नारी के प्रति क्या समाज ...?
यु तो आज सभी दिशाओ में नारी का परचम भी खूब लेहैराने लगा है ...सरकार की कोशिश भी नारी की दशा को लेकर गंभीर विषय बनी है ...समाज में होते बदलाव नारी के बदलाव के बिना पूर्ण रूप से संभव नही हो सकते ...जिस तरह भारतीय शाश्त्रो में पुरुष और स्त्री को परिवार की बेहतरी के लिये दोनों को रथ के दो पहियों की उपमा दे कर इंगित क्या गया जिस से दोनों का परिवार में बराबर का सहियोग बयां होता है ...किन्तु वंही जब "श्री कृष्ण" अर्जुन को गीता में जब उपदेश देते हैं तो स्पष्टाः एक जगह स्त्री की उपमा कुछ इस प्रकार करते है जहा स्त्री - पुरुष की बराबरी के सिधांत को कुछ भंग ही कर देतें हैं ...श्री कृष्ण गीता में एक जगह अर्जुन को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने की विधा देते हैं
और कुछ यु ...." गीता में श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रथमन स्वभाव वाली इन्द्रियां यतन करने पर भी बुद्धिमान पुरुष के मन को हर लेती हैं ..मन से इन्द्रियां बलवान दिखती हैं ...क्योकि जैसे जल में नाव को वायु हर लेती हैं ...वैसे ही विषयों में विचरने वाली इन्द्रियों से मन जिस इन्द्रिय से साथ करता है , वह एक ही इन्द्रिय इस आयुक्त पुरुष की बुधि को हर लेती है , इस लिये मन से बुधि बलवान है ..,कमजोर पुरुष को स्त्री अपने इशारो पर नचाती है ...वह वश में पूर्णतया स्त्री के हो जाता है ..जबकि पुरुष स्त्री से बलवान है ..,ठीक इसी प्रकार जिनकी इन्द्रियां वश में न होकर मन को वश में किये हुए हैं ...,
प्रभु से प्राथना करनी चाहिए - हे भगवान ...आप दया करके मुझे सहायता दे ,,,जिस से इन्द्रियां , मन एव बुधि मेरे वश में हो जाए
भारतीय - शास्त्रो में इतने विरोदाभास दीखते हैं की जिनको गिना नही जा सकता .....यहाँ केवल पुरुष को समाज का उच्च प्राणी दिखा दिया है और स्त्री को एक दोयम दर्ज़े का ... और वही " बुद्धिमान पुरुष " कहेकर भी ये देखा दिया की स्त्री बुद्धिमान की कातर से बहार है ...मुझे लगता है जहाँ बुद्धिमान पुरुष कहा गया वहां मानव ,..प्राणी.,मनुष्य .., जीव..,ऐसे अनेक शब्द हैं जो दोनों को अपने में समाहित करते ..पर जब शास्त्रों में ये विरोधाभास रहेगा जहाँ जब मन करा स्त्री को पुरुष के साथ बराबरी का दर्जा देदिया जब मन करा जब स्त्री को पीछे कर दोयम दर्ज़े का बयां कर दिया ..केवल पुरुष के सुख के लिये...सारे शास्त्र " पुरुष सुख "को " केंद्र " में रख कर बनाये गए हैं ....और आज की राजनीती भी भारतीय शास्त्रों से प्रभावित दिखती है जब मन चाह स्त्री को बराबरी का दर्जा दे दिया जब कुछ हित आहात होते दिखे तो स्त्री को पीछे कर दिया
padhne me dikkat hui bhai ||
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