आज मेरे मोबाइल पर एक सन्देश आया, जिसे पढ़कर मुझे केवल दुःख ही नहीं, बल्कि अफ़सोस भी हुआ है। अब यही सन्देश मैं आपलोगों से भी साझा करना चाहता हूँ। साथ ही यह भी चाहूँगा की आप इस सम्बन्ध में अपनी बहुमूल्य टिपण्णी जरूर दें।
किसी गरीब को २० रुपये देना बहुत ज्यादा लगता है। वहीँ अगर होटल में टिप देना हो तो यही राशि बेहद कम लगती है। तीन मिनट के लिए भगवान् को याद करना काफी मुश्किल है, लेकिन तीन घंटे की फिल्म देखना आसान होता है। पूरे दिन मेहनत के बाद जिम जाने से नहीं थकते, लेकिन जब माँ-बाप के पैर दबाना हो तो हम थक जाते हैं। वेलेंटाइन डे के लिए हम पूरे साल इंतज़ार करते हैं, लेकिन मदर्स डे कब है, हमें पता ही नहीं होता।
किसी गरीब को २० रुपये देना बहुत ज्यादा लगता है। वहीँ अगर होटल में टिप देना हो तो यही राशि बेहद कम लगती है। तीन मिनट के लिए भगवान् को याद करना काफी मुश्किल है, लेकिन तीन घंटे की फिल्म देखना आसान होता है। पूरे दिन मेहनत के बाद जिम जाने से नहीं थकते, लेकिन जब माँ-बाप के पैर दबाना हो तो हम थक जाते हैं। वेलेंटाइन डे के लिए हम पूरे साल इंतज़ार करते हैं, लेकिन मदर्स डे कब है, हमें पता ही नहीं होता।
ek ek baat hum sabhi par kataksh karti hai .abhi to samay hai sudhr jana chahiye .badhiya post .aabhar .
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