मित्रों,हमारे गाँव में तरह-तरह के जीव निवास करते हैं,अजब भी और गजब भी.उन्हीं में से एक प्रजाति ऐसी है जिनके पास कोई काम ही नहीं है.अब जब काम नहीं है तो वो बेचारे करें तो क्या करें?इसलिए उन्होंने अपने जिम्मे छिद्रान्वेषण का काम ले लिया है.वे दुनिया की सबसे परेशान आत्माओं में से हैं और दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते हैं कि किसी और की धोती मेरे से ज्यादा उजली कैसे?कोई कितना भी अच्छा क्यों न हो ये लोग उसे नीचा दिखाने के लिए कोई-न-कोई सूटेबुल तर्क ढूंढ ही लेते हैं.
मित्रों,कुछ ऐसा ही वर्तमान भारत ही नहीं विश्व के प्रखर योगी बाबा रामदेव के साथ हो रहा है.चूंकि वे एक हिन्दू संन्यासी हैं इसलिए उन पर हमले का अपना पहला अधिकार और कर्त्तव्य मानते हुए सबसे पहले झूठे आरोप लगाए साम्यवादियों ने.कथित धर्मनिरपेक्षता के लाइलाज रोग से ग्रस्त इन लोगों ने अपना धर्मनिरपेक्ष कर्त्तव्य निभाते हुए बाबा पर इस बात का बेबुनियाद आरोप लगा दिया कि बाबा की आयुर्वेदिक दवाओं में मानव अंश मिलाया जाता है.कुछ दिनों तक के लिए सनसनी जरुर फ़ैल गयी लेकिन चूंकि झूठ के पांव नहीं होते बाद में वे हाथ-पैर और जीभ समेट कर बैठ गए.
मित्रों,इसके बाद बारी थी कांग्रेस की जो भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा के बलिदानी तेवरों से इस समय भी घबराई हुई है.उसने बाबा पर चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक मदद करने का आरोप लगाया.बाबा के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने इस आरोपों को स्वीकार भी किया.लेकिन क्या इस आरोप के सच सिद्ध हो जाने से बाबा द्वारा उठाए गए मुद्दे एकबारगी अप्रासंगिक या निरर्थक हो गए हैं?क्या टाटा-अम्बानी-बिरला जैसे लोगों का उद्देश्य पूर्णतया पवित्र है जिनकी इस भ्रष्टतम पार्टी से गहरी छनती है और जो इसके पार्टी फंड में हर साल करोड़ों रूपये देते हैं.वर्तमान केंद्र सरकार जो अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार भी है को हरानेवाली पार्टी की मदद करने वाले की गिनती मैं नहीं समझता कि किसी भी तरह देशद्रोहियों में की जानी चाहिए और वो भी सिर्फ इसी एक कारण से.इस समय जो भी देशभक्त हैं,जिनके मन में देश के प्रति थोड़ा-सा भी अनुराग है उन्हें इस सरकार को हटाने के प्रयास करने ही चाहिए;नहीं तो जब देश ही नहीं रहेगा तो कोई कैसे किसी को देशभक्त या देशद्रोही का ख़िताब दे पाएगा?
मित्रों,एक बार हम सभी देशप्रेमी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार से धोखा खा चुके हैं.सरकार अन्ना हजारे और उनकी टीम तथा देश के साथ किए वादे से मुकर चुकी है.सरकार चाहती है कि अन्ना टीम लंगड़ा लोकपाल बिल पर राजी हो जाए और देश जैसे चल रहा है या यूं कहें कि लुट रहा है लुटता रहे.चूंकि बाबा रामदेव के अनुयायी करोड़ों में हैं इसलिए इस बार सरकार पहले से ही डरी हुई है और उन्हें अनशन पर बैठने से रोकने के लिए साम,दाम,दंड और भेद सभी हथियारों का जमकर इस्तेमाल कर रही है.बाबा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन प्राप्त हुआ है और मैं नहीं मानता कि इसमें नो थैंक्स कहने की कोई जरुरत भी है.बाबा ने तो किसी को समर्थन के लिए बाध्य नहीं किया है.कांग्रेस क्या कम्युनिस्ट भी अगर बाबा का समर्थन करते हैं तो उन्हें ख़ुशी ही होगी.
मित्रों,बाबा द्वारा उठाए गए मुद्दे गंभीर हैं,आरोपों में दम है;बाबा का चरित्र भी अब तलक धवल और निष्कलंक है फिर भी निंदा रस का अस्वादन करने की आदत से लाचार लोग उनकी निंदा में लगे हैं.मैं ऐसा कुत्सित प्रयास करनेवाले नेताओं के साथ-साथ अपने पत्रकार मित्रों से भी दंडवत निवेदन करता हूँ कि आप ऐसा करके इस पवित्र जनयुद्ध को कदापि कमजोर न करें.तेल देखिए और तेल की धार देखिए.अभी जब अनशन प्रारंभ भी नहीं हुआ तभी से क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जल्दीबाजी बिलकुल न करें.एक तो कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आ नहीं रहा है और कोई अगर अपना सबकुछ दांव पर लगाकर इसकी हिम्मत कर भी रहा है तो बजाए उसे प्रोत्साहित करने के आप हतोत्साहित कर रहे हैं!यह न केवल निंदनीय कर्म है बल्कि अपराध भी है.जहाँ तक बाबा के राजनीतिक एजेंडा का सवाल है तो अभी तक तो बाबा ने इसका खंडन ही किया है फिर आप क्यों जबरदस्ती यह आरोप उनके मत्थे मढ़ने पर तुले हैं?
बात तो आपकी ठीक है, मगर किसी पर भी आंख मीच कर यकीन करना भी गलत है, रहा सवाल आलोचना का तो यह वह महान देश है, जो मर्यादा पुरुषेत्तम भगवान राम तक की आलोचना करने से नहीं चूकता, हम ही वे लोग हैं जो अपने देवताओं के बारे में अश्लील एसएमएस तक बनाने से नहीं चूकते
ReplyDeleteधन्यवाद् गिरधर जी.
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