28.3.11

समर्पण मैं का



चलो ढूंढते हैं
उस एक पल को
जहाँ से शुरू हुआ था विलय
हमारे मैं का
ना तो ये किसी व्यवसाय का विलयन हें
न किन्ही दो राष्ट्र का
हवा ने खुशबु को समेटा
या सुगंध समा गई सुरभि में
समर्पण मैं का था 
जाने किस छोटे से पल की करामात हें ।
रब के सामने मैं खड़ा था
और खुशिया तुम्हारे लिए मांग रहा था।

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