रविकुमार बाबुल
ग्वालियर शहर के जलविहार परिसर में, मैं उसको घुमाने ले गया था, बीते दिनों गंदगी से भरी या गंदगी फैलाकर मार डाली गयी तमाम मछलियों का स्मरण हो आया। अचानक मुझे परिसर के भीतर खिले फूलों का मेरे हाथ को छू लेने का एहसास हुआ। गौर किया तो फूलों ने नहीं, उसके हाथों ने मेरे हाथों को छूकर, मेरा पर्यावरण को लेकर कागजी खाना पूर्ति करने वालों की ताकिद के बावजूद पर्यावरण के आसरे मछलियों की याद में ताजमहल बनाने का एक बारगी मेरे मन में आया ख्याल तोड़ दिया। उसने सुर्ख गुलाब का फूल तोडऩा चाहा। मैंने फूल तोडऩा मना है के बोर्ड की ओर इशारा किया, उसने सोच लिया कि उसे मैं कांटों से डरा रहा हूं? वह फूल-पत्ती पढऩे में लगी रही। सहसा भीड़ इतनी बढ़ चली कि हर शख्स को उसे पढऩे से रोकना मेरे लिये किसी सुनामी की तरह बस का ही नहीं रह गया? सोचा ... फूल और भीड़ से बंटता दिमाग, कहीं दिल न बांट दे। चलो ... किला (ग्वालियर फोर्ट) पर चलते है, उसकी सहमति से निकल लिये। किले की इस चढ़ाई के मुकाबले, इश्क की चढ़ाई अब ज्यादा आसान हो चली, लगने लगी। खैर... यहां पर फूल पत्ती तो नहीं थे, लेकिन खण्डहर में तमाम जगह प्रेम ही प्रेम बेतरतीब बिखरा दिखा? यहां तक कि दीवारों पर प्रेम, पत्थर पर प्रेम, कहीं लुढ़का हुआ प्रेम, कहीं झाडिय़ों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की जद्दोजहद करता प्रेम, किसी के कांधे पर सिर रखकर इठलाता प्रेम तो कहीं पर गुरूबाणी की आवाज सुनकर सीढ़ीयों पर बैठा अपने प्रेम के आने के इंतजार में इबादत कर बैठा प्रेम? मैंने सोचा ईत्ता सारा प्रेम है तो फिर संदेह में प्रेमिका की हत्या क्यों होती है? मुम्बई से लेकर दिल्ली तक यह प्रेम टुकड़ों-टुकड़ों में अटैची में क्यों समेट लिया जाता है? इसका जवाब किससे मांगता, या फिर कौन देता? दिल के आसरे पत्थरों सरीखा एक सवाल जब मैने उससे पूछा तुम्हें मालूम है यह किला किसने बनवाया? लगा अचानक किले की उंचाई बढ़कर सूरज के काफी करीब पहुँच गयी है मेरे इस सवाल पर मेरी शालभंजिका भड़क उठी? मेरा भी नेह की अनबुझी प्यास के बीच अब कण्ठ भी सूख चला, लगने लगा। उसने पलट कर कहा हिस्ट्री के चक्कर में रहोगे तो अपनी दुनिया नहीं बना पाओगे, और इस दुनिया के ही होकर रह जाओगे? और तो और सेमीनारों में वक्ताओं की आसंदी के सामने भरे गिलास सा ढंककर रख दिये जाओगे?
उसने तत्काल लौटने का मन बनाया, मैंने भी अनमने मन से लौटने की उसकी अधिसूचना पर अपनी मुहर लगा दी, पता नहीं चल रहा था कि वह यहां से लौटना चाहती है या मेरी जिंदगी से? खैर ... लौटते वक्त उसे मेरी थकान का भ्रम हुआ? उसने किसी को फोन लगाया। फूलबाग पर हम दो से अचानक तीन हो गये, वह जो आ गया था। रास्ते दो रह गये, वह उसको लेकर स्टेशन की ओर फुर्र हो गया। मैं फूलबाग गुरूद्वारे की तरफ लौट चला, सोचा कहीं यह भी तो हिस्ट्री के सवाल नहीं करेगा? या कॉमर्स विषय रहा होगा इसका तो जोड़-बाकी करके काम चला लेगा। चिडिय़ा घर के दीवारों के साये में जानवरों की गंध के बीच बढ़ते हुये मैंने एक बोर्ड देखा.....। मात्र तीन हजार रूपये में फिजीक्स की कोचिंग, पहले 20 स्टूडेन्ट को कुछ छूट भी। सोचा लोग शरीर विज्ञान में तो दक्ष हो जाते है लेकिन दिल नहीं पढ़ पाते हंै? अब यकीन हो चला था कि दूजा ताजमहल आज तलक क्यूं नहीं बन सका है, पर अब कभी मैं इतिहास के सवाल किसी से नहीं करूंगा, अपने अतीत से भी नहीं, एक ताजमहल ही काफी है?
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