3.6.11

कैरेक्टर ढीला है? (कहानी)

कैरेक्टर ढीला है? (कहानी)
प्यारे दोस्तों, इस कहानी में एक सती का सतीत्व ख़तरे में हैं,क्या इस लिंक पर आकर, इस कहानी का अंत लिखने में, आप मेरा मार्गदर्शन करने का कष्ट उठायेंगे? 


आधी-अधूरी नींद में, मृगया पानी का जग लेने के लिए, जब नीचे किचन में आयी, तो उसने देखा कि," मेहमान देव, अपने सीने पर  मैगज़ीन रख कर, बाथरूम और बेडरूम की सारी बत्तीयाँ बिना बुझाये ही, सो गए हैं?"
मृगया को मन ही मन हँसी आ गई..!! प्रेम के सारे दोस्त भी ,प्रेम की माफिक ही लापरवाह  है..!! 
मृगया धीरे से देव के बेडरूम में गई  और देव की नींद में कोई ख़लल न हो, इसका ध्यान रखते हुए उसने बाथरूम की बत्ती बुझा कर, देव के सीने पर पड़ा मैगज़ीन उठा कर बाज़ू के टेबल पर रखा, फिर धीरे से दबे पाँव रूम के दरवाज़े के पास पहुँच कर, जैसे ही मृगया ने रूम की बत्ती बुझा कर, दरवाज़े की ओर अपने कदम बढ़ाये...!!
अचानक, मृगया को अपनी नाज़ुक कमर पर, देव के मज़बूत हाथों की पकड़ महसूस हुई । मृगया भय के कारण कांप उठी और वह कुछ ज्यादा सोचे-समझे उसके पहले ही, रूम का दरवाज़ा बंद हो चुका था । 
किसी मुलायम पुष्प जैसी कोमल-हल्की मृगया को, देव ने अपने मज़बूत कंधे पर उठाया और वासना पूर्ति के बद-इरादे के साथ, मृगया को बेड पर पटक दिया..!!
दोस्तों, क्या मृगया का बलात्कार और फिर उसकी आत्महत्या जैसा, करूण अंत होना चाहिए, या  किसी भी तरह, मृगया को देव की चंगुल से बच निकलने का मौका मिलना चाहिए?
बहुमत विद्वान पाठक जो कहेंगे, इस कहानी का ऐसा ही अंत लिखने का मेरा इरादा है ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०३-०६-२०११

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