21.3.11

holi ki seoni ki dairy

सभी ने किसी ना किसी बहाने मुसाफिर के साथ होली खेलने से मना कर दिया यह भी नहीं पूछा कि पिचकारी में क्या भरा ह

कलम के बजाय पिचकारी थामी मुसाफिर ने-हाथ में कलम पकड़ कर साल भर सियासी सफरनामें की जानकारी देने वाले मुसाफिर ने इस हफ्ते हाथ में कलम के बजाय पिचकारी पकड़ कर अधिकारियो नेताओ और पत्रकारों के साथ होली खेलने का मन बना डाला हैं। होली की पिचकारी लेकर सबसे पहले पहुंच गया कांग्रेस की वरिष्ठ नेता विमला वर्मा के यहां। उन्होंने हुरियारे से रंग डालने को मना किया और कहा कि मैंने तो जिले के लोगों के साथ बहुत होली खेली और बहुत कुछ सौगातें भी दी लेकिन अब मन भर गया हैं क्योंकि आज के नेता कुछ लाना तो दूर जो था उसे भी सहेज की नहीं रख पाये। होली खेलने की तमन्ना लिये मुसाफिर जब सांसद बसोरी सिंह के यहां पहुंचा और बड़ी रेल लाइन में हुयी उपेक्षा पर बात की तो उन्होंने कहा कि मैं क्यों यह सब करूं। इसजिले के कांग्रेसी जिस हरवंश सिंह के कहने पर सब कुछ करते हैं उसके केवलारी क्षेत्र से तो मैं हार गया था। अब क्या आलोक वाजपेयी,चित्रलेखा नेताम, आनन्द तिवारी या राजेश्वरी उइके के कहने से यह सब कर डालूं। हां यदि महामहिम उर्मिला सिंह ही कुछ कहें तो जरूर सोच सकता हूं। जब दूसरे सांसद से होली खेलने के.डी. भाऊ के यहां पहुचां तो वे बालाघाट जिले के छ: विधानसभा वालों के रंग में मस्त थे जब मुसाफिर ने कहा कि मैं सिवनी जिले से होली खोलने आया हूंं तो भाऊ चिढ़ कर बोले बो कि छ: वालों से फुरसत मिलेगी तब तुम दो वालों को देखूंंगा।

होली खेलने को ना मिलने से हताश हुरियारा कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह के यहां जब पिचकारी लेकर पहुंचा तो उन्होंने कहा कि भैया मैं तो सबका मन रखता हूंं तो भला तुम्हें कैसे मना कर सकता हूंं। तुम जरूर मुझ पर रंग डालों पर यह भी तो देख लो कि लोंगों ने इतनी कालिख पोत दी हैं कि इस पर भला तुम्हारा कोई रंग चढ़ेगा भी या नहीं।

इस पर भी मुसाफिर ने हिम्मत नहीं हारी और वो पहुच गया विधायक नीता पटेरिया के यहां। नीता जी ने तुरन्त कहा कि भैया लाल रंग लाये हो या नहीं। मैं जनपद सदस्य,जिला पंचायत सदस्य,सांसद रह चुकीं हूंं और अब विधायक हंूं। बस अब तो मन्त्री बनकर लाल बत्ती की तमन्ना बाकी हैं इसलिये यदि लाल रंग लाये हो तो होली खेल लो। हुरियारे ने जी भी कर होली खेली और आगे बढ़ गया विधायक कमल मर्सकोले के यहां। देखा कि भैया तो अपने ही रंग में रंगे हुये हैं। उन्होंनेे तपाक से कहा कि भैया मैं तो अल्ला मियां की गया हूंं जो देखो वही मुझ पर रंग डाल देता हैं अब तुम भी डाल दो। उनकी सादगी देखकर मुसाफिर भी मस्त हो गया और भंग की एक बरफी मुंह में दबा कर आगे बढ़ गया। इसके बाद वो पहुंच गया सीधे लखनादौन की विधायक शशि ठाकुर के यहां। उसने देखा कि यहां का तो जलवा ही कुछ और हैं ।विधायक जी के यहां खुद ही होली मिलन का कार्यक्रम का चल रहा था। मुसाफिर ने जग उनसे यह कहा कि क्या आप पर भी लाल रंग ही डालूं तो उन्होंने कहा कि क्योंर्षोर्षो जब यह बताया कि नीता जी ने लालबत्ती के लिये लाल रंग ही पसन्द किया था तो वो बोलीं कि हम तो सीधे सादे आदिवासी हैं रंगों का फर्क नहीं जानते।कोई भी रंग हो क्या फर्क पड़ता हैं।

पिचकारी लेकर जब कलेक्टर के बंगले की ओर बढ़ा तो देख कि जिले का पूरा सरकारी अमला भंग की तरंग में मस्त था। जब कलेक्टर मनोहर दुबे की तरफ पिचकारी तानी तो वे कहने लगे कि भाई ठहर जा अभी तो हमें पाला तुषार से निपटने दें अपन पंचमी को होली खेल लेंगें। मुसाफिर ने सोचा कि लगे हाथ नये आये कप्तान से होली खेल ली जाये। जैसे ही एस.पी. आर.के.जैन के पास पहुचा तो वे बोले यार अभी तो पुराना बगरोना निपटाने से ही फुरसत नहीं मिल पा रही हैं। होली क्या खेलेंर्षोर्षो लौटते में जिला पंचायत के सी.ओ. राकेश सिंह मिल गये। जब उनसे होली खेलने आगे बढ़ा तो वे बोले खूब खेल लो होली मैंने तो कइयों के रंगों को वैसे ही बदरंग कर दिया हैं तुम्हारा रंग भी मुझ पर चढ़ने वाला नही हैं।

खुशी खुशी हुरियारा भाजपा कार्यालय में होली खेलने पहुंचा तो देखा कि सुजीत जैन के साथ नरेश दिवाकर,वेदसिंह ठाकुर,प्रमोद जैन, सन्तोष अग्रवाल,नरेन्द्र टांक,राकेश पाल,अशोक टेकाम, प्रदीप पटेल, प्रहलाद सनोड़िया, मूर्ति,श्रीकान्त अग्रवाल सभी रंग खेलने में मस्त थे कि इतने में पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी अपने साथ गणों रवीन्द्र अग्रवाल,रूपा सेठ,सन्तोष चौरसिया और मनोज नाना कोे लेकर पहुंच गये। जब सबने राजेश पर रंग डालने का कोशिश की तो उन्होंने कहा कि रहने दो यह दिखावा मैं सब जानता हूंं कि मेरे चुनाव में किसने क्या किया हैं। अब अरविन्द जी मैनन प्रदेश के प्रभारी हो गये हैं तो यह प्रेम जता रहे हो। कार्यालयसे ही कुछ दूरी पर पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन अपनी पिचकारी ताने खड़े थे और यह देख रहे थे कि कब यह यह सब नाटक खत्म हो और कब वे अपनी पिचकारी से सब को रंगों से तर बतर कर डाले।

भाजपा के यह रंग ढ़ंग देख कर मुसाफिर जिला इंका अध्यक्ष महेश मालू को अपने रंग में रंगने जब पहुंचा तो वे तिलमिलाकर बोले कि भाई अपना तो कार्यकाल खत्म हो गया हैं अब दूसरी जगह देखो। जब वो हीरा आसवानी के पास पहुंचा तो वहां ओ.पी.तिवारी और जे.पी.एस.तिवारी भी बैठे थे। उन्होंने यह कह कर रंग डालने से मना कर दिया कि अपनाा तो अभी कार्यकाल शुरू ही नहीं हुआ हैं। वापसी में कुछ कांग्रेसियों का दल होली खेलते दिखा जिसमें मो. समी अंसारी,दिलीप बघेल, इमरान पटेल,राजाा बघेल,सन्तोष पञ्जवानी,मो. पाशा होली के रंगों में रंगे हुये थे जब मुसाफिर ने उनसे होली खेलने की बात की तो कहा कि ठहरो पहले यह बताओ कि ठाकुर साहब के साथ होली खेल कर आये हो या नहीं क्यों कि अभी बहुत कुछ उनके रंग में रंगना बाकी हैं नहीं तो अगली होली तुम्हारे साथ पक्की हैं।

होली के तरह तरह के रंगों को ेदेखता हुआ जब हुरियारा आगे बढ़ा तो देखा कि एक जगह आशुतोष वर्मा, राजकुमार पप्पू खुराना,प्रसन्न मालू,सञ्जय भरद्वाज,जकी अनवर,डी.वी.नायर,लल्लू बघेल, देवीसिह चौहान,पिट्टू बघेल,रामगोपाल बब्बा सोनी,राजेन्द्र मिश्रा,अनन्त यादव, सुनील बघेल,सुबोध मालू, सञ्जय बघेल, मजहर अली, प्रदीप राय,योगेन्द्र सोनी सभी गम गलत कर रहे थे। जैसे ही मुसाफिर ने उनसे हरा रंग डालने की इजाजत मांगी तो सभी उस पर चिल्ला पड़े कि अब तू भी हरा रंग लेकर ही यहां आया हैं। सारा लाल रंग बर्रा में उड़ेल आया होगा। अबे हम भी यह जानते हें कि हरा हरावे लाल जितावे। यदि डालना हैं तो लाल रंग डाल वरना रफू चक्कर हो जा।

भंग की तरंग में मुसाफिर पहुच गया जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चन्देल के यहां। वहीं जिला कांग्रेस के महामन्त्री असलम भाई और जिपं के उपाध्यक्ष अनिल चौरसिया बैठे हुये थे। जब उन पर रंग डालने की बात हुयी तो वे बोले रंग तो तुम खूब डालो और चाहे लाल डालो या हरा पर इतना याद रखना कि साहब को यह पता नहीं चलना चाहिये कि हमने तुम्हारे साथ भी होली खेली हैं।

नेताओं और अधिकारियों की होली का रंग ढ़ंग देखने के बाद मुसाफिर ने मीडिय़ा की ओर रुख किया और यह देखना चाहा कि उनकी भंग की तरंग क्या गुल खिला रही हैं। सबसे पहले उसे इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रशान्त शुक्ला,तिलक जाटव,राजेश स्थापक,सुनील और काबिज मिल गये। उन्होंने हाथ में पिचकारी देखत ही कहा कि अरे तुम क्या होली खलेगो हम तो रोज कैमरे से होली खेलते हैं। फोटो तो सभी की खींचते हें लेकिन दिखाते उसकी ही हैं जिसे दिखाना होता हैं। एक दिन की होली तुम्हें ही मुबारक हो। प्रिण्ट मीडिया के संवाद कुञ्ज के कार्यालय में जब पहुंचा तो मञ्जु भाभी,क्षितिज और हिमांशु ने तपाक से कहा कि भंग की ठंड़ाई में यदि रंग घोल कर लाये हो ठीक वरना अपना रास्ता देख।रास्ते से लौटते में सुदूरसन्देश के आफिस में जब पहुंचा तो अशोक आहूजा ने तपाक से कहा कि कलमुंहे तुझसे क्या होली खेलूंगा तुझे ही आना था तो कम से कम फगुआ गाने वालों की टीम लेकर आ जाता। इसी तर्ज में जब वो युगश्रेष्ठ कार्यालय में पहुंचा तो विजय छांगवानी और सन्दीप छांगवानी वहां बैठे भांग की ठंड़ाई घोण्ट रहे थे। जब मुसाफिर ने उससे होली खेलने की कोशि की तो वे तुरन्त ही बोल उठे कि सबसे होली खेल कर हमने देख ली हैं अब तो खुद आपस में ही होली खेलेंगें।शाम होते दलसागर के आफिस में जब पहुचा तो प्रमोद शर्मा,और मगन मासाब आपस में बैठ कर हिसाब कर कर रहें थे कि कब कितनी लाये और कितनी खाली की। खाली से हिसाब मेल नहीं खा रहा था। जैसे ही मुसाफिर वहां पहुंचा तो बोले कि खाली

पीली होली से क्या फायदार्षोर्षोकुछ लाया क्यार्षोर्षो

यशोन्नति कार्यालय का आलम ही कुछ और था।राजेश अग्रवाल और मनोजमर्दन त्रिवेदी में लहसुन प्याज और बिना लहसुन प्याज को लेकर भंग की तरंग में चर्चा चल रही थी। मुसाफिर बिना पूछे ही वहां से खिसक लिया कि कहीं यह ना पूछ लें कि बिना लहसुन प्याज का रंग है या नहीं।

स्थानीय प्रेस से थक हार जब वो लौट रहा था तभी एक जगह जिले के वरिष्ठ पत्रकारगण आनन्द खरे, दिनेश किरण जैन,आर.के.विश्वकर्मा,हरीश रावलानी,,सन्तोष उपाध्याय,ओम दुबे,अभय निगम ,सूर्यप्रकाश विश्वकर्मा,तारेश अग्रवाल,राजेन्द्र गुप्ता,आदि सभी अपनी अपनी पिचकारी से एक दूसरे को रंगने में लगे थे और मालिकों और पाठकों के बीच कैसे जी रहें हैं इसका रोना रो रहे थे। इतने में पिचकारी थामे मुसाफिर को फट पड़े कि ऐसे में भी तुझे हमारे ही साथ होली खेलने की पड़ी हैं।

घूमते फिरते हुरियारा एक्सप्रेस आफिस में पहुंच गया। वहां वाहिद कुरैशी,फिरोज भाई लप्पा, रामदास,जिब्राइल कुरैशी बैठे बैठे अपनी अपनी हांक रहे थे। भंग का रंग जब सब पर चढ़ कर बोलने लगा तो मन का मलाल भी निकला कि क्या करें अब चाचा को भी देखना पड़ता हैं और सनद भैया को भी।लोग कुछ भी बोले हैं तो मददगार ही। मुसाफिर को देखते ही बोले कि अब तुम नयी मुसीबत मत खड़ी करो और हमे होली खेलने दो।

इन सबसे से बेखबर सञ्जय सिंह,अवधेश तिवारी,रामेन्द्र श्रीवास्तव,अयोध्या विश्वकर्मा और पुष्पराज दुबे होली के दिन तर हो रहे थे। मुसफिर को देख बोले कि भाई अपन तो अपने रंग में रंगे रहते हैं तुम्हें भी इसी रंग में रंगना हैं तो आओ और तुम भी तर हो जाओ वरना भाड़ में जाओ।

इधर से लौटते में दिल्ली से आये लिमटी खरे टकरा गये। उन्हें देख मुसाफिर खुश हो गया कि दिल्ली का तर माल कुछ मिलेगा पर वो तो बहुत नाराज थे कि दिल्ली में कभी सिवनी का नाम हुआ करता था अब नाम ही मिट गया हैं। ऐसे में अब क्या होली खेलें।

आखिर में लौटते काली चौक के पास द्वारका श्रीवास्तव,आशुतोष तिवारी और विनोद मिल गये जो दर्पण में अपना रंगा चेहरा देख कर खुश हो रहे थे। मुसाफिर जब आया तो उसे भी उस रंग में रंग डाला और कहा कि अब तू भी दर्पण में अपना चेहरा देख और घर जा।

दिन भर का थका हारा मुसाफिर जब घर पहुंचा तो सोचने लगा कि नेता,अधिकारी पत्रकार सभी ने किसी ना किसी बहाने उससे होली खेलने से मना कर दिया। अब मुसाफिर भला उन्हे क्या बताता कि बड़ी रेल लाइन, लोकसभा सीट समाप्त होने,सम्भाग ना बन पाने, फोर लेन के मामले में अड़चनें और ढ़ेर सारे सरकारी दफ्तर चले जाने से निराश होकर मुसाफिर ने इस साल पिचकारी में विकास का रंग भरा था और चाहता था कि सब मिल जुल कर कुछ करें लेकिन नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात निकला और यह होली भी वैसी ही खाली चली गई।ÞमुसाफिरÞ

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