6.1.11

अभी तो धुंद है

सुबह यह सर्द है ,
धुंद है भारी ,
भटकती सूर्य की किरणें
कहीं पर खो गयी हैं ।
बुझा चल फ़ोन (मोबाईल ) पर अपने
अभी एलार्म की घंटी
ये बालाएं पुनः
सुख नींद -सी में सो गयी हैं ।

आपकी याद आती है
लिए एक ताजगी -सी ,
कहीं पर आप भी होंगी
यूँ ही आधी जगी -सी ।

कुहासा है मगर
कुछ पक्षियों के पर
पुनः हिलने लगे हैं ;
ख्यालों में ही शायद
आप-हम मिलने लगे हैं ।

तुरत अब धुप होगी
थूब पे मोती विचे होंगे ,
अगर हम मिल गए तो
जिन्दगी के सिलसिले होंगे ।

5 comments:

  1. sundar v komal abhivyakti .badhi .

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  2. agar ham mil gaye to zindagi ke silsile honge.
    prakriti se khud ko jodti bahut sunder bhavpoorn kavita...

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  3. bahut bahut dhanyawaad ! Shikhaji aur Shaliniji

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  4. बेहतरीन कविता..बधाई हो

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