1.2.11

PM दो थे कुर्शी एक , इरादे न थे उनके नेक

कल यानि 30/01/2011 को मैंने महात्मा गाँधी की पुन्य तिथि के सन्दर्भ में कोई पोस्ट नहीं किया था. कुछ मित्रों के पोस्ट पर ही उन्हें नमन कर लिया था. कई मित्रों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी तो कई मित्रों को उन्हें राष्ट्र पिता कहे जाने पर भी आपत्ति थी. कई लोगों ने देश के बटवारे के लिए उन्हें जिम्मेवार भी ठहराया था. उन्होंने जो संघर्ष कि...या था, जो त्याग किया था, उसे याद न कर उनकी भूल और कमी को ही याद किया जाना उंचित नहीं है. मैं भी मानता हूँ की देश के बटवारे को न रोक पाना, या अपने तन के टुकड़े पर ही विभाजन की अपनी ही बात पर अडिग न रह पाना, उनके जीवन की सबसे बड़ी असफलता और भूल थी, हलाकि इसके लिए पद लोभी लोग ज्यादा जिम्मेवार थे. हमें चाहिए की देश और दिलों को जोड़ने का प्रयास फिर से शुरू करें.
राष्ट्रपिता बापू महात्मा गाँधी की भूल की आलोचना करने का अधिकार उसी को है, जिसने उनकी भूल को सुधारने के लिए एक कदम भी बढाया हो. या बढ़ा रहा हो.
बापू को नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि.
 PM दो थे कुर्शी एक ,
इरादे न थे उनके नेक ,
देश प्रेम दिखावा था ,
भीतर उनके लावा था ,
...
वतन का तन काट डाला .
दो कुर्सी बना डाला ,
जमीर न उनकी सरमाई थी ,
उन्होंने नफरत फैलाई थी .

दंगे फ़साद करा डाला ,
भारत – पाक बना डाला ,
कई उनके कारनामे काले ,
भाषाई शूबे बना डाले .

उसपर भी दिल भरा नहीं तो ,
बना डाला कई जात - पात लो .
फूट डालो और राज करो का ,
निति बना रहा है उनका .

मजहब नहीं सिखाता ,
आपस में बैर करना .
नेता हमें सिखाते ,
कभी न संग रहना .

अपराधी भी संसद जाते ,
रोक लगी तो बीबी लाते .
देश सेवा का कैसा मंत्र ?
कैसा है ये लोकतंत्र ?

मैं ये नहीं कहता की ,
उनमे कोई बुराई है ,
वजह शिर्फ़ एक ही है ,
सियासत में मलाई है .

सियासत को जितनी जल्दी हो ,
घाटे का सौदा बना डालो ,
देश के हर कोने से फिर ,
अमन का फूल खिला डालो .

फिर न तो कोई राज्य बनेगा ,
न ही कोई अलगाववादी होगा .
होगा तो फिर पुरे वतन में ,
सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रवादी होगा .
Ghulam Kundanam Dwara facebook pe ki gai postse saabhar

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