लेखक - अश्विनी कुमार
बुरा न मानो होली है ,
यह हुलियारों की टोली है ,,
फटफटियों का कारवाँ शोर मचाते हुए गुजर गया ,बेचारे रामू काका अपने सीने पर हाथ रख कर अन्दर भागे कि कहीं तीसरा अटैक न आ जाए ,,और यहीं पर राम नाम सत्य हो जाए ,,उन्होंने भड़ाक से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया,,
चढ़ा के दो दो पैग,
खुद को समझे कृष्ण कन्हईया,
घुमे फटफटिया पर चढ़कर ,
यह हुलियारें हैं भईया,,
एक बेचारे मोहन प्यारे की फटफटिया हो गई फुस्स ,
उनने समझा किस्मत चमकी हुए बहुत ही खुश ,,
बाकी मोहन छाप मज्नुवों की टोली जोगी रा सा रा रा रा रा रा रा गाते हुए आगे निकल गई ,,इन मोहन छाप मज्नुवों को सडक पर जाती हुई एक नारी दिखी————————–—-
उसके हाथ में डंडे वाला झाडू था ,
पर उनने समझा कि गोपी मिल गई ,,
——————————————- फिर क्या था शुरू हो गये ,,
चोली भीगे सारी भीगे ,
भीगे तन मन सारा ,
पड़ा तडाका झाडू जब ,
निकल पड़ा नीचे फौवारा ,,
————–वह महापालिका की झाडू वाली थी,, सुबह सबेरे भूल से या शायद अपनी आत्म रक्छा के लिए हाथ में डंडे वाला झाडू लेकर कहीं जा रही थी ,उसका यह ब्रम्हास्त्र बहुत काम आया ,अन्यथा उसका न जाने क्या क्या हरण हो जाता ,, इन बेचारों की किस्मत शायदकुछ अधिक ही फूटी थी ,,
एक तो नशे का खुमार ,
ऊपर से डंडे की मार ,,
पाँव नही पड़ रहे जमीं पर ,
हुए बहुत लाचार,,
कुछ खजियल कुत्ते जमा हो गये, देख के इनकी हालत ,
फटा पजामा चड्डी दिखती,उस पर हुई हजामत ,
एक कुत्ते ने खींची चड्डी,दूजा चढ़ गुर्राया ,
चारों खाने चित्त हुए वह ,मजा बहुत ही आया ,,
तो भाई जो काफिला आगे निकल गया था ,अगले चौराहा पर जाकर अंटक गया क्योंकि सामने से एक और भी होलीयारे मजनुओं का झुण्ड उनसे उलझ गया ,,
हाथ में अध्धा ,सांस में भभका ,
बातों में अंगारे थे,
उलझ गये दोनों आपस में ,
दोनों ही लठियारे थे,,
इन होलियारों को देख लठ्ठमार होली की याद आने लगी ,सचमुच दृश्य दर्शनीय था ,हाकियां दे दनादन कौन किसको मार रहा है समझ ही नही आ रहा था उन्हें देख कर यूँ लग रहा था कि जैसे,,
अस्त्र सस्त्र से हुए सुसज्जित ,
योद्धा रण हुंकार रहे,
कहीं कपाल हुआ खंडित ,
और कहीं रक्त की धार बहे,,
मुझे इन्हे देखकर यूँ लगा कि जैसे पिछ्ला चीन युद्ध कभी अगर दुबारा हुआ तो उसे जीतने की जोर आजमाईस कर रहे हैं,,जय हो देश के वीर सपूत
उधर शहर के दूसरी तरफ इन्ही जैसे मोहन छाप मजनुवों ने कोहराम मचा रक्खा था ,,
दुकानों के शटर भी अब टूट रहे थे,
माखन समझ के मजनूं उन्हें लूट रहे थे ,,
दीवाने हो गये थे भंग की तरंग में ,
शर्मो हया को भूल गये होली के रंग में,
तभी पुलिस का सायरन सुनाई पड़ा ,यह सायरन भी बड़ी कमबख्त शय है ,,
यह सायरन भी भाई कमबख्त चीज है,
बजती है किसकी खातिर यह भी अजीब है ,
ए चोर भाग जा तू बिलकुल न अब ठहर ,
सरकारी अमलदारी आती है अब इधर ,,
कुछ इसी तर्ज पर वह मोहन छाप मजनू सर पर पैर रख कर भाग खड़े हुए ,,फिर पुलिसिया फूं फाँ खानापूर्ति …………
इसी लिए तो कहता हूँ भईया बीमा करवा लो ,
किस्तें ना चुकता कर पाओ तो खुद को गिरवी रख डालो ,,
कम से कम रिजक तो बनी रहेगी दाल रोटी चलती रहेगी लुगाई तुम्हारी कुछ तो कद्र करेगी ,,वरना काम के न काज के नौ मन अनाज के बन कर रह जाओगे ,अब यह न कहना भाई कि जब खुद को गिरवी रख दूंगा तो कर्ज कैसे अदा करूंगा ,हिसाब खुद ही लगा लो ,,….
शहर के एक हिस्से में जहां आबादी कुछ अधिक ही घनी थी ,,कुछ मोहन छाप मजनू वहां भी पहुंच गये ,,नशे में इतने टुन्न थे कि ,…..
ना माँ का ख्याल आया ,
ना बहन याद आयी ,
सब नारियां तो उनको ,
गोपी ही नजर आयीं ,,
लेकिन वहां महिलावों की संख्या अधिक थी और मजनू बहुत कम थे ,तो जब यह मोहन छाप मजनू महिलाओं को गोपियाँ समझ कर …….
करने लगे बरजोरी ,
ढ़ेरों जोरा जोरी ,
हाथों में इनके आयी ,
महिला की किसी साड़ी,
वह जोर से यूँ चीखी ,
रण भेरी ज्यों हो गूंजी,,
फिर क्या था महिलाएं टूट पडीं कुछ ऐसा धुनने लगीं कि ,…..
तबला बाजे धीन धीन ,
जब एक एक पर तीन तीन ,,
सेंडिलों और चप्पलों का इतना मधुर स्वर निकल रहा था कि वाह वाह ,,और मजनुओं के सर से इतनी खुबसूरत सुमधुर आवाजें निकल रही थी कि हेमामालिनी भी कत्थक करने पर विवश हो जाएँ ,,खट खटा खट खट
एक वीरांगना स़ी नारी ,
निकली जो कस कर साड़ी ,
हाथों में थी कडाही ,
कपड़े से उसको पकड़ा ,
तेल भी गर्म था ,
ढ़ेरों धुवां था छोड़ता,
मजनुवों पर फ़ेंक कर,
यूँ जोर से दहाड़ी ,
ये कलमुहों कमीनों,
आवो जरा इधर तो ,
पापड़ तला था इसमे ,
आवो तलूं मै तुमको ,,
उसकी दहाड़ सुनने से पहले ही मजनूं जाने कहां अंतर्ध्यान हो चुके थे ,,शाम का धुंधलका फूटने लगा था और होली का पर्व शान्तिमय ढ़ंग से बीत गया था ,,|
अरे भाई लेख लिखते वक़्त थोडा सतर्क रहा करिए, कही कोई पढ़ा लिखा उल्लू इसे न पढ़ ले नही तो खुद को जागरूक साबित करने के लिए कोई भद्दा कमेंट्स कर देगा।
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