साहित्य की चौर्य परंपरा मे एक नया नाम प्रसार भारती की सर्वेसर्वा मृणाल पांडे का भी जुड गया है।२६ अप्रैल के हिंदुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर सुभाषिनी अली ने मराठी से विष्णु भट्ट गोडसे वरसईकर कृत यात्रावृतांत के मराठी से हिंदी अनुवाद को मृंाल पांडे का अद्भुत कारनामा सिद्ध किया है।विद्वान लेखिका को शायद जानकारी नही है कि विष्णु भट्ट गोडसे की इस अत्यंत चर्चित पुस्तक का बरसों पहले कई विद्वान लेखक अनुवाद कर चुके हैं जिनमे पं०अमृतलाल नागर भी शामिल हैं।१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के १५० वर्ष परे होने के क्रम मे आकाशवाणी की राष्टरीय प्रसारण सेवा के लिए एक शोध कार्य करते हुए पं० सुरेश नीरव के साथ मै बार बार उक्त कृति से बार -बार गुजरा हूं एसे मे सुभासिनी अली और मृणाल पांडे जैसे साहित्य के बडे नाम किसी लेखक के योगदान का जिक्र किए बिना स्वयं स्रेय लेना चाहते हैं तो ऊनकी इस हरकत को चौर्य -परंपरा का हिस्सा ना माना जाय तो क्या माना जाय?
आप विद्वान साथियों के विचार भी इस संबंध मे आमंत्रित हैंअरविंद पथिक
आदरणीय श्रीसरजी,
ReplyDeleteयह भी संजोग की बात है कि, आपके `साहित्य की चौर्य परंपरा` के लेख के साथ ही मेरा `A To Z विवरण के साथ आज ही पोस्ट किया गया `कॉपीराइट एक्ट` का आलेख पोस्ट हुआ है । मैं भी ऐसे चोर साहित्यकार का पहले शिकार हो चुका हूँ, और इसका दर्द महसूस कर सकता हूँ । आप इसे अवश्य पढ़िएगा ।
आप बड़े अच्छे स्वभाव के धनी है और ऐसे ही बेबाक़ लिखते रहना।
धन्यवाद ।
http://mktvfilms.blogspot.com
मार्कण्ड दवे ।