26.8.11

जागरण के समाचार पत्र में छपा एक लेख...

जागरण के समाचार पत्र में छपा एक लेख जिसे जे .एन .यू .के प्राध्यापक विवेक कुमार ने लिखा है ..जिसकी कुछ बाते मुझे समझ नही आती आखिर यह क्या कहना चाहा रहे है ...
मैं ज्ञान में इतनी प्र्रागन तो नहीं हुई होगी ..क्यों की अभी जे .एन .यू  के प्राध्यापक के जितनी किताबे नहीं पड़ी होगी ...किन्तु कुछ ज्ञान तो अर्जित किया है ...
उन्होंने अपने लेख का नाम ही "एक अनावश्क अनशन " रखा है वो अन्ना हजारे की मुहीम को कोई आन्दोलन या दूसरी आज़ादी कहना पसंद नहीं आ रहा है ...उन्होंने अनेक बाते अन्ना की मुहीम के खिलाफ कही है ...उनके अनशन पर जैसे प्रशनचिंह हो ...मैं उनके लेख के अंतिम पहरा से अपने मतभेद रखना चाहुगी ...जिसमें उन्होंने कहा ...अन्ना का अनशन अविश्वास पर आधारित है ,अविश्वाश संसद पर सरकार पर और न्यायपालिका पर ,हम कैसे सवाय्म्भु नेताओं पर भरोसा कर सकते हैं जबकि वे खुद लोकसभा के ५४५ राजसभा के २४२ निर्वाचित लोगो पर भरोसा नहीं कर रहे हैं ..? अगर निर्वाचित प्रतिनधि अपना काम नहीं कर पाते हैं तो हम उन्हें हर पांच वर्ष बदल सकते हैं ,लेकिन हम अन्ना हजारे ,केजरीवाल ,प्रशांत भूषण ,और शांति भूषण को कैसे बदल सकते हैं ?...ये पंक्तियाँ पड़ कर मुझे समझ नहीं आता की वे अपनी अज्ञानता के कारण अन्य बुद्धिजीवियों से प्रश्न कर रहे है या अज्ञान लोगो को गुमराह कर रहे है ...क्यों की अन्ना हजारे सव्य ही कहे  चुके हैं की यह एक जन लोकपाल बिल होगा ,जिसमें जनता के चुने सदस्य होगे पूरी सवेधानिक प्रक्रिया के आधार पर मुझे किसी पद पर विराजमान होने की लालसा नहीं है ...यह कोन कहे रहा है की अन्ना की टीम ही जन लोकपाल की नियुक्ति करेगी इसकी एक प्रक्रिया होगी ...
रही २४५ लोकसभा और २४२ राजसभा निर्वाचित लोगो पर भरोसा कर ने की तो अगर ये ठीक रहते तो इस अनशन की जरुरत ही क्यों पड़ती भरोसा तो एक  गाँधी पर भी क्या था जनता ने ...वो हजारो अंग्रेजो पर भी भरोसा कर सकती थी ...
संसद में भी भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुच चूका है आज देश की चुनाव प्रक्रिया किस हद तक भ्रष्टाचार के चुंगुल में फासी है यह किसी से छिपा नही है ...मतदान के अधिकार का पालन ही सही ढंग से नहीं हो पा रहा है हर एक नेता अपनी कुर्सी को बचाने के प्रयास में सभी चुनावी और सवेधानिक प्रक्रियाओ का बहिष्कार कर चुका है ...सवेधानिक बाते या तो सविधान की किताबो के पन्नो पर है या किसी देशभक्ति फ्लिम में ...
दूसरी बात इनके लेख में जिससे में इतफाक नहीं रखती वो है ...उनकी पंक्तियाँ "यह भ्रष्टाचार एल बड़ी संख्या में लोगो को संस्थानों और सरकारी नोकारियों में जाने से रोकने के साथ आरंभ हो जाता है फिर कारपोरेट सेक्टर ,मीडिया ,और ऊपर अंतराष्टिये और गेर सरकारी सगठनों के भ्रष्टाचार को लोकपाल बिल में की बात नही कही जा रही है ,इसमें गंभीर बहस पैदा होती है "....
मेरा प्रश्न यहाँ ये बनता है की '
कारपोरेट सेक्टर ,मीडिया ,और ऊपर अंतराष्टिये और गेर सरकारी सगठन ' आदि जो ये गिनवा रहे है क्या ये संसद के अधीन नही आती विधानपालिका ,न्यायपालिका ,कार्येपलिका सविधान का भाग हैं जिस पर भारत का पूरा सविधान टिका है सारी कानून और  व्यवस्ता आदि इसी से संभलती है ...और प्रभावित होती है ...जब इन सब में भर्ष्टाचार का खात्मा हो जायेगा तो छोटे स्तर पर स्वय ही सफाई हो जाएगी ...
जब कोई संस्थान भ्रष्टाचार के अपराध में लिप्त पाया जाता है तो एक ही व्यक्ति पर सारा दोष मड देय जाता है ...और फिर जनता या आप जैसे लोग बोलते हैं की छोटी मछली को पकड़ने से क्या फहयदा जब बड़ी मछली आरोपमुक्त घूम रही है ...आज जब बड़ी मछली को पकड़ने की प्रक्रिया चल रही है तो आज क्या हुआ ....?
कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हर चीज़ में दोषारोपण करने की आदत्त हो जाती है और जब बदलाव करने की बरी आये तो कुछ बहाना कर के पीछे हो जाते हैं ...
आपका कहना ये सही है की ....भ्रष्टाचार एक चेह्यरा विहीन शत्रु है .......जो भ्रष्टाचार में संलिप्त रहें है वे आगे की पंक्ति में बैठ कर विरोध कर रहे हैं ...ऐसा है तो क्या करने दो ...यदि कल लोकपाल बन जाता है तो सभी इसकी प्रक्रिया में आयेगे ...जैसे अंग्रेजो ने ट्रेनों का विकास किया ,शिक्षा में सुधर किया .समाज में बदलाव किये ...आदि सभी अपने फायदे के लिये किये किन्तु उन्ही को भरी पड़े ...आज भी ऐसे ही होगा बेखबरी में भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति अन्ना के आन्दोलन को मजबूत बना रहा है जो उनको उनके केए से बकशेगा नहीं ..,
आज ये मुहीम कामयाब नही हुई तो एक लम्बे समय तक कोई  अन्ना नही जन्म लेगा ...जो इस देशभक्ति से ओतप्रोत जनता को एकजुट कर सके जो सबको अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने को खड़ा कर सके जाने कब से लोगो के दिलो में भावनाए छुपी थी ...जैसे इसी एक मुहीम के इंतजार में थी ...आज बस हो जाने दो और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त होनेदो होने दो ....,
जो ऐसा होने पर प्रश्नचिन लगा रहे है या अन्ना की मुहीम से सहमत नहीं है एक बार स्वय प्रयास करे ...क्या वे अपने विचारो को लेकर ऐसा जनसलब तेयार कर सकते है ...? तो सामने आये भारत लोकतंत्र है सबको अभी व्यक्ति की स्वन्त्रन्ता है ...अन्ना हजारे जिंदाबाद ...भारत माता की जय ...
इस लेख में और कई ऐसी बाते हैं जिन्हें में अपने विचारो से खंडित कर सकती हूँ ...,किन्तु मेरी मंशा उनके लेख को या उनके विचारो को खंडित करने की नही है ...किन्तु वे जिस कदर अन्ना टीम का पक्ष बदलने की कोशिश कर रहें है वो मेरे विचार से टिक नही हैं ...,
एक जगहां विवेक जी ने कहा की किरन वेदी ने कहा ...की सिविल सोसईटी का मतलब सभ्य समाज है जैसे की राजनितिक तबका असभ्य है ...,अनशन के नेताओ की समजदारी का स्तर यह है ...
अरे सर जी पहली बात तो यह की इन् में से कोई नेता तो है नही समाज सेवी जरुर हैं ...और अगर ऐसा बोला भी तो ये कोन सी किताब में लिखा है की एक को सभ्य बोल देने से दूसरा असभ्य हो जाता है ,,,सिविल सोसईटी  हो या राजनीती तबका सब जनता से उठ के ही बने है ....एक प्राध्यापक के लिये गलत पाठ पढ़ना शोभा नही देता ...ग़दर फ्लिम की याद आ रही है जिस में सन्नी देयोल हीरो की भूमिका में थे ..एक द्रश्य में उनसे कहा गया की ...बोलो पाकिस्तान की जय उन्होंने बोल देय पाकिस्तान जिंदाबाद ...फिर उनसे हिंदुस्तान मुर्दाबाद बोलने को कहा उन्होंने कहा की इससे हमे कोई फर्क नही पड़ता की पाकिस्तान जिन्दा बाद रहे या आबाद रहे लेकिन हिंदुस्तान जिंदाबाद है और जिन्दा बाद रहेगा ....और फ्लिम के किरदार ने हैण्ड पम्प उखड देय था .....आज कही ऐसा न हो लोगो का आक्रोश अन्ना के खिलाफ बोलने वालो पर न टूट पड़े ...भारत जिंदाबाद के नारे लगाओ जी और देशभक्ति का मोका मिला है बार बार वक़्त नही आता ,,,,भारत माता की जय ....वन्देमातरम  ,
वन्देमातरम वन्देमातरम....

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