14.7.11

उफ़ आखिर कब तक...

लीजिये भारत की व्यावसायिक राजधानी मुम्बई पर एक बार फिर से हमला हो गया...
अभी कसाब हमारा अतिथि बना ही हुवा है , अफजल ससुराल में रहने जैसा मजा उठा ही रहा है की मीडिया को एक और ब्रेकिंग न्यूज मिल गयी... सीरियल ब्लास में फिर दहली मुम्बई



उफ़ आखिर कब तक...
कब तक हम सब बस नपुन्सको सा तमाशा देखते रहेंगे...
कब तक बार-बार होने वाले धमाको के बाद हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री वही रटा-रटाया बयान देते रहेंगे कि "यह आतंकियों की सोंची समझी शाजिस है ? " अबे क्या बिना सोंचे समझे कोई इतना बड़ा ब्लास्ट तुम्हारे घर में घुस कर प्लांट कर सकता है ?
कब तक सांप निकल जाने के बाद हम खाली-पीली सारे देश में रेड एलर्ट जारी करके लकीर पीटने का तमाशा कर के जनता को बहलाएँगे ?

मीडिया चिल्ला रहा  है "कोई कुछ भी कर ले मुम्बई वासियों की एकता कोई नहीं तोड़ सकता है.." तो अंचार बनाकर छत पर सुखाने को रखो  एकता का... जब उनके मन में आता है तब घर में घुस कर मार जाते है और हम बस नपुन्सको सा अपनी एकता और अपनी जिन्दादिली पर tali बजा-बजा कर खुश हो लेते है ! 

इस से बेहतर तो ८० साल के बुजुर्ग अटल बिहारी ही थे जिन्होंने जन्मजात हरामियो के देश की सीमा पर कम से कम अपनी सेनाये तो चढ़ाकर उनको सबक सिखाने की तो ठानी तो थी... और एक बार पूरे विश्व कि सांसे तो रोंक दी थी ! 

यह सरकार तो बस खोखली बाते ही करती है... कभी शर्म-अल-शेख में मुह की खाती है , तो कभी अमेरिका के तलुवे चाटती नजर आती है !

गृह मंत्री कहते है कि हमारे पास एसी कोई व्यवस्था नहीं है जो पूर्व सूचना दे ??

गिनने पर आओ तो भारत में काम करने वाली इंटेलिजेंस एजेंसियों की पूरी सूची कम से कम एक पन्ने में समाएगी मगर सब बे-ताल नाच रहे है !और अपनी बीरता के डंका पीटने वाली बीर मराठा पुलिस के मुखबिर क्या खाली धंधेबाजो की खोज-खबर रखती है ? उसे क्यों नहीं कुछ सूंघने को मिलता है ?
और लोकल इंटेलिजेंस ? उनकी हालत क्या लोकल चाय जैसी हो गयी है ?


अरे हमारी राष्टीय सुरक्षा एजेंसिया जैसे एन.आई.ए. , आई.बी. और मिलिट्री इंटेलिजेंस के लोग क्या केवल तफरीह में मस्त रहते है ?
और क्या करती रहती है हमारी ' रा '  ? क्या उनके लोग पाकिस्तान में पिकनिक मना रहे हैं ....?
जबाबी कार्यवाही में क्यों नहीं वहां इससे बड़ा सीरियल ब्लास्ट प्लांट हो रहा है ?????? अगर दम है काउंटर इंटेलिजेंस में तो जाओ २४ घंटे में दहला कर दिखावो करांची और इस्लामाबाद की छाती...

और अगर कुछ नहीं हो सकता इंटेलिजेंस वालो से तो क्यों नहीं फिर से बोफोर्स तोपों का मुह वापस खोला जा रहा है ? अरे तोपे भले ही दलाली खा कर खरीदी गयी हों मगर जब वो गरजती है तो पाकिस्तानियों को अपनी माओ की कोख ही वापस याद आती है....
और पृथ्वी , अग्नि , अर्जुन आकाश क्या अजायबघर में रखने के लिए बनाये गए है ....?

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