अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
22.7.11
जब से सुधरे
जब से सुधरे हुए जानम , मुझे जमाने हुए , तब से सचमुच बड़े बेख़ौफ़ ये पैमाने हुए । सुबह से दोपहर तक मुझको आया ही न सहऊर , शाम ढलने लगी तब जिन्दगी के माने हुए । गुजर गए मेरी गलियों से अजनबी की तरह , कभी अपने थे वो जो आजकल बेगाने हुए ।
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