23.1.11

सुशील के बहाने...

पत्रकार स्वर्गीय सुशील पाठक की मौत के बहाने काफी कुछ कहा और सुना जा रहा है...हत्या के बाद पुलिस कातिलो और कत्ल में प्रयुक्त हथियार की तलाश एक महीने बाद तक नही कर सकी है...पुलिस की जांच कई दिशाओ में हुई लेकिन अहम् सुराग हाथ नही लगे...कोशिशे जारी है और पत्रकार भी पुलिस की जांच रिपोर्ट आने का इन्तेजार कर रहे है...इन सब के बीच सुशील की मौत पर स्यापा जारी है...मौत पर राजनीती या फिर राजनीती के लिए मौत का बहाना तलाशने वालो के कंठ इन दिनों कुछ ज्यादा मुखर है...पत्रकार की मौत पर कुछ पत्रकार ही ज्यादा लिख और बोल रहे है...जो जिन्दा इंसान{पत्रकार}के मुँह पर कुछ नही बोल सके वो मौत के बाद सुशील की व्यक्तिगत जिन्दगी के पन्नो को खंगाल रहे है...जो बोल रहे है ओ इशारो की भाषा समझते है...एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपनी वेब साइड पर सुशील की मौत और कत्ल से जुड़े कई मामलो को लिखा,उस लेख के आखिरी में प्रेस क्लब के सचिव और पत्रकार स्वर्गीय सुशील पाठक को श्रधांजलि भी दी गई...इसे पढने वाले कुछ कथित पत्रकारों ने अपना मत भी व्यक्त  किया...एक ने तो लिख दिया की सुशील की मौत का कफ़न १९९८ में ही तय हो गया था...मतलब वो कथित पत्रकार जानता है की क़त्ल क्यों और किसने किया है...? क्योंकि जितने आत्मविश्वास से लिखा गया है वो पुलिस को क़त्ल की गुथी सुलझाने की दिशा में काफी हद तक मदद कर सकता है...पुलिस ने बात सामने आने पर उस कथित कलमकार को थाने ले जाकर पूछताछ की है,जरुरत पड़ने पर और पूछताछ की जाएगी...सवाल ये खड़ा होता है की क्या उन लोगो को सुशील के क़त्ल से जुड़े अहम् तार का पता तो नही है..? क्या ये लोग जानते है की सुशील की हत्या किसने और  क्यों की है ? क्योंकि जितना इन लोगो ने कहा है या एस.एम्.एस के जरिये कह रहे है उससे जाहिर है उन्हें काफी कुछ पता है...पत्रकारिता की आड़ में राजनीतिक बिसात पर शह-मात का खेल खेलने वालो ने मौत को जरिया बनाया ये ज्यादा दुःख की बात है...अरे मौत पर स्यापा करने वाले वो लोग है जिन्हें सुशील को श्रधांजलि देने का वक्त तक नही मिला, ये वही लोग है जिन्हें धरना स्थल पर आकर बैठने में शर्म महसूस हुई...जब शहर का आवाम,पत्रकार कातिलो को गिरफ्तार करने और अमन-चैन के लिए नेहरू चौक पर गला फाड़ रहा था तो ये कथित पत्रकार कहाँ थे...? अरे सुशील की मौत के बहाने स्यापा करने वालो... कुछ तो सोचा होता,लोग क्या कहेंगे....? जिनके दामन कई दागो से रंगे है ओ दुसरो के दाग खोजने निकले है...जो कहीं और कुछ नही है वो कमेंट्स के जरिये अपनी नीयत,नापाक इरादों को सार्वजनिक कर रहे है...खैर मुझे इस बात से बहुत ज्यादा इत्तेफाक नही है की वो लोग क्या कर रहे है क्योंकि जो कुछ नही है उनके बारे में सोच कर क्यों अपना वक्त जाया करूँ...मुझे कुछ कहने या लिखने की जरुरत सिर्फ इसलिए महसूस हुई क्योंकि अब तो लोग मौत पर भी तमाशा खड़ा किये हुए है...
                                       "गिलहरी और अखरोट के किस्से, कहीं स्वारी "सुशील" और ना जाने क्या-क्या....
......"एक सियार को कहीं से अखरोट की थैला मिल गया|उसने गिलहरियों से कहा-कि तुम लोग यदि मेरी सेवा करोगे तो तुम्हे मैं अखरोट से भरा ये थैला दे दूंगा|गिलहरियां मन लगा कर सियार की सेवा करने लगीं|इस उमीद में साल दर साल बीतते गये| जब गिलहरियां बुढ्ढीं हो गईं तो  सियार ने अखरोट का थैला उन्हे दिया|लेकिन तब तक गिलहरियों के दांत टूट चूके थे|
यह कहानी छतीसगढ के बिलासपुर के एक पत्रकार ने सुनी और कहा- अच्छा तो गिलहरियां हम हैं और प्रेस क्लब गृह निर्माण समिति के प्लाट अखरोट हैं तो फिर सियार....? सारी सुशील"....
                                                                                          इन किस्से कहानियो.एस.एम्.एस को कुछ ख़ास लोग मोबाईल के जरिये फैला रहे है...उन लोगो को अभी गिलहरी और अखरोट में खूब मजा आ रहा है...हंसी-ख़ुशी के बीच सुशील की मौत पर दंगल लड़ने वालो की जमात अलग भी है और काफी कमजोर भी तभी तो मौत के बहाने स्यापा करने वाले जानबूझकर वो हरकत कर रहे है जो मानवीयता को शोभा नही देती.... 

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