14.7.11

Kya Toota

10 जुलाई को टीवी के रिमोट से चैनल बदलते हुए अकस्मात एक न्यूज़ पर नज़र पड़ी I हावड़ा से दिल्ली आ रही ट्रेन फतेहपुर के पास पटरी से उतर कर दुर्घटना ग्रस्त हो गयी I इस दुर्घटना में लगभग 100 से ज्यादा लोग घायल हो गये तथा अनगिनत अकाल मृत्यु की ग्रास में जा पहुंचे I द्रश्य इतना हृदय विदारक था कि कब रिमोट हाथ से छूट कर फर्श पर जा गिरा ये उस समय पता चला जब साथ वाले कमरे से किसी परिचित ने ज़ोर से चिंघाड़ मारी.......क्या टूटा री , क्या टूटा ? मैं अपलक टीवी स्क्रीन पर आँखें गढ़ाए उस मार्मिक करूँ द्रश्य को देखती रही I दया टूटा के उत्तर में मैं सिर्फ इतना ही ज़बान अस्थिर हुई...... कुछ नहीं......I आंख से आसूं विकल होकर बह निकले और वह गालो से दुलकते हुए लगातार फर्श पर पहुँच कर अस्तिवहीन हो रहे थे क्या टूटा ...क्या टूटा ..यही ध्वनी मेरे अंतर्मन मे धाएं - धाएं गूँज रही थी ....मैं अब कैसे समझाउं की क्या क्या टूट गया ..अनगिनत सपने , असंख्य आशाएं , सेंकडों साँसों की पतली डोर ..सभी कुछ तो टूट गया उस ट्रेन हादसे मे I कितनी ही सध्वाओं कि चूड़िया - कंगन , कितने ही अनाथ हुए बच्चों के सुनहरे भविष्य , कितने ही माता पिताओं कि बुढ़ापे की लाठिया , कितने ही बहनों कि रखियान , कितने ही भाइयों कि कलाइयाँ , कितने ही छात्र - छात्रों के सपने सभी कुछ तो टूट गया उस एक दुर्घटना में I जवान बेटे - बेटियों की असमय मौत से न जाने कितने ही पिताओं कि कमर टूटी होगी I यह सब सोचकर ही मेरे धैर्य का बाँध टूट भी टूट गया और मे फूट - फूट कर रोने लगी... एक टूटन का अहसास स्वयं मेरे अन्दर भी... मैं और क्या बताऊँ कि क्या - क्या टूट गया है...I

तबस्सुम जहाँ (एम् फिल हिंदी)
जामिया मिल्लिया इस्लामिया

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