एक सवाल हिंदुओं से भी , one question from hinduu's also
एक सवाल हिंदुओं से भी ,
वे ऐसा क्यूँ समझते हैं कि उन्हें अपने धर्म के विषय में कुछ पढ़ने की आवश्यकता नहीं है.
वे बिना सीखे ही सब जानते हैं .
अशोक गुप्ता
वे ऐसा क्यूँ समझते हैं कि उन्हें अपने धर्म के विषय में कुछ पढ़ने की आवश्यकता नहीं है.
वे बिना सीखे ही सब जानते हैं .
अशोक गुप्ता
delhi, india
ashok.gupta4@gmail.com
ashok.gupta4@gmail.com
प्रशन बहुत ही उत्तम और वाजिब है.मोटेतौर पर हिन्दू (कहने भर से) खोखले ज्ञान के स्वामी है, परन्तु न तो आइना ही देखना चाहते और न ही पढना, बस अधकचरे ज्ञान से सारी दुनिया में खीं खीं करते और अपनी जग हसाई करते फिर रहे है. और सच कहूँ तो जिन लोगो को नाक पुचने की भी तमीज नहीं वो अपने को भारतीय और जाती की वजह से हिन्दू होने का भी दम भरते है. जबकि अपनी बीवी से लिए फेरे के श्लोक भी पंडित हलक में हाथ देकर ही बुलवाता है. निभाएगा तो क्या.
ReplyDeleteTyagi
www.parshuram27.blogspot.com
आपका प्रश्न उत्तम और विचारणीय हैं , हम अपने हिन्दू होने पर गर्व तभी कर सकते हैं जब हम हिन्दुत्व को पढें , समझे और जानें ।
ReplyDeletewww.vishwajeetsingh1008.blogspot.com
आदरणीय त्यागी जी एवं विश्वजीत सिंह जी ,
ReplyDeleteब्लॉग पर विचार के लिए धन्यवाद कि आपने इसे इस योग्य समझा.
मेरा यह प्रश्न अपने आप से भी था.
मेरे विचार से हिंदुओं की सतहशीलता ही उनकी कमजोरी है. सारे धर्मों का सम्मान करना एक और बात है , और अपने धर्म की विशेषताएँ जान कर उसे आदर देना एक और बात है .
मैंने इस उम्र में श्री गीता जी पढ़ना शुरू किया है.
अशोक गुप्ता , दिल्ली ,
आप इश्वर को किसी एक धरम में केद नही कर सकते इश्वर या अल्हा तो प्रेम रूपी अनन्त सागर हें जिसे सिर्फ एक सच्चा योगी या सच्चा भगत ही जन सकता हे , http://bharatyogi.blogspot.com/2011/04/blog-post_8870.html#links
ReplyDeleteबिल्कुल ! आज़ हमें हमहीं को पहले सुधारने की ज़रूरत है ।
ReplyDeleteबिल्कुल ! आपका सवाल सही है ।
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