए वाराणसी में जो जल आ रहा है वह भूमिगत जल है या फिर विभिन्न नालों, छोटी-छोटी नदियों का प्रदूषित जल। इसी के साथ यह भी साफ हो जाता है कि गंगा निर्मलीकरण संबंधी जो भी कार्य किए जा रहे हैं वह विभिन्न नालों, कल-कारखानों व छोटी-छोटी दूषित नदियों से संकलित जल को ही शोधित कर इसी के हवाले करने जैसा उपक्रम मात्र हैं। गंगा अन्वेषण केंद्र के कोआर्डिनेटर प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि पश्चिमी गंगा नहर जो हरि की पौड़ी से होकर गुजरती है, अपने वेग और आयतन के हिसाब से घुलित आक्सीजन की मात्रा 9 पीपीएम (पार्ट पर मिलीग्राम) और बीओडी लोड जीरो की जगह अधिकतम 2-4 पीपीएम रखती है। वहीं भीमगौड़ा से महज एक किलोमीटर आगे डाउनस्ट्रीम में गंगा के पानी में घुलित आक्सीजन 6 पीपीएम और बीओडी लोग बढ़ कर 4 पीपीएम हो जाता है। वजह भी साफ है, नदी विज्ञान के अनुसार जहां-जहां नदी का वेग कम होगा वहां के जल में आक्सीजन की मात्रा (डीओ) कम होती जाएगी और बीओडी लोड बढ़ता जाएगा। हरिद्वार के बाद डाउनस्ट्रीम में गंगा इसी वेगविहीनता की शिकार है। वह कानपुर में विभिन्न अवसादों को लेती हुई जब वाराणसी में पहुंचती है तो इसमें घुलित आक्सीजन की मात्रा घट कर 3-4 पीपीएम और बीओडी लोड बढ़ कर 10 पीपीएम के ऊपर हो जाता है। इससे यह सत्यापित होता है कि हरिद्वार के बाद से ही गंगा की अविरलता और निर्मलता को ग्रहण लग जा रहा है। यही वजह है कि सैकड़ो करोड़ खर्च के बाद भी गंगा मैली ही नहीं और मैली होती जा रही हैं।
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