3.6.11

किसका यह देश ?

आवेदन पत्र भरते समय
आरक्षितों से दुगुना या कई गुना अधिक शुल्क देने
और फिर 'अन्य' या 'अदर्स' गिने जाने के बाद
मंगल पाण्डेय एवं कुंवर सिंह आदि
के वंशज सोचते
हैं
'क्या हमारा नहीं है ये देश ?
क्या हम यहाँ 'ब्रदर्स ' नहीं बल्कि 'अदर्स' हैं ? '

बापू के द्वारा दिए गए 'हरिजन' नाम पर
बौखलाए
दलित या महादलित
सोचते हैं
कि
कभी
नहीं रहा उनका ये देश ।
यदि रहता तो क्या गांघी जैसा
अधनंगा बनिया
उन्हें हरिजन कहकर गलियाता ?

सोचते हैं
अल्पसंख्यक ,
'जब यह देश बहुसंख्यक हिन्दुओं का नहीं
तो फिर हमारा कैसे ?'

सोचते हैं कुछ होशियार विदेशी
यह देश वो बच्ची है
जिसके माँ-बाप नहीं ,
या वो लड़की है
जिसका कोई भाई नहीं ,
या वो नवयुवती है
जिसका कोई पति नहीं ,
या वो प्रवया है
जिसका कोई पुत्र नहीं , कोई पुत्री तक नहीं ।

लूट लो इसका
सर्वस्व
धन , मानसम्मान ।'

लुटने लगती वह
भूखे भेड़ियों के हाथ
उसकी ही मिट्टी से बने
कुछ लोग हैं
उन विदेशियों के साथ ।
दीखने लगे हैं
उसके कुछ बच्चे लाचार ।
चीखने लगे हैं
'भ्रष्टाचार ! भ्रष्टाचार ! '

पूछते हैं विदेशी ,
' हमारे बैंकों में
जमा करते धन राशि अपार ,
बिना किये कोई न्यायोचित कारोबार ,
करके घोटाले
हो गए मालोमाल ,
बोलो भी यार
तुम हो किसके दलाल ?
बेटी , बहन , या माँ के ?
इसी कि मिट्टी की
बनी तेरी देह ,
तेरा नहीं तो फिर किसका यह देश ? किसका यह देश ? '

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