सपनों को आँखों में लाती जेसे एक पहेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी
सो गए है तारें सारे ,सो गई है पुरवाई भी
सोने को तैयार है बैठी गाँव की अमराई भी
मुझको यूं न छोड़ अकेला ,न कर यूं अठखेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी....
सूरज दिन का काम ख़तम कर बादलों में जा सोया है
चंदा भी चांदनी के संग रास रंग में खोया है
मुझको अपने पास बुलाए मेरी चादर मैली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...
सभी परिंदे शाखाओं पर दीन दुनिया से दूर हुए
यादों के झुरमुट भी अब तो थककर जैसे चूर हुए
सारे अपने चले गए है में रह गई अकेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी.......bahut sunder.
ReplyDeletedhanyawad mridula ji
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