डरपोक, कायर, भ्रष्ट, राष्ट्रद्रोही, मुस्लिम मतों की राजनीति के लिये अफजल गुरूओं को दामाद की तरह पालने वाली (पहले शीला दीक्षित सरकार ने सालों अफजल गुरू की फाईल दबाये रखी और अब गृह मंत्रालय उस पर कुण्डली मारे बैठा है), बाटला हाउस काण्ड में देश के लिये शहीद होने वाले वीर मोहन शर्मा की शहादत को कलंकित करने वाली, मुंबई हमले के अपराधी आतंकियों को हिंदू साबित करने वाली और विदेशों में खरबों-खरबों डॉलर जमा करने वाली कांग्रेस ने जेपीसी की खीझ उतारने के लिये बाबा रामदेव नाम के खंभे को नोचना शुरू कर दिया है । कांग्रेस की बाबा रामदेव से दुश्मनी ज्यादा पुरानी नहीं है । बात बस दो साल पुरानी ही है जब बाबा रामदेव ने 2009 के चुनाव में काले धन का मुद्दा उठाया था ।
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भारत में मृत हो चुके योग और प्राणायाम को बाबा ने पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित किया । यहां तक कि मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों में भी लोग चोरी छुपे योग-प्राणायाम करते हैं । बाबा की वजह से पूरी दुनिया में लगभग चार से पांच करोड़ लोग योग के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ कर चुके हैं और किसी भी पैथी के द्वारा कभी ठीक न होने वाली बीमारियों से उन्होंने मुक्ति पायी है । कई करोड़ लोगों को स्वास्थ्य दान करने वाले बाबा रामदेव अगर आज यूरोप या अमेरिका में होते तो निसंदेह उन्हें नोबेल पुरूस्कार कब का मिल चुका होता । एक दशक पहले योग और प्राणायाम के विश्व भर में इस उत्थान के बारे में किसी ने नहीं सोचा था । भारतीयता, हमारा सनातनी ज्ञान, संस्कृति और हमारे प्रचीन योग और औषधि के ज्ञान को विश्वपटल पर एक दिव्य स्वरूप में प्रतिष्ठित होने के बारे में आपने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा । आपको हमेशा याद रहता है स्वामी विवेकानंद का 1896
में
शिकागो धर्मसभा में दिया गया वह ऐतिहासिक उद्बोधन लेकिन उसी ज्ञान और योग की पताका को 100 साल बाद जिस सन्यासी ने पूरी भारतीयता के साथ पूरे विश्व में लहरा दिया, उसे आप एक भ्रष्ट सन्यासी की संज्ञा देने पर उतारू हैं । .
स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना ही कुसूर है कि वे योग छोड़ कर राजनीति के कीचड़ भरे तालाब में उतर कर उसे साफ करने के तमन्नाई हैं । राजनीति के घाघ और भ्रष्ट पंडितों को अच्छी तरह से याद रहता है की जब जब कोयी सन्यासी चाणक्य या गांधी बनकर राजनीति में धंसता है तब तब देश से भ्रष्ट राजसत्ता का समूल नाश होता है और भारत सदियों तक विश्वपटल पर एक महासूर्य की तरह चमकता रहता है । रामदेव पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनका योग अमीरों के लिये है, गरीबों के लिये वो कुछ नहीं करते हैं । क्या आपको पता है कि रामदेव ने एक लाख योगशिक्षकों को प्रशिक्षण देकर भारत के कोने कोने में योग का प्रचार प्रसार करने और गरीब भारतवासियों को स्वास्थ्यधन देने के लिये भेजा हुआ है । रामदेव के स्वदेशी से प्रेरित होकर आज लाखों भारतीय विदेशी उत्पादों का पूर्णतः बहिष्कार कर चुके हैं और देश की अरबों रूपये की विदेशी मुद्रा को बचाने के लिये सिर्फ स्वदेशी उत्पादों का ही प्रयोग करते हैं । गांधी जी के बाद अगर खादी के लिये किसी ने आंदोलन किया है तो वह स्व0 राजीव दीक्षित और रामदेव ही हैं जिनकी वजह से आज कई लाख लोग खादी द्वारा गृह उद्योग चला कर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं । क्या आपको पता है कि रामदेव की वजह से विदेशी दवा कम्पनियों को हर साल कितने अरब डालर का चूना लगता है और वह पैसा देश में ही रह कर देश के विकास मे काम आता है । आज लोखों लोग रामदेव की बदौलत स्वदेशी के द्वारा रोजगार सृजन कर रहे हैं और दूसरो को भी स्वदेशी, भारतीयता और देशप्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं । क्या स्वदेशी, भारत की प्राचीन योग परम्परा और देशप्रेम की बात करना भारत में अपराध है ? क्या राजनीति में प्रवेश सिर्फ माफियाओं, धनपशुओं, अपराधियों और नेताओं की बिगड़ी हुयी औलादों के लिये ही लिये आरक्षित है ? क्या संविधान से सिविल और डेमोक्रेटिक अधिकारों को मिटा दिया गया है जो हर भारतवासी को प्राप्त है ? क्या स्वामी रामदेव भारत के नागरिक नहीं हैं ? क्यों भारतवासी कक्षा दस पास और रहस्मयी इतिहास वाली विदेशी सोनियागांधी के चरणों की धूल को मस्तक पर लगाने के लिये इतने उत्सुक रहते हैं ? इस देश से क्यों राष्ट्रीयता का ह्रास होता जा रहा है ?
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स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना कसूर है कि उन्होंने 21 वीं सदी में राजा राम मोहन राय कि तरह, ईश्वरचंद विद्यासागर की तरह, दयानंद सरस्वती की तरह, स्वामी विवेकानंद की तरह न सिर्फ सनातनी भारत को विश्वगुरू बनाने का सपना देखा बल्कि उनकी तरह उस सपने को साकार करने के लिये पूरे मनोयोग से कर्म भी किया । क्या रामाराममोहन राय का कट्टर और पुरातनपंथी समाज ने सती प्रथा और बालिका विवाह प्रतिबंधित कराने के लिये विरोध नहीं किया था ? क्या ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा विधवा विवाह को प्रोत्साहन देने के कारण उस वक्त के समाज ने उनका विरोध नहीं किया था ? क्या महात्मा गांधी को एक अधनंगा फकीर कह कर अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ मात्र अहिंसा के सहारे विरोध करने पर इसी मदहोश भारतीय जनमानस ने उनका उपहास नहीं उड़ाया था ? अंग्रेज सरकार से तमाम सुविधा पाने वाले मध्यमवर्ग और नयी नयी तकनीकी का आनंद उठाने वाले सुविधाभोगी उच्चवर्ग ने सबसे पहले गांधी की हंसी उड़ायी थी । जब जब किसी युग नायक ने समाज और देश को बदलने का बीड़ा उठाया तब तब राजनीति के सड़ते तलाब के कीचड़ में बजबजाते और आनंद मनाते वर्ग ने उन सबका जबरदस्त विरोध किया है । इतिहास गवाह है इन सबकी कहानियों का । क्या आपके कान इतने बहरे हो गये हैं कि ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया और दूसरे देशों में उठते लोकतंत्र की पुकार को भी नहीं सुन सकते ? सिर्फ एक ही कारण है । या तो आपका भी उन सुविधाभोगी कीचड़ में आनंदमनाते कीड़ों की तरह पिलपिला रहे हैं और देश को लूटने वाले वर्ग में आते हैं, केन्द्र सरकार द्वारा फेंके गये टुकड़ों पर ऐश कर रहे हैं, उस तंत्र का एक हिस्सा हैं जिनके विदेशी बैंकों में खाते हैं, न विदेश में तो भारत के ही बड़े शहरों में करोड़ों की सम्पत्ती हैं, किलों में सोना बैंकों के लाकर में शोभा पा रहा है, मल्टीनेश्नल कंपनियों के हजारों शेयर्स हैं, बेनामी संपत्तियां हैं, फार्म हाउस हैं, काले धन के तमाम स्रोत हैं, जिनको छिपाने के लिये आधा दर्जन सीए कई कई दिन मगजमारी करते हैं । या फिर लोकतंत्र का सत्यानाश करने वाले आप अनपढ़ और जाहिल लोग हैं जिन्हें भारत की गरीबी नहीं दिखती, बेरोजगारी नहीं दिखती, भूख नहीं दिखती, आत्महत्या करते किसान नहीं दिखते, अपने नवजात बच्चों को कुछ किलो अनाज के लिये बेचती भूखी मां नहीं दिखती । नौकरी के आभाव में पढ़ा लिखा बेरोजगार शहर में रिक्शा खींचते नहीं दिखता । बेटी की शादी के लिये दहेज इकट्ठा करता और एक दिन बीमारी में उसी दहेज की रकम को खर्च करता मजबूर बाप नहीं दिखता । जंगलों से बेदखल होते आदिवासी और उनको हथियार पकड़ाकर नक्सली बनाते देशद्रोही कम्युनिस्ट नहीं दिखते । आदिवासियों और दलितों को धन का लालच देकार ईसाई बनाते वेटिकन के पादरी नहीं दिखते । आपको यूएनओ का मानव विकास सूचकांक नहीं दिखता जिसमें भारत नीचे से फस्ट आने की कोशिश में लगा हुआ है और भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देश भी हमसे आगे खड़े हैं ।
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क्या आपको पता है इन्हीं आर्थिक विशेषज्ञ प्रधानमंत्री के पिछली यूपीए सरकार में आर्थिक सलाहकार प्रो0 अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 की रिपोर्ट है - ”भारत में 80 करोड़ लोगों की 20 रूपये प्रतिदिन की भी आमदनी नहीं है ।“ आपको तो यह भी पता न होगा कि सरकार का गरीबी नापने का पैमाना क्या है । सन 1971-72 से कांग्रेस सरकार ने जब देखा कि भारत से गरीबी हटाने के लिये कांग्रेस नामक महाभ्रष्ट संस्था को पहले हटाना पड़ेगा तब उसने गरीबों को ही एक झटके से हटा दिया । उसने गरीबी की परिभाषा ही बदल दी । नयी परिभाषा में अमीरी गरीबी का पैमाना रूपये की जगह कैलोरी को बना दिया गया । अगर आप गांव में रहते हैं और दिन भर में 2400 कैलोरी भोजन करने लायक 18 रूपये भी कमा लेते हैं तब आप भारत सरकार के अनुसार अमीरों की पंक्ति मंे खड़े हैं । इसी प्रकार शहर में रहने वाले भारतीय अगर प्रति दिन 2900 कैलोरी भोजन करने लायक रूपये यानी की 20 रूपये प्रतिदिन भी कमा लेते हैं तब वो भी अमीरी को प्राप्त कर लेते हैं । इस तरह से आपकी प्रिय कांग्रेस सरकार ने आपको मूर्ख बनाने के एक नहीं सैंकड़ों काम किया है । आप खुश रहिये क्योंकि अब सारी परिभाषाएं भ्रष्ट कांग्रेस द्वारा बदल दी गयी हैं और उस परिभाषा में रचे बसे आप खुशदिल बने रहिये जैसे आजकल अमेरिका और यूरोपीय देश हमें उल्लू बना रहे हैं । वो धंधा करने आते हैं और भारत को उभरती हुयी महाशक्ति का पाठ पढ़ा कर अरबों डालर के धंधे समेट ले जाते हैं ।
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कौन सा लोकतंत्र और कैसा लोकतंत्र ? यह कैसा लोकतंत्र जहां अनपढ़ व्यक्ति पार्टी की विचारधारा जाने बिना मात्र किसी पार्टी के निशान को देख कर अपना मत नष्ट कर डालता है । यह लोकतंत्र नहीं भीड़तंत्र है और भीड़तंत्र से न भीड़ का भला होता है और न ही देश का । आजादी के 63 साल बाद भी हम उसी मदहोशी में जी रहे हैं जो आजादी के पहले थी । मात्र सत्ता का हस्तांतरण हुआ । गोरे अंग्रेज गये तो काले अंग्रेज आ गये । अगर आजादी मिली होती तो क्या देश की यह दुर्दशा होती । 1000 अरब डॉलर विदेशी बैंकों में लूट कर काले अंग्रेज ले गये, इतना धन तो गोरे अंग्रेजों ने भी नहीं लूटा था । गलती किसकी है ? सदियों से सोते रहने वाले हिंदुस्तानियों की या इस देश को भेष बदल कर लगातार लूटने वालों की । गतली हमारी है । हम अपने घर का दरवाजा तक बंद करके नहीं सोते हैं और पिछले 1000 साल से लुटते चले आ रहे हैं । यही हमारा इतिहास है । गजनवी से सोनिया गांधी तक । सोमनाथ मंदिर से कॉमनवेल्थ गेम्स, टू जी स्पेक्ट्रम तक । पामोलिन घोटले में पी. जे. थामस के खिलाफ आरोप पत्र तक दाखिल हो चुका था मगर उसे सी.वी.सी. के पद के लिये मात्र इसलिये चुना गया क्योंकि वह सोनिया गांधी का प्रिय था और ईसाई था । कामन्वेल्थ गैम्स को आई. ओ. सी. के हवाले सिर्फ इसलिये गया क्योंकि कलमाड़ी सोनिया गांधी का प्रिय था और इसमें लंबा हाथ मार कर उनको चढ़ावा पेश करता । याद रखिये भ्रष्टाचार की गंगोत्री ऊपर से शुरू होती है । ऊपर वाले को अगर अपने हिस्से से कोयी मतलब नहीं होगा तो वह नीचे वालों के कान हमेशा उमेठे रहेगा । हाल में हुये सभी घोटालों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ यही कहते रहे कि वे मजबूर थे । क्यों मजबूर थे ? क्योंकि सुपर प्रधानमंत्री का यही आदेश था ।
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स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना कुसूर है कि उन्होंने नेहरू, गांधी परिवार, जो कि देश में भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है, जिनकी वजह से तमाम दूसरे प्रकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों ने जन्म लिया, उस पर प्रहार किया है । बाबा को इसके लिये सजा तो मिलनी ही चाहिये । बाबा ने खुद आगे बढ़ कर बताया कि उनके दो ट्रस्ट हैं और करीब 2200 करोड़ का उनके दोनो ट्रस्ट का सालभर का टर्नओवर है और यह सरकारी कागजातों में भी दर्ज है । 2200 करोड़ रूपये एक बड़ी रकम होती है । लेकिन यह टर्नओवर है लाभ नहीं है । फिर यह बाबा की रकम नहीं है, ट्रस्ट की रकम है । यह रकम शिरडी साई बाबा के ट्रस्ट और तिरूपति बालाजी मंदिर के ट्रस्ट की रकम से कम है । यह रकम दशनामी सन्यासी मठों की सम्पत्ती के आगे भी कुछ नहीं है । अमृतसर के स्वर्णमंदिर के पास भी इससे बड़ा ट्रस्ट है । और यह रकम उस रकम के आगे कुछ भी नहीं है जो वेटिकन पूरे विश्व में ईयाइयत का प्रचार करने के लिये पानी की तरह बहाता है । यह रकम उस रकम के आगे भी कुछ नहीं है जो मिडिल ईस्ट के देश इस्लामिक आतंकवाद को पूरे विश्व में बढ़ावा देने के लिये अरबों प्रेट्रोडॉलर चंदे में फेंक देते हैं । और यह रकम हसन अली के 9 अरब डॉलर (450 अरब रूपये, 45000 करोड़ रूपये) के आगे भी कुछ नहीं हैं जो कि भारत के काले धन के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक है और जिसके ऊपर महाराष्ट कांग्रेस का हाथ है । 175000 करोड़ रूपये का खेल टू जी स्पेक्ट्रम में अभी डीएमके के साथ कांग्रेस ने खेला है, इस रकम के आगे बाबा के ट्रस्ट की सफेद रकम कुछ नहीं है । 75000 करोड़ की लूट जो अभी कामनवेल्थ में हुयी, जो कि विशुद्ध रूप से कांग्रेस का खेल था और कांग्रेस पार्टी की शुद्ध आय थी, बाबा के ट्रस्ट की रकम इसके आगे भी कुछ नहीं है । कांग्रेस की पूरे देश में फैली घोषित सम्पत्ती भी इस रकम से बहुत ज्यादा है । अघोषित का तो कोयी ठिकाना ही नहीं है । मुस्लिम आतंकवाद को पोषित करने वाले दिग्विजय सिंह क्या अपनी सम्पत्ति और आय के स्रोतों का हिसाब किताब देंगे ? जब उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था तब उनके पास कितनी दौलत थी और आज कितनी दौलत है ?
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बाबा के दो ट्रस्ट साल भर में 2200 करोड़ रूपये का टर्नओवर करते हैं जिसका एक एक पाई का हिसाब है और यह किसी घोटाले की लूट की रकम नहीं है । टर्नओवर और लाभ में बड़ा भारी अंतर होता है । क्या आपको पता है कि चांदनी चौक के एक अदना से मसालों के स्टाकिस्ट का टर्नओवर भी 200 से 500 करोड़ का होता है । इस टर्नओवर पर लाभ एक प्रतिशत भी हो सकता है और 20 प्रतिशत भी । 22 अरब का टर्नओवर भारत के बड़े व्यापारियों की तुलना में कुछ भी नहीं होता है, उद्योगपतियों को फिलहाल माफ कर दें । बाबा की एक एक पाई की कमाई व्हाईटमनी है । वे एक एक पैसा का हिसाब ब्लैक एण्ड व्हाईट में रखते हैं । बाबा ने तो अपना हिसाब साफ कर दिया लेकिन भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस क्या अपना हिसाब किताब देने की औकात रखती है । जो जो कांग्रसी नेता बाबा के खिलाफ आज जहर उगल रहे हैं क्या वह इतने पाक साफ हैं कि अपनी कमाई और सम्पत्ति के बारे और उसके स्रोतों के बारे में जनता को साफ साफ बता सकें । निश्चित ही नहीं बता पायेंगे ।
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बाबा के सामने एक लक्ष्य है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये धन की आवश्यकता है । दुनिया भर से लोग उनको अपने सामर्थ्य के अनुसार चंदा दे रहे हैं । बाबा पूरे विश्व में भारत की योग परंपरा का प्रचार प्रसार कर रहे हैं क्या यह सब बिना धन के हो सकता है । क्या कोयी भी आंदोलन बिना धन के सफल हो सकता है ? कांग्रेस को डर है कि अगर बाबा का आंदोलन सफल हो गया तो पहले उसकी विदेशों में जमा काली कमाई हाथ से जायेगी और उसकी सत्ता भी।
स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना ही कुसूर है कि वे योग छोड़ कर राजनीति के कीचड़ भरे तालाब में उतर कर उसे साफ करने के तमन्नाई हैं । राजनीति के घाघ और भ्रष्ट पंडितों को अच्छी तरह से याद रहता है की जब जब कोयी सन्यासी चाणक्य या गांधी बनकर राजनीति में धंसता है तब तब देश से भ्रष्ट राजसत्ता का समूल नाश होता है और भारत सदियों तक विश्वपटल पर एक महासूर्य की तरह चमकता रहता है । रामदेव पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनका योग अमीरों के लिये है, गरीबों के लिये वो कुछ नहीं करते हैं । क्या आपको पता है कि रामदेव ने एक लाख योगशिक्षकों को प्रशिक्षण देकर भारत के कोने कोने में योग का प्रचार प्रसार करने और गरीब भारतवासियों को स्वास्थ्यधन देने के लिये भेजा हुआ है । रामदेव के स्वदेशी से प्रेरित होकर आज लाखों भारतीय विदेशी उत्पादों का पूर्णतः बहिष्कार कर चुके हैं और देश की अरबों रूपये की विदेशी मुद्रा को बचाने के लिये सिर्फ स्वदेशी उत्पादों का ही प्रयोग करते हैं । गांधी जी के बाद अगर खादी के लिये किसी ने आंदोलन किया है तो वह स्व0 राजीव दीक्षित और रामदेव ही हैं जिनकी वजह से आज कई लाख लोग खादी द्वारा गृह उद्योग चला कर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं । क्या आपको पता है कि रामदेव की वजह से विदेशी दवा कम्पनियों को हर साल कितने अरब डालर का चूना लगता है और वह पैसा देश में ही रह कर देश के विकास मे काम आता है । आज लोखों लोग रामदेव की बदौलत स्वदेशी के द्वारा रोजगार सृजन कर रहे हैं और दूसरो को भी स्वदेशी, भारतीयता और देशप्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं । क्या स्वदेशी, भारत की प्राचीन योग परम्परा और देशप्रेम की बात करना भारत में अपराध है ? क्या राजनीति में प्रवेश सिर्फ माफियाओं, धनपशुओं, अपराधियों और नेताओं की बिगड़ी हुयी औलादों के लिये ही लिये आरक्षित है ? क्या संविधान से सिविल और डेमोक्रेटिक अधिकारों को मिटा दिया गया है जो हर भारतवासी को प्राप्त है ? क्या स्वामी रामदेव भारत के नागरिक नहीं हैं ? क्यों भारतवासी कक्षा दस पास और रहस्मयी इतिहास वाली विदेशी सोनियागांधी के चरणों की धूल को मस्तक पर लगाने के लिये इतने उत्सुक रहते हैं ? इस देश से क्यों राष्ट्रीयता का ह्रास होता जा रहा है ?
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स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना कसूर है कि उन्होंने 21 वीं सदी में राजा राम मोहन राय कि तरह, ईश्वरचंद विद्यासागर की तरह, दयानंद सरस्वती की तरह, स्वामी विवेकानंद की तरह न सिर्फ सनातनी भारत को विश्वगुरू बनाने का सपना देखा बल्कि उनकी तरह उस सपने को साकार करने के लिये पूरे मनोयोग से कर्म भी किया । क्या रामाराममोहन राय का कट्टर और पुरातनपंथी समाज ने सती प्रथा और बालिका विवाह प्रतिबंधित कराने के लिये विरोध नहीं किया था ? क्या ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा विधवा विवाह को प्रोत्साहन देने के कारण उस वक्त के समाज ने उनका विरोध नहीं किया था ? क्या महात्मा गांधी को एक अधनंगा फकीर कह कर अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ मात्र अहिंसा के सहारे विरोध करने पर इसी मदहोश भारतीय जनमानस ने उनका उपहास नहीं उड़ाया था ? अंग्रेज सरकार से तमाम सुविधा पाने वाले मध्यमवर्ग और नयी नयी तकनीकी का आनंद उठाने वाले सुविधाभोगी उच्चवर्ग ने सबसे पहले गांधी की हंसी उड़ायी थी । जब जब किसी युग नायक ने समाज और देश को बदलने का बीड़ा उठाया तब तब राजनीति के सड़ते तलाब के कीचड़ में बजबजाते और आनंद मनाते वर्ग ने उन सबका जबरदस्त विरोध किया है । इतिहास गवाह है इन सबकी कहानियों का । क्या आपके कान इतने बहरे हो गये हैं कि ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया और दूसरे देशों में उठते लोकतंत्र की पुकार को भी नहीं सुन सकते ? सिर्फ एक ही कारण है । या तो आपका भी उन सुविधाभोगी कीचड़ में आनंदमनाते कीड़ों की तरह पिलपिला रहे हैं और देश को लूटने वाले वर्ग में आते हैं, केन्द्र सरकार द्वारा फेंके गये टुकड़ों पर ऐश कर रहे हैं, उस तंत्र का एक हिस्सा हैं जिनके विदेशी बैंकों में खाते हैं, न विदेश में तो भारत के ही बड़े शहरों में करोड़ों की सम्पत्ती हैं, किलों में सोना बैंकों के लाकर में शोभा पा रहा है, मल्टीनेश्नल कंपनियों के हजारों शेयर्स हैं, बेनामी संपत्तियां हैं, फार्म हाउस हैं, काले धन के तमाम स्रोत हैं, जिनको छिपाने के लिये आधा दर्जन सीए कई कई दिन मगजमारी करते हैं । या फिर लोकतंत्र का सत्यानाश करने वाले आप अनपढ़ और जाहिल लोग हैं जिन्हें भारत की गरीबी नहीं दिखती, बेरोजगारी नहीं दिखती, भूख नहीं दिखती, आत्महत्या करते किसान नहीं दिखते, अपने नवजात बच्चों को कुछ किलो अनाज के लिये बेचती भूखी मां नहीं दिखती । नौकरी के आभाव में पढ़ा लिखा बेरोजगार शहर में रिक्शा खींचते नहीं दिखता । बेटी की शादी के लिये दहेज इकट्ठा करता और एक दिन बीमारी में उसी दहेज की रकम को खर्च करता मजबूर बाप नहीं दिखता । जंगलों से बेदखल होते आदिवासी और उनको हथियार पकड़ाकर नक्सली बनाते देशद्रोही कम्युनिस्ट नहीं दिखते । आदिवासियों और दलितों को धन का लालच देकार ईसाई बनाते वेटिकन के पादरी नहीं दिखते । आपको यूएनओ का मानव विकास सूचकांक नहीं दिखता जिसमें भारत नीचे से फस्ट आने की कोशिश में लगा हुआ है और भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देश भी हमसे आगे खड़े हैं ।
क्या आपको पता है इन्हीं आर्थिक विशेषज्ञ प्रधानमंत्री के पिछली यूपीए सरकार में आर्थिक सलाहकार प्रो0 अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 की रिपोर्ट है - ”भारत में 80 करोड़ लोगों की 20 रूपये प्रतिदिन की भी आमदनी नहीं है ।“ आपको तो यह भी पता न होगा कि सरकार का गरीबी नापने का पैमाना क्या है । सन 1971-72 से कांग्रेस सरकार ने जब देखा कि भारत से गरीबी हटाने के लिये कांग्रेस नामक महाभ्रष्ट संस्था को पहले हटाना पड़ेगा तब उसने गरीबों को ही एक झटके से हटा दिया । उसने गरीबी की परिभाषा ही बदल दी । नयी परिभाषा में अमीरी गरीबी का पैमाना रूपये की जगह कैलोरी को बना दिया गया । अगर आप गांव में रहते हैं और दिन भर में 2400 कैलोरी भोजन करने लायक 18 रूपये भी कमा लेते हैं तब आप भारत सरकार के अनुसार अमीरों की पंक्ति मंे खड़े हैं । इसी प्रकार शहर में रहने वाले भारतीय अगर प्रति दिन 2900 कैलोरी भोजन करने लायक रूपये यानी की 20 रूपये प्रतिदिन भी कमा लेते हैं तब वो भी अमीरी को प्राप्त कर लेते हैं । इस तरह से आपकी प्रिय कांग्रेस सरकार ने आपको मूर्ख बनाने के एक नहीं सैंकड़ों काम किया है । आप खुश रहिये क्योंकि अब सारी परिभाषाएं भ्रष्ट कांग्रेस द्वारा बदल दी गयी हैं और उस परिभाषा में रचे बसे आप खुशदिल बने रहिये जैसे आजकल अमेरिका और यूरोपीय देश हमें उल्लू बना रहे हैं । वो धंधा करने आते हैं और भारत को उभरती हुयी महाशक्ति का पाठ पढ़ा कर अरबों डालर के धंधे समेट ले जाते हैं ।
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कौन सा लोकतंत्र और कैसा लोकतंत्र ? यह कैसा लोकतंत्र जहां अनपढ़ व्यक्ति पार्टी की विचारधारा जाने बिना मात्र किसी पार्टी के निशान को देख कर अपना मत नष्ट कर डालता है । यह लोकतंत्र नहीं भीड़तंत्र है और भीड़तंत्र से न भीड़ का भला होता है और न ही देश का । आजादी के 63 साल बाद भी हम उसी मदहोशी में जी रहे हैं जो आजादी के पहले थी । मात्र सत्ता का हस्तांतरण हुआ । गोरे अंग्रेज गये तो काले अंग्रेज आ गये । अगर आजादी मिली होती तो क्या देश की यह दुर्दशा होती । 1000 अरब डॉलर विदेशी बैंकों में लूट कर काले अंग्रेज ले गये, इतना धन तो गोरे अंग्रेजों ने भी नहीं लूटा था । गलती किसकी है ? सदियों से सोते रहने वाले हिंदुस्तानियों की या इस देश को भेष बदल कर लगातार लूटने वालों की । गतली हमारी है । हम अपने घर का दरवाजा तक बंद करके नहीं सोते हैं और पिछले 1000 साल से लुटते चले आ रहे हैं । यही हमारा इतिहास है । गजनवी से सोनिया गांधी तक । सोमनाथ मंदिर से कॉमनवेल्थ गेम्स, टू जी स्पेक्ट्रम तक । पामोलिन घोटले में पी. जे. थामस के खिलाफ आरोप पत्र तक दाखिल हो चुका था मगर उसे सी.वी.सी. के पद के लिये मात्र इसलिये चुना गया क्योंकि वह सोनिया गांधी का प्रिय था और ईसाई था । कामन्वेल्थ गैम्स को आई. ओ. सी. के हवाले सिर्फ इसलिये गया क्योंकि कलमाड़ी सोनिया गांधी का प्रिय था और इसमें लंबा हाथ मार कर उनको चढ़ावा पेश करता । याद रखिये भ्रष्टाचार की गंगोत्री ऊपर से शुरू होती है । ऊपर वाले को अगर अपने हिस्से से कोयी मतलब नहीं होगा तो वह नीचे वालों के कान हमेशा उमेठे रहेगा । हाल में हुये सभी घोटालों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ यही कहते रहे कि वे मजबूर थे । क्यों मजबूर थे ? क्योंकि सुपर प्रधानमंत्री का यही आदेश था ।
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स्वामी रामदेव का सिर्फ इतना कुसूर है कि उन्होंने नेहरू, गांधी परिवार, जो कि देश में भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है, जिनकी वजह से तमाम दूसरे प्रकार के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों ने जन्म लिया, उस पर प्रहार किया है । बाबा को इसके लिये सजा तो मिलनी ही चाहिये । बाबा ने खुद आगे बढ़ कर बताया कि उनके दो ट्रस्ट हैं और करीब 2200 करोड़ का उनके दोनो ट्रस्ट का सालभर का टर्नओवर है और यह सरकारी कागजातों में भी दर्ज है । 2200 करोड़ रूपये एक बड़ी रकम होती है । लेकिन यह टर्नओवर है लाभ नहीं है । फिर यह बाबा की रकम नहीं है, ट्रस्ट की रकम है । यह रकम शिरडी साई बाबा के ट्रस्ट और तिरूपति बालाजी मंदिर के ट्रस्ट की रकम से कम है । यह रकम दशनामी सन्यासी मठों की सम्पत्ती के आगे भी कुछ नहीं है । अमृतसर के स्वर्णमंदिर के पास भी इससे बड़ा ट्रस्ट है । और यह रकम उस रकम के आगे कुछ भी नहीं है जो वेटिकन पूरे विश्व में ईयाइयत का प्रचार करने के लिये पानी की तरह बहाता है । यह रकम उस रकम के आगे भी कुछ नहीं है जो मिडिल ईस्ट के देश इस्लामिक आतंकवाद को पूरे विश्व में बढ़ावा देने के लिये अरबों प्रेट्रोडॉलर चंदे में फेंक देते हैं । और यह रकम हसन अली के 9 अरब डॉलर (450 अरब रूपये, 45000 करोड़ रूपये) के आगे भी कुछ नहीं हैं जो कि भारत के काले धन के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक है और जिसके ऊपर महाराष्ट कांग्रेस का हाथ है । 175000 करोड़ रूपये का खेल टू जी स्पेक्ट्रम में अभी डीएमके के साथ कांग्रेस ने खेला है, इस रकम के आगे बाबा के ट्रस्ट की सफेद रकम कुछ नहीं है । 75000 करोड़ की लूट जो अभी कामनवेल्थ में हुयी, जो कि विशुद्ध रूप से कांग्रेस का खेल था और कांग्रेस पार्टी की शुद्ध आय थी, बाबा के ट्रस्ट की रकम इसके आगे भी कुछ नहीं है । कांग्रेस की पूरे देश में फैली घोषित सम्पत्ती भी इस रकम से बहुत ज्यादा है । अघोषित का तो कोयी ठिकाना ही नहीं है । मुस्लिम आतंकवाद को पोषित करने वाले दिग्विजय सिंह क्या अपनी सम्पत्ति और आय के स्रोतों का हिसाब किताब देंगे ? जब उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था तब उनके पास कितनी दौलत थी और आज कितनी दौलत है ?
बाबा के दो ट्रस्ट साल भर में 2200 करोड़ रूपये का टर्नओवर करते हैं जिसका एक एक पाई का हिसाब है और यह किसी घोटाले की लूट की रकम नहीं है । टर्नओवर और लाभ में बड़ा भारी अंतर होता है । क्या आपको पता है कि चांदनी चौक के एक अदना से मसालों के स्टाकिस्ट का टर्नओवर भी 200 से 500 करोड़ का होता है । इस टर्नओवर पर लाभ एक प्रतिशत भी हो सकता है और 20 प्रतिशत भी । 22 अरब का टर्नओवर भारत के बड़े व्यापारियों की तुलना में कुछ भी नहीं होता है, उद्योगपतियों को फिलहाल माफ कर दें । बाबा की एक एक पाई की कमाई व्हाईटमनी है । वे एक एक पैसा का हिसाब ब्लैक एण्ड व्हाईट में रखते हैं । बाबा ने तो अपना हिसाब साफ कर दिया लेकिन भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस क्या अपना हिसाब किताब देने की औकात रखती है । जो जो कांग्रसी नेता बाबा के खिलाफ आज जहर उगल रहे हैं क्या वह इतने पाक साफ हैं कि अपनी कमाई और सम्पत्ति के बारे और उसके स्रोतों के बारे में जनता को साफ साफ बता सकें । निश्चित ही नहीं बता पायेंगे ।
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बाबा के सामने एक लक्ष्य है और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये धन की आवश्यकता है । दुनिया भर से लोग उनको अपने सामर्थ्य के अनुसार चंदा दे रहे हैं । बाबा पूरे विश्व में भारत की योग परंपरा का प्रचार प्रसार कर रहे हैं क्या यह सब बिना धन के हो सकता है । क्या कोयी भी आंदोलन बिना धन के सफल हो सकता है ? कांग्रेस को डर है कि अगर बाबा का आंदोलन सफल हो गया तो पहले उसकी विदेशों में जमा काली कमाई हाथ से जायेगी और उसकी सत्ता भी।
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