
कौन अपनी माटी, अपना मुल्क, अपना गाँव-घर छोड़ के जाना चाहता है परदेश।
काफी दर्द होता है तब जब नई शादी हुयी हो वो भी सिर्फ २ मंनिने की और जाना हो विदेश वो भी पेट की आग बुझने की खातिर।

ऐसा ही मंज़र आज और अभी मैंने देखा, ग़म हुआ, आँखें नम होगें।
चाचा का लड़का मेरा चचेरा भाई आसिफ नई बीबी, परिवार, घर, गाँव और देश छोड़ कर ओमान के मस्कट में परिवार का पेट पालने की खातिर जा रहा था।
दिल ने सोच आखिर कब दूर होगी ये मजबूरी।



क्या किया जा सकता है, आखिर सवाल पेट का जो है।
सरकारों को भी सोचना चाहिए इन पर्देशिओं का दर्द।
कभी खुद पे कभी हालत पे रोना आया
बात निकली तो हर एक बात इक बात पे रोना आया॥
खैर...
आपसे बातें होती रहेंगी।
दुआओं में याद रखियेगा।
apno se bichhudne ka dard vakai bahut hota hai.vaise aapne apne dukh ko hamse bant liya ab shayad kuchh to kam ho gaya hoga.kabhi to aapki ichchha bhi pooori avashay hogi...
ReplyDeleteबड़ा अच्छा लेख। अपनों से बिछड़ने के दर्द का सही आभास वही कर सकता है जो विदेश में है। लकिन पेट की आग बुछाने के लिए बिछड़ना ही पड़ता है।
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