ठोकर मारी कुण्डली को और, हम यूरोप चले आए
भर पखवाड़े घूमे जितने, देश यहां सारे भाए
सुबह शहर काली का छोड़ा, पहुंच गए दुबई दोपहर
भरी उड़ान वहां से सीधी, ज्यूरिक पहुंचे रात पहर
लेकिन वक्त वहां था पीछे,बजे थे केवल साढ़े आठ
अपने देश में जनता लेकिन, पकड़ चुकी थी कबकी खाट
आर्द्धरात्रि भारत में थी पर, वहां का सूरज चढ़ा हुआ था
रात वहां थोड़ी होती है, यह पुस्तक में पढा हुआ था
निकले एअरपोर्ट छोड़कर, पहुंचे हम होटल हिल्टन
मौसम था मीठा-मीठा, और खिला-खिला था सबका मन
बीतेगा एक दिन मस्ती में, घूमेंगे हम शहर यहां
ज्यूरिक कहता है हम सबसे, देखो पर्वत,नहर यहां
पहले दिन ज्यूरिक में घूम, हमने पूरा प्रवास किया
कम आबादी, साफ-सूथरी सड़कों का आभास किया
बार-बार मन पूछ रहा था, क्यों भारत तंगहाल है
संस्कार-संस्कृति में अव्वल, फिर भी हम बदहाल हैं
उत्तर सहज मिला हमको कि दोषी है बढ़ती आबादी
खुदगर्जी में डूबे हैं हम, इसीलिए होती बर्बादी
यहां और एक बात खास थी, नीट एंड क्लीन था रास्ता
साफ सूथरी ट्राम,बसों से भी था अपना पड़ा वास्ता
सब कुछ भाया मन को लेकिन, एक लगा हमको खटका
बीच सड़क पे खड़ा युगल, क्यूं करता हर पल चुम्मा-चटका
बात गले बस यही न उतरी, और न कोई बात थी
हम ब्रह्मचारी बने हुए थे,पत्नी कहीं न साथ थी
कुंवर प्रीतम
27 july 2011
No comments:
Post a Comment