11.7.11

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

जैन नेताओं को उपकृत करने की बात पता चलते ही नरेश को रोकने नीता ने भोेपाल में डेरा डालकर क्या पत्ता कटवा दिया?

हाल ही में प्रदेश योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में जब बाबूलाल जैन की नियुक्ति की घोषणा हुयी तब राज खुला कि मैडम वहां क्यों डटीं थींर्षोर्षो बताया जाता हैं कि नीता जी को यह पता चल गया था कि कुछ जैन नेता लाल बत्ती से नवाजे जाने वालें हैं। यह मालूम होते ही उन्होंने भोपाल में डेरा डाल कर पूर्व विधायक नरेश दिवाकर को रोकने की रणनीति बना डाली। वैसे यह माना जाता हैं कि नौ महीने तके गर्भस्थ रहने वाला शिशु पूरी तरह परिपक्व हो जाता हैं। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि निर्वाचन के पूरे नौ महीने बाद घोषित होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी कितने परिपक्व साबित होते हैंर्षोर्षोकांग्रेस की राजनीति में गुमनामी के दौर से गुजरने वाले नेता तो बहुत सारे हैं लेकिन उनमें से एक फोटो एक विज्ञापन में आने को लेकर तरह तरह की चर्चाएं चल रहीं हैं।सासंद के.डी.देशमुख सिवनी आते हैं और कभी स्कूलों का तो कभी अस्पताल का निरीक्षण करके कलेक्टर और एस.पी. से चर्चा करते हैं तो पूरे जिले में बिक रही अवैध शराब की बिक्री को रोकने की बात कहने से अपने आप को नहीं रोक पा रहें हैं। भाजपायी राजनीति के जानकारों का मानना हैं कि पूर्व मंत्री स्व. महेश शुक्ला के भतीजे सुरेंद्र शुक्ला की इस जीत को नीता पटेरिया भुनाएंगी और राजेश त्रिवेदी के सामने एक ब्राम्हण नेता के रूप में उनका उपयोग करेंगीं।

नरेश को रोकने नीता डटी रहीं भोपाल में -विधायक नीता पटेरिया प्रदेश के दौरे के नाम पर प्रदेश की राजधानी भोपाल में जमीं रहीं। लोगों को अंदाज नहीं हो पाया कि वे ऐसा क्यों कर रहीं हैंर्षोर्षो हाल ही में प्रदेश योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में जब बाबूलाल जैन की नियुक्ति की घोषणा हुयी तब राज खुला कि मैडम वहां क्यों डटीं थींर्षोर्षो बताया जाता हैं कि नीता जी को यह पता चल गया था कि कुछ जैन नेता लाल बत्ती से नवाजे जाने वालें हैं। यह मालूम होते ही उन्होंने भोपाल में डेरा डाल कर पूर्व विधायक नरेश दिवाकर को रोकने की रणनीति बना डाली। सिवनी के नीता और नरेश दोनों ही लाल बत्ती के प्रबल दावेदार हैं। नीता पूर्व सांसद हैं और एक मात्र वे ही विधायक बने सांसदोंं में बचीं हैं जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया हैं।दूसरी ओर नरेश दिवाकर ऐसेहैं जिनकी टिकिट काट कर नीता को दी गई थी और पार्टी ने नीता को जीतने के बाद से उन्हें उपकृत नहीं किया हैं। लेकिन दोनो ही नेताओं यह होड़ लगी हैं कि पहले लाल बत्ती उन्हें मिले वरना बाद में दूसरे को मिल जाय इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। इसलिए मौका आते ही दोनो एक दूसरे के खिलाफ जुट जातें हैं और नतीजा सिफर ही निकलता हैं।योजना आयोग में बाबूलाल जैन की नियुक्ति से अब नरेश की राह और मुश्किल हो जाएगी क्योंकि पहले भी काफी जैन नेताओं को भाजपा लाल बत्ती से नवाज चुकी हैं।

कितने परिपक्व साबित होगें हीरा आसवानी? -निर्वाचन के नौ महीने बाद आखिर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में हीरा आसवानी की ताजपोशी हो ही गई। इस दौरान वर्तमान और भावी अध्यक्ष के बीच जैसी तना तनी चली वह किसी से छिपी नहीं हैं। कार्यक्रमों का कौन इंतजाम करें और कौन अध्यक्ष बन कर बैठा रहें? यही खेल इन नौ महीनों में चलता रहा हैं।जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह के अत्यंत विश्वास पात्रों में गिने जाने वाले इंका नेताओं में हीरा आसवानी के अध्यक्ष बनने से यह माना जा रहा हैं कि भाजपा का नेतृत्व युवा सुजीत जैन के हाथों में सौंपे जाने के बाद युवा को ही कांग्रेस की कमान सौंपने के उद्देश्य से यह नियुक्ति की गई हैं। वैसे तो हीरा आसवानी को संगठन का लंबा अनुभव हैं और वे हरवंश समर्थक नेताओं की तरह अन्य इंका नेताओं में अछूत भी नहीं माने जाते हैं। लेकिन फिर भी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हरवंश सिंह से उन्हें काम करने में कितनी छूट मिल पाती हैं। यदि जितनी चाबी भरी राम ने की तर्ज पर ही काम चला तो पिछले अध्यक्ष महेश मालू के कार्यकाल से इनका कार्यकाल कुछ अलग नहीं होगा। वैसे यह माना जाता हैं कि नौ महीने तके गर्भस्थ रहने वाला शिशु पूरी तरह परिपक्व हो जाता हैं। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि निर्वाचन के पूरे नौ महीने घोषित होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी कितने परिपक्व साबित होते हैंर्षोर्षो और कब अपने महामंत्रियों की घोषणा कर पाते हैं क्यों कि सुरेश पचौरी के कार्यकाल में ही घोषित हो चुके ब्लाक इंका अध्यक्ष अब तक अपने महामंत्रियों की घोषणा नहीं कर पाएं हैं?

विज्ञापन में छपी एक फोटो इंकाइयों में चर्चित- नव नियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी के आभार और बधायी के विज्ञापनों में एक विज्ञापन इंकाइयों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ हैं। कांग्रेस की राजनीति में गुमनामी के दौर से गुजरने वाले नेता तो बहुत सारे हैं लेकिन उनमें से एक फोटो एक विज्ञापन में आने को लेकर तरह तरह की चर्चाएं चल रहीं हैं। कुछ इंका नेताओं का यह दावा हैं कि एक इंका नेता ने अपनी फोटो का मोह त्याग कर ये कारनामा कर दिखाया हैं। वैसे हमेशा से सुर्खियों रहने वाले इंका नेताओं में ये भी एक माने जाते थे लेकिन लंबे समय से गुमनामी में रहना उनही नियति बन चुकी हैं? या किसी सोची समझी रणनीति का एक हिस्सा हैर्षोर्षो इसे लेकर लोगों का अलग अलग मत हैं। वास्तविकता चाहे जो भी हो लेकिन हीरा आसवानी के अध्यक्ष बनने के विज्ञापनों ने चर्चाओं का एक मुद्दा तो दे ही दिया हैं।

इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो-सासंद के.डी.देशमुख लगभग हर सोमवार को सिवनी आते हैं और कभी स्कूलों का तो कभी अस्पताल का निरीक्षण करके जब भी कलेक्टर और एस.पी. से चर्चा करते हैं तो पूरे जिले में गांव गांव में बिक रही अवैध शराब की बिक्री को रोकने की बात कहने से अपने आप को नहीं रोक पा रहें हैं। निर्माण कार्यों में भी भ्रष्टाचार की बात वे कभी कभी करते हैं लेकिन अवैध शराब के धंधें की चिंता हैं कि उनका पिंड़ ही नहीं छोड़ रही हैं। भाजपायी हल्कों में इस बात को लेकर बहुत सी चर्चाएं जारी हैं।कुछ भाजपा नेता तो यह तक कहते पाए जा रहें हैं कि या तो शराब ठेकेदार और आबकारी विभाग भाऊ का इशारा ही नहीं समझ पा रहा हैं या फिर समझ कर भी जानबूझ कर अनजान बना हुआ हैंर्षोर्षो कुछ नेता तो गाने के ये बोल बोल कर मजा ले रहें हैं कि Þइशारों को अगर समझो,राज को राज रहने दोÞ। अब इसमें राज क्या हैं और इशारा क्या हैर्षोर्षो येभाजपा नेता ही जाने लेकिन ऐसी चर्चाएं किसी भी जनप्रतिनिधि की सेहत के लिए अच्छभ् नहीं होतीं हैं।

सुरेंद्र की जीत से गर्माएगी भाजपायी गुटबंदी-अभिभाषक संघ के चुनाव में सुरेंद्र शुक्ला के अध्यक्ष चुने जाने से भाजपा की स्थानीय गुटबंदी में तेजी आने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं। सिवनी के दो जन प्रतिनिधियों के बीच खिंची तलवारें तो जगजाहिर ही हैं। विधायक नीता पटेरिया और नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी कई मौकों पर एक दूसरे के सामने खड़े नज़र आए हैं। भाजपायी राजनीति के जानकारों का मानना हैं कि पूर्व मंत्री स्व. महेश शुक्ला के भतीजे सुरेंद्र शुक्ला की इस जीत को नीता पटेरिया भुनाएंगी और राजेश त्रिवेदी के सामने एक ब्राम्हण नेता के रूप में उनका उपयोग करेंगीं।यहां यह उल्लेखनीय हैं कि राजेश त्रिवेदी भी आगे विधानसभा की टिकिट के दावेदार के रूप में उभर सकते हैं। यदि नीता पटेरिया दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर जाना चाहेंगी तो ऐसी परिस्थिति में नीता विकल्प के रूप में सुरेंद्र शुक्ला का नाम अड़ा सकतीं हैं। यहां महेश शुक्ला का नाम उनके लिए उपयोगी साबित हो सकता हैं। राजेश के अरविंद मैनन से संबंध उनके दावे को पुख्ता कर सकते हैं। ऐसी हालात में जब दो ब्राम्हण नेता आमने सामने होंगें तो इस खींचातानी में विकल्प के रूप में नीता पटेरिया अपने विश्वस्त ब्राम्हण नेता प्रेम तिवारी को सामने कर निर्णायक स्थिति बना सकतीं हैं। यहां यह भी दावा किया जा रहा हैं कि सिवनी विधानसभा क्षेत्र में ब्राम्हणों की निर्णायक संख्या को देखते हुए अगली टिकिट भी ब्राम्हण नेता को ही देना भाजपा की मजबूरी होगी। इसका कारण यह बताया जा रहा हैं कि पूरे जिले के ब्राम्हणों ने नीताको जिता कर यह सोचा था कि भाजपा उन्हें मंत्री बनाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद यदि सिवनी की टिकिट भी ब्राम्हण को देने के बजाय किसी और को दी गई तो जिले भर के ब्राम्हण मतदाताओं की नाराजगी भाजपा को भुगतना पड़ सकता हैं। हालांकि यह सब कुछ बहुत दूर की बातें हैं लेकिन दूर की कौड़ी चलने वाले इन सारे समीकरणों पर पैनी नज़र रखें हुए हैं।

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