बीसीसीआई के सौतेलेपन के बावजूद भी खुद को साबित करने में सफल हो जाते हैं युवराज
आल राउंडर युवराज सिंह इंडियन क्रिकेट के महराज हैं। कई ऐसे मैच इसकी पुश्टी को काफी हैं, जो लगभग भारत के हाथो से निकल चुके थे, मगर युवराज की बेहतरीन परियो ने भारत को सफलता दिलाई। मगर युवराज केवल इसलिए महराज नहीं हैं की वह बेहतर खेलते हैं बल्कि इसलिए की बीसीसीआई के सौतेलेपन को भी उन्होंने जमकर आइना दिखाया।
वीरेंद्र
सहवाग, युसूफ पठान, गौतम गंभीर यह ऐसे नाम हैं जो आधा-आधा दर्जन मैच खेलने के बाद कही एक अच्छी पारी खेल पाते हैं, बावजूद इसके उन्हें टीम में स्थायी जगह दी जाती है, मगर इन सबसे मजबूत और टिकाऊ खिलाडी होने के बाद भी युवराज को अक्सर बाहर रखना बीसीसीआई की उपेक्षित नीतियों को उजागर करने को काफी है।
२० मार्च का मुकाबला। एक छोर से टीम इंडिया ढही जा रही थी, क्रिकेट के भगवान २ रन बनाकर बैकुंठ लौट गए, गंभीर बेवकूफी भरा साट खेल पवेलियन लौट गये। तूफानी खिलाडी युसूफ पठान पुरे वर्ल्ड कप में आंधी भी नही मचा सके। क्या कहे खुद कॅप्टन का भी खेल निराशाजनक रहा। वही पूरे वर्ल्ड कप में तीन बार मैंन ऑफ़ द मैच रहे युवराज लगभग हर हार को टालते चले गए। उनकी यह मेंहनत कोई नयी बात नहीं है, मगर इसके बाद भी बीसीसीआई का सौतेलापन जारी रहेगा इससे कतई इनकार नही किया जा सकता।
इंडियन क्रिकेट टीम का समर्थक होने के नाते मैं युवराज की उपेक्षा किये जाने से हमेसा दुखी रहा। मगर खुद बीसीसीआई को क्रिकेट फैन्स से कोई ताल्लुक नहीं। अच्छे खिलाडियों की उपेक्षा तो शायद बीसीसीआई की फितरत बन चुकी है। जिसकी नयी बानगी धीरे-धीरे अब सुरेश रैना भी बनते जा रहे हैं।
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