आतंक के खिलाफ लड़ाई: भारत और अमेरिका
अब जबकि ओसामा बिन लादेन बीती बात हो चूका है लेकिन हमें अमेरिका की लगन और दृढ निश्चय कीजरुर तारीफ करनी पड़ेगी की आखिर दस साल के लम्बे इंतजार के बाद भी उसने अपने दुश्मन को नबल्कि खोज निकाला और उसके कुकृत्यो की सजा दी | इस सारे घटनाक्रम से पाकिस्तान की असलियतसारी दुनिया के सामने आ गयी है |
अब जरा हम ओसामा के बारे में बात करते है वो पाकिस्तान के राजधानी इस्लामाबाद से १२० किलोमीटरदूर एबटाबाद में आराम से शाही जिंदगी बिता रहा था और वो भी पाकिस्तान के मिलट्री अकादमी केबिलकुल बगल में अब ऐसी जगह तो कोई बगैर पाक सरकार के वरदहस्त के बगैर रह नहीं सकता| अबइस मामलो में दो ही बाते हो सकती है की या तो पाक सरकार ओसामा को बतौर मेहमान वहा रख रही थीया फिर वह पर सरकार या प्रशासन जैसी कोई तंत्र ही नहीं है | अब पाकिस्तान इंकार कर तो रहा है लेकिनक्या ये संभव है की किसी देश की राजधानी में किसी दुसरे देश के सैनिक हैलीकॉप्टर से आये और ४०मिनटों तक लड़ाई चले और बगल में ही मिलिट्री अकादमी को जरा सा भी पता नहीं चले जबकि अगलबगल के रहने वालो के घरो की खिड़कियाँ टूट तक गयी थी इन धमाको से और जैसे ही अमेरिकी सैनिकओसामा को मार के उसे वहाँ से ले जाते है वैसे ही पाक आर्मी घटना स्थल पर आकर बचा हुआ काम करतीहै सिनेमा में तो ये दृश्य अच्छा लगता है लेकिन अगर ऐसे दृश्य वास्तविक होने लगे तो फिर हंसी हीआएगी |
लेकिन पाकिस्तान को अपने आंतरिक स्थिति के बारे में अच्छी तरह से मालूम है की अगर उसने इस पुरेघटना चक्र में अपना हाथ बता देगा तो पूरा पाकिस्तान गृह युद्ध में तब्दील हो जायेगा | अब जबकिअमेरिया ने ९/११ का बदला ले लिया है तो जाहिर तौर पर सभी भारतीयों के मन में ये सवाल एक बारजरुर उठी होगी की क्या हम भी अपने २६/११ वाले शर्मनाक हमले के बदले में इंसाफ के लिए कोई कदमउठाएंगे या फिर ऐसे ही कभी पाकिस्तान को सबूत देंगे और कभी अमेरिका की ओर मुह देखेंगे की वहीकोई कुछ करे ? क्या हमने अपने आदमी नहीं खोये ? क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है की अगर कोईहमारे उपर कोई आतंकी हमला करता है तो हम उसके जिम्मेदार व्यक्ति को सजा दे सके ? ये कुछ आमसवाल है जो हर एक भारतीय के मन में जरुर आते होंगे |
आइये कुछ नजर डालते है आतंकी हमलो पर जिसके जिम्मेदार हमारे सरकारी मेहमान घर में आराम सेजिंदगी गुजार रहे है | बात करते है १९९३ में हुए मुंबई बम धमाके की जिसका मुख्य अभियुक्त दाउदइब्राहीम पाकिस्तान में है ये बात हमारी सरकार अच्छी तरह से जानती है लेकिन कुछ नहीं करती| २०००लाल किले के अंदर घुस कर सेना के तीन जवानों की हत्या और ११ को घायल करने वाले लश्कर-ऐ-तोएबाके आतंकी मोहम्मद आरिफ की सजा अभी भी अदालतों के चक्कर लगा रही है, २००१ संसद पर हमलाहमारे कितने बहादुर जवान जो उस वक्त नहीं होते तो शायद पता नहीं कितनी शर्मनाक हादसा होता, नेअपने प्राणों की जरा सा भी परवाह न करते हुए उस हमले को नाकाम किया और उसका मुख्य आरोपीजिसको हमारे सुप्रीम कोर्ट ने फासी की सजा ६ साल पहले ही सुना चुकी है , हमें वो २६ नवम्बर की रातको कैसे भूल सकते है जब हमने टीवी चैनलों पर ताज होटल को आग के लपटों पे पाया था और वो खूनखराबा कैसे भूल सकते है जिसने हमारी आर्थिक राजधानी को हिला के रख दिया था उसका मुख्यअभियुक्त पाकिस्तान में अभी भी भारत के खिलाफ जहर उगलता फिर रहा है और एक आरोपी मुंबई केजेल में कबाब उडा रहा है, इसके बाद भी २००६ में बनारस के संकट मोचन मंदिर पर हमला, २००५ मेंदिल्ली में दीपावली के ठीक पहले बाजारों में हमला, २००२ में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला इतनेहमले के बावजूद हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन आखिर क्यों ?
सभी भारतीयों के मन में ये सवाल जरुर उठता होगा की एक हमले के लिए अगर अमेरिका दस सालो सेबिन लादेन के पीछे लगा रहा वही हमारे देश में पिछले २० सालो में लगभग ३ दर्जन आतंकी हमलो मेंहमने करीब २००० अपने आदमियों को गंवाया है और फिर भी उन सब के जिम्मेदार व्यक्ति आराम से यातो किसी दुसरे मुल्क में घुमे या अपने देश में हमारे जेल की शान बढ़ाये तो हम किसको जिम्मेदार ठहराएअपने यहाँ की कानून व्यवस्था को या फिर अपनी सरकार को ? या फिर अपने यहाँ होने वाली गन्दीराजनीति को जो की इतनी गिर चुकी है की उसे देश की अखंडता और सुरक्षा भी नहीं दिखाई देता| हमारेनेता अपने वोट बैंक के लिए दलगत राजनीति के तहत उन जिम्मेदार अपराधियों की ढाल बने रहते है कीअगर उनको सजा मिलती है तो एक खास समुदाय उनके वोट बैंक से खिसक न जाये | एक संप्रभुत राष्ट्रहोने के नाते क्या हमारे देश का ये हक़ नहीं बनता की जो हम पर हमला करे उनका मुहतोड़ जवाब देकरअमेरिका जैसा मिसाल कायम करे ताकि आगे से हमला करने वाले अपने साथ होने वाले अंजाम के लिएसोचे|
-- अक्षय कुमार ओझा
Contact me at: akshaykumar.ojha@gmail.com
कहने भर को ऐसी बातें अच्छी लगती हैं, धरातल का सच कुछ और है, क्या भारत दुनिया के राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से अमेरिका की बराबरी के काबिल है, कहने भर को ये बातें अच्छी लगती हैं, वैसे भी हमला करने का निर्णय जन चर्चा अथवा आप जैसे विशेष देशप्रेमियों की राय से लिया जाना उचित है, आप को अगर कभी मौका मिल जाएगा सरकार में आने का तो आप को भी पूरी दुनिया नजर आने लगेगी, जैसे भाजपा को एक बार नजर आ चुकी है, जब उसे आतंवादियों को छोडने कंधार जाना पडा था
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