26.8.11
जहां १८ अगस्त को मना स्वाधीनता दिवस
शंकर जालान
जहां पूरा देश पंद्रह अगस्त को ६५वां स्वतंत्रता दिवस मनाया वहीं इसके तीन दिन बाद दक्षिण दिनाजपुर िजले बालुरघाट के निवासियों ने १८ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया। दरअसल वर्तमान दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट सहित कई इलाके 18 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए थे। 15 अगस्त 1947 को देश ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ, लेकिन बालुरघाट सहित पश्चिम बंगाल के कई इलाके 17 अगस्त 1947 तक पाकिस्तान के अंतर्गत थे। तत्कालीन हिन्दु महासभा के अध्यक्ष व जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कड़ी लड़ाई लड़ कर 18 अगस्त 1947 को बालुरघाट पाकिस्तान से मुक्त कराकर भारत में शामिल किया। इसी दिन को याद करते हुए १८ अगस्त को भाजपा के तत्वावधान में तिरंगा फहरा कर बालुरघाट में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। भाजपा के राज्य सचिव देवश्री चौधरी ने बताया कि देश की आजादी के लिए किए गए आंदोलनों में बालुरघाट शहर की बड़ी भूमिका थी। 1942 में भारत छोड़ा आंदोलन में बालुरघाटवासी शामिल हुए थे। उसी वर्ष 14 सितंबर को तत्कालीन दिनाजपुर जिले के महकमा कार्यालय का दस हजार लोगों ने घेराव किया था। इनलोगों ने ट्रेजरी भवन में आग भी लगाई थी। स्वतंत्रता सेनानियों ने इस दिन बालुरघाट शहर के कुल 16 सरकारी कार्यालय को तहस-नहस कर दिया। एसडीओ कार्यालय के सामने से ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा लगा दिया था। दस हजार स्वतंत्रता सेनानियों की डर से शहर की पुलिस फरार हो गई थी। उस समय कुल ढाई दिनों तक बालुरघाट ब्रिटिश से मुक्त रहा। इस घटना की याद में तत्कालीन एसडीओ कार्यालय के सामने सरकार ने एक स्मारक स्तंभ का निर्माण कराया। चौधरी के मुताबिक बालुरघाट सीमा से सटे डांगी गांव में 1942 के 14 सितंबर को स्वतंत्रता सेनानी एकत्रित होकर बालुरघाट के लिए रवाना हुए। जिस स्थान से रवाना हुए थे वहां भी एक स्मारक स्तंभ है, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण यह स्मारक स्तंभ नष्ट होने की कगार पर है। सरकारी तौर पर यहां 14 सितंबर या 18 अगस्त मनाया नहीं जाता है, इसलिए पार्टी (भाजपा) की ओर डांगी में शहीद स्तंभ की साफ-सफाई कर फूल माला चढ़ाकर स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मानित करते हुए पदयात्रा की जाती है। इसके बाद तिरंगा फहराया जाता है। इस बार भी ऐसा ही किया गया। उन्होंने बताया कि जिन्ना की साजिश से देश बंटा। उस समय हिन्दु व मुस्लिम बहुलता को लेकर दोनों देशों की जमीन के बंटवारे के लिए मोहम्मद जिन्ना ने आवाज उठाई। ब्रिटिश ने इस बंटवारे के लिए बाउंडरी कमीशन तैयार किया। जिसका नेतृत्व दिया सिरील रेडक्लिफ। उन्होंने बालुरघाट सहित बंगाल के कई इलाके पाकिस्तान को दे दिए इसके विरोध में हिन्दु सभा के मुखर्जी ने जमकर विरोध किया। उन्होंने रेडक्लिफ को समाझाया कि बालुरघाट, माला व मुर्शिदाबाद के जिन इलाकों को पाकिस्तान के अधीन किया गया है वे हिंदू बहुल इलाके है। डा. श्यामाप्रसाद की लड़ाई के बाद बालुरघाट सहित बाकी इलाका 1947 के 18 अगस्त को भारत में शामिल हुए। इसलिए १८ अगस्त को यह स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
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