दुख तो मेरा बढ़ता जा रहा है
सवालों और जवाबों को साथ लिए
कहीं दुआऐं के पुल है तो कहीं बदुआओं का सागर
समय की गुलाम होती जा रही हूं मैं
परिस्थितियों को थाम नहीं पा रही हूं मैं
हर रात तन्हा गुजरती है
हर सुबह होती है रोनी सी
हम तन्हा दुनिया से लड़ेंगे
बच्चों सी बातें लगती है
कहीं सब सिमटता नज़र आता है
खुशियां फैलती है तो कहीं
बिलखता चहरा.....
हर वक्त यही परेशानी है
कभी ये सोचा ना था कि
प्यार जो परम सुख देता है
कभी वो ही दुखों की दरियां बिछाता है।
हर वक्त एक अजीब सा दर्द है
इस तन्हा दिल में जो शायद किसी के लिए भी
नहीं है,
बस मेरी तन्हाईं के लिए
इस समाज में मैं शायद सबसे
ज्यादा अपनी तन्हाईं को खोता
मेहसूस कर रही हूं....
शशीकला सिंह।
man ke dukh kee khoobsurat abhivyakti.
ReplyDeleteसमय की गुलाम होती जा रही हूं मैं
ReplyDeleteपरिस्थितियों को थाम नहीं पा रही हूं मैं
मन का अंतर्द्वंद बयां करती पंक्तियाँ..... बहुत सुंदर
bahut-bahut "Dhanyawaad"
ReplyDeleteप्यार जो परम सुख देता है
ReplyDeleteकभी वो ही दुखों की दरियां बिछाता है।
दुखो की सशक्त अभिव्यक्ति.......
dil ki gahraiyo se abhivyak rachana
ReplyDeletekafi sundar aur dil ko chu lene wali rachna
ReplyDeletethanx
achchhee abhivyakti !
ReplyDeletebahut acha lika gaya hai
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