कश्ती दरिया में इतराए ये समझकर
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर
किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर
पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों को डुबो देता है सैलाब में
कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
न दरिया अपनी न किनारा अपना
kaun ubata kaun doobata usne kahan vichara;
ReplyDeletetarunaai ke mahajwaar ne kisko kaise maaraa .
पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
ReplyDeleteकिनारों को डुबो देता है सैलाब में
वाह, क्या बात है
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
ReplyDeleteन दरिया अपनी न किनारा अपना
सच कहा ... कश्ती को इतनी समझ होती तो दरिया में क्यूँ रहती ... अछा लिखा है ....